व्यक्ति की स्वतंत्रता परम मूल्य है। राज्य व्यक्ति का सेवक है

यू ट्यूब पर ओशो के एक प्रवचन का स्क्रीनशॉट जिसमें वो अवेयरनेस का उपयोग वर्चू  का पता लगाने के लिए टूल की तरह उपयोग करना सीखा रहे हैं। व्यक्ति की स्वतंत्रता का सही उपयोग तभी होगा जब व्यक्ति अवेयरनेस को इस उपयोग में लेना सीख ले।
व्यक्ति की स्वतंत्रता का सबसे महत्वपूर्ण उपयोग यह होगा कि व्यक्ति किसी भी काम को करते हुए पूरी तरह अवेयर होकर करे तो जो अच्छा काम होगा वह अपने आप आपकी ज़िंदगी में बढ़ता जाएगा।
Awareness is the key to understand nature of your act.
यू ट्यूब पर ओशो के एक प्रवचन का स्क्रीनशॉट जिसमें वो अवेयरनेस का उपयोग सिन का पता लगाने के लिए टूल की तरह उपयोग करना सीखा रहे हैं। व्यक्ति की स्वतंत्रता का सही उपयोग तभी होगा जब व्यक्ति अवेयरनेस को इस उपयोग में लेना सीख ले।
और जो कोई व्यक्ति ग़लत काम करता होगा तो जागरूक होकर करते समय वह अपने आप छूट जाएगा, यह मानव की विशिष्ट योग्यता का पूरा उपयोग करना है।

मेरे अनुभव से ओशो के प्रवचन पर प्रकाश डाला गया है ताकि आपको बात गहरे बैठ जायँ और आप आज ही से जीवन में कुछ बदलाव लाकर उसका प्रभाव देख सकें । यह ज़रूरी नहीं कि यह सुझाव आपके कोई काम आएगा लेकिन इसी तरह प्रयोग करते रहे तो एक दिन आप उस विधि को जान ही लेंगे जो एकदम प्रभावकारी सिद्ध होगी, फिर उसे ही प्रयोग में लेते रहें, मंज़िल ज़रूर मिलेगी। अंत में भी मैंने कुछ सुझाव दिए हैं।

सूफ़ी संत फ़रीद के संदेशों पर ‘अकथ कहानी प्रेम की’ किताब में ओशो कहते हैं:-

राज्य व्यवस्थापक होना चाहिए, नियंत्रक नहीं। राज्य का उपाय..उपयोगिता व्यवस्था-आधारित होनी चाहिए। (व्यक्ति की स्वतंत्रता को ध्यान में रखते हुए) लोगों के जीवन में कितनी सुविधा आ सके, उसके लिए राज्य को फिकर करनी चाहिए। और राज्य को बाधा नहीं देनी चाहिए लोगों के जीवन में। (व्यक्ति की स्वतंत्रता में) बाधा तभी देनी चाहिए जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे के जीवन में बाधा दे रहा हो, अन्यथा नहीं।

मेरी राज्य की धारणा का अर्थ ही यह है कि राज्य बड़ा गौण होना चाहिए।

जैसे कि तुम्हारे घर में रसोइया है, तो रसोइए की तुम पूजा करते हो कि फूलमाला पहनाते हो? अच्छा खाना बनाता है तो तुम उसकी प्रशंसा करते हो; (वह अच्छा खाना बना सके उसके लिए उसको पूरी स्वतंत्रता दी गई तभी तो वह अपना काम अच्छे से कर पाया इसलिए) रसोइया जब बुरा खाना बनाता है तो तुम कहते हो यह गलत है तेरा काम, ठीक सुधार कर।

तुम्हारे खाद्यमंत्री की हैसियत भी राष्ट्र के रसोइए से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। इससे ज्यादा क्या प्रयोजन है? बड़े रसोइया हो…।

तुमने घर पर एक पहरेदार लगा रखा है, तो उसका काम है, वह उतना काम करता है। उसके लिए वह एक व्यक्ति की स्वतंत्रता का पूरा उपयोग भी करता है। राज्य की व्यवस्था पहरेदारी की होनी चाहिए। लेकिन राजनेताओं को सिर पर उठा कर चलने का कोई कारण नहीं है। पागलपन है।

राजनीति इतनी प्रमुख नहीं होनी चाहिए।

जीवन में बड़ी बहुमूल्य चीजें हैं जो प्रमुख होनी चाहिए। (जैसे व्यक्ति की स्वतंत्रता)

राजनेता को सिर पर लेकर तुम चलोगे, उससे राजनेता तो ऊंचा नहीं होता, तुम नीचे होओगे। राजनेता के तो ऊंचे होने का कोई उपाय नहीं है। वह तो खुद पागल है। और जो उसकी अरथी को ढो रहे हैं, वे भी पागल हैं।

लेकिन अगर तुम किसी फकीर को कंधे पर उठा कर चले तो तुम ऊंचे हो जाओगे। उससे फकीर ऊंचा नहीं होगा, वह ऊंचा है ही। लेकिन तुम ऊंचे हो जाओगे। वे चरण तुम्हारे लिए पारस सिद्ध होंगे; तुम लोहे से सोना हो जाओगे।

पूरी मनुष्य-जाति का इतिहास हिंसा और युद्धों का इतिहास है। वह राजनेता को सिर पर लेकर चलने के कारण है।

मैं अराजकवादी नहीं हूं।

लेकिन राज्य जरूरत से ज्यादा अधिकारी हो गया है; उतने अधिकार की आवश्यकता नहीं है।

व्यक्ति परम मूल्य है।(व्यक्ति की स्वतंत्रता परम मूल्य है)

 राज्य व्यक्ति का सेवक है, मालिक नहीं। बस सेवक की हैसियत से काम करे, ठीक है। उससे ज्यादा उसका मूल्य नहीं होना चाहिए।

अखबार राजनीति से ही नहीं भरे होने चाहिए। आखिरी पन्ने पर उनकी जगह होनी चाहिए। मगर वे पहले पन्ने को घेरे हुए हैं। सारी सुर्खियां अखबार की राजनीतिज्ञों के नाम से घिरी हैं। इससे अगर जीवन विकृत हो, विध्वंस की तरफ उन्मुख हो, तो स्वाभाविक है।

अखबार की सुर्खियां तो किन्हीं और सुंदर चीजों से भरनी चाहिए। थोड़ा सौंदर्य का बोध होना चाहिए।

राजनीतिक नेताओं के चित्रों की बजाय तो किसी के बगीचे में गुलाब के अच्छे फूल खिले हों, उनके चित्र भी ज्यादा उपयोगी होंगे। किसी के बगीचे में हरियाली हो, उसके चित्र ज्यादा उपयोगी होंगे। किसी ने मधुर गीत गाया हो, उसके मधुर गीत की मधुरिमा काम की होगी।

राजनीतिज्ञों की बकवास, एक-दूसरे के प्रति गाली-गलौज, छीछालेदर, कीचड़ का फेंकना..वही तुम्हारा भोजन हो गया है।

सुबह उठ कर तुम गीता नहीं पढ़ते, कुरान नहीं पढ़ते; अखबार पढ़ते हो। अभागे दिन हैं। इससे तो अच्छा था, तुम कुरान ही पढ़ते, गीता ही पढ़ते। कम से कम कुरान की आयत की तरन्नुम तुम्हें घेर लेता। कम से कम गीता का शायद कोई दूर का भूला-भटका स्वर तुम्हारे हृदय में घोसला बना लेता।

तुम सुबह उठे नहीं कि तुम अखबार पढ़ते हो। आंख खोलते नहीं कि अखबार टटोलते हो। अखबार तुम्हारी गीता है। राजनैतिक विक्षिप्त व्यक्ति तुम्हारे प्रतिमान हैं, तुम्हारे आदर्श हैं।

मैं अराजकवादी नहीं हूं। लेकिन राज्य की शक्ति क्रमशः न्यून होती जाए…।

इसे तो एक स्वप्न ही मानना चाहिए कि कभी ऐसा होगा कि राज्य की बिल्कुल जरूरत न रह जाएगी। मुश्किल है।

थोड़ी-बहुत जरूरत रहेगी। थोड़ी-बहुत तो जहर की भी जरूरत होती है, कभी-कभी औषधि के भी काम पड़ता है। थोड़ी-बहुत तो जहर की भी जरूरत होती है; कभी-कभी किसी को बेहोश भी करना पड़ता है..सर्जरी के लिए, आपरेशन के लिए। उतनी ही जरूरत राज्य की होनी चाहिए जितनी जहर की है। बस उससे ज्यादा जरूरत नहीं होनी चाहिए।

और राज्य का मुख्य काम इतना ही होना चाहिए कि वह एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के जीवन में दखल न देने दे। अभी हालत उलटी है। अभी एक व्यक्ति को तो रोकता ही नहीं दूसरे के जीवन में दखल देने से, खुद ही दोनों के जीवन में दखल देता है।

व्यक्ति की स्वतंत्रता चरम मूल्य है

राज्य, राजनीति, राजनेता सेवक से ज्यादा नहीं होने चाहिए।

कहते तो वे भी यही हैं कि हम सेवक हैं मगर यह वे कहते हैं जब वे इलेक्शन में खड़े होते हैं। इलेक्शन के बाद फिर तुम्हें कहना पड़ता हैः हुजूर, हम आपके सेवक हैं। फिर वे दरबार में बैठते हैं दरबार लगा कर। फिर तुम्हें कहना पड़ता है कि हम आपके सेवक हैं, याद रखना, सेवक को भूल मत जाना। यही उन्होंने तुमसे कहा था, जब वे ताकत में न थे।

तो, सेवा जैसे माध्यम है सत्ता में पहुंचने का। जैसे कोई किसी के पैर दबाना शुरू करे और फिर धीरे-धीरे पहुंच कर गर्दन पकड़ ले; शुरू मालिश से की थी कि पैर दबा रहे हैं..फिर जब गर्दन पकड़ ली, तब तुम्हें होश आया कि यह तो बहुत मुश्किल हो गई है, छुड़ाना मुश्किल है। जब कोई पैर पकड़े तभी जरा गौर से देखना कि हाथ गर्दन की तरफ तो नहीं जा रहे हैं।

लेकिन सभी सत्ताधारी सेवा का बहाना करते हैं, सत्ता की आकांक्षा है।

सत्ता उनके हाथ में होनी चाहिए जिनको सत्ता की आकांक्षा न हो। पर यह तो असंभव है। इसलिए यही हो सकता है कि सत्ता न्यून से न्यून, हाथ में रह जाए; इतनी कम रह जाए कि कोई नुकसान न पहुंचा सके।

राज्य कम से कम हो..वही राज्य श्रेष्ठतम है।

-ओशो, अकथ कहानी प्रेम की,आठवाँ प्रवचन: प्रेम महामृत्यु है।

सूफ़ी संत फ़रीद के संदेशों पर ओशो के प्रवचन

Copyright © OSHO International Foundation, An MP3 audio file of this discourse can be downloaded from Osho.com or you can read the entire book online at the Osho Library.

Many of Osho’s books are available in the U.S. online from Amazon.com and Viha Osho Book Distributors. In India they are available from Amazon.in also.

मेरा अनुभव:

क्रिप्टो करेन्सी के द्वारा यह सम्भव है कि सत्ता कम से कम हो जाए क्योंकि उसका system decentralised है और transparent है।

होंश के छोटे से प्रयोग से आप भी इस अवस्था को समय के साथ अपने भीतर मौजूद पाएँगे। मेरे एक पोस्ट में इसके बारे में विस्तार से बताया है। लिंक पर क्लिक करके उसे भी पढ़ सकते हैं। 

इसके साथ ‘सहज जीवन के सूत्र’ पोस्ट में मैंने जीवन को कैसे जिया जाए की होंश के प्रयोग का प्रभाव देखने में आ सके, उसे भी पढ़ेंगे तो और भी बेहतर होगी आपकी आंतरिक यात्रा। अनंत शुभकामनाओं के साथ।

मेरे जीवन के अनुभव से मैं कहता हूँ कि दैनिक जीवन में होंश के प्रयोग के साथ साथ सहज जीवन भी यदि जिया जाए तो साधना की सरलता से सफलता भी बढ़ जाती है। ये दोनों एक दूसरे को मज़बूत करते जाते हैं।

Spotify पर हिन्दी में कुछ पॉडकास्ट दर्शन (Philosia) नाम के चैनल पर किए हैं।

द्रष्टा (यानी भीतर की आँख से) होने का चमत्कार यह है कि जब तुम (आँख बंद करके भीतर की आँख से अपने ) शरीर को देखते हो, तो तुम्हारा द्रष्टा अधिक मजबूत होता है। जब तुम अपने विचारों को देखते हो, तो तुम्हारा द्रष्टा और भी मजबूत होता है। और जब अनुभूतियों को देखते हो, तो तुम्हारा द्रष्टा फिर और मजबूत होता है। जब तुमअपनी भाव-दशाओं को देखते हो, तो द्रष्टा इतना मजबूत हो जाता है कि स्वयं बना रह सकता है — स्वयं को देखता हुआ, जैसे किअंधेरी रात में जलता हुआ एक दीया न केवल अपने आस-पास प्रकाश करता है, बल्कि स्वयं को भी प्रकाशित करता है!

लेकिन लोग बस दूसरों को देख रहे हैं, वे कभी स्वयं को देखने की चिंता नहीं लेते। हर कोई देख रहा है — यह सबसे उथले तल परदेखना है — कि दूसरा व्यक्ति क्या कर रहा है, दूसरा व्यक्ति क्या पहन रहा है, वह कैसा लगता है। हर व्यक्ति देख रहा है — देखने की प्रक्रिया कोई ऐसी नई बात नहीं है, जिसे तुम्हारे जीवन में प्रवेश देना है। उसे बस गहराना है — दूसरों से हटाकर स्वयं की आंतरिकअनुभूतियों, विचारों और भाव-दशाओं की ओर करना है — और अंततः स्वयं द्रष्टा की ओर ही इंगित कर देना है।

लोगों की हास्यास्पद बातों पर तुम आसानी से हंस सकते हो, लेकिन कभी तुम स्वयं पर भी हंसे हो? कभी तुमने स्वयं को कुछ हास्यास्पदकरते हुए पकड़ा है? नहीं, स्वयं को तुम बिलकुल अनदेखा रखते हो — तुम्हारा सारा देखना दूसरों के विषय में ही है, और उसका कोईलाभ नहीं है।

अवलोकन की, अवेयरनेस की इस ऊर्जा का उपयोग अपने अंतस के रूपांतरण के लिए कर लो। यह इतना आनंद दे सकती है, इतने आशीष बरसा सकती है कि तुम स्वप्न में भी नहीं सोच सकते। सरल सी प्रक्रिया है, लेकिन एक बार तुम इसका उपयोग स्वयं पर करने लगो, तो यह एक ध्यान बन जाता है।

किसी भी चीज को ध्यान बनाया जा सकता है!

अवलोकन तो तुम सभी जानते हो, इसलिए उसे सीखने का कोई प्रश्न नहीं है, केवल देखने के विषय को बदलने का प्रश्न है। उसे करीबपर ले आओ। अपने शरीर को देखो, और तुम चकित होओगे।

अपना हाथ मैं बिना द्रष्टा हुए भी हिला सकता हूं, और द्रष्टा होकर भी हिला सकता हूं। तुम्हें भेद नहीं दिखाई पड़ेगा, लेकिन मैं भेद कोदेख सकता हूं। जब मैं हाथ को द्रष्टा-भाव के साथ हिलाता हूं, तो उसमें एक प्रसाद और सौंदर्य होता है, एक शांति और एक मौन होताहै।

तुम हर कदम को देखते हुए चल सकते हो, उसमें तुम्हें वे सब लाभ तो मिलेंगे ही जो चलना तुम्हें एक व्यायाम के रूप में दे सकता है, साथही इससे तुम्हें एक बड़े सरल ध्यान का लाभ भी मिलेगा।

–ओशो 

ध्यानयोग: प्रथम और अंतिम मुक्ति

मेरे अनुभव जो शायद आपके कुछ काम आ सकें:- 

समय के साथ, 20 वर्षों के भीतर, मैं अन्य कृत्यों के दौरान होंश या जागरूकता को लागू करने में सक्षम हो गया, जबकि मुझे बाद में एहसास हुआ कि कई कृत्यों में यह पहले ही स्वतः होने लगा था।

संपूर्णता के साथ जीना, जीवन को एक प्रामाणिक रूप में जीना यानी भीतर बाहर एक और ईमानदारी से जीना, लोगोंकी बिना भेदभाव के निःस्वार्थ भाव से सेवा करना और सभी बंधनों (धार्मिक, शैक्षिक, जाति, रंग आदि) से मुक्त होनातीन महत्वपूर्ण उत्प्रेरक हैं जो किसी को गहराई तक गोता लगाने में मदद करते हैं।

होंश का प्रयोग मेरे लिए काम करने का तरीका है, (instagram पर होंश) हो सकता है कि आपको भी यह उपयुक्तलगे अन्यथा अधिकांश लोगों के लिए गतिशील ध्यान है। लगभग 500 साल पहले भारतीय रहस्यवादी गोरखनाथद्वारा खोजी गई और ओशो द्वारा आगे संशोधित की गई 110 अन्य ध्यान तकनीकें हैं जिनका प्रयोग किया जा सकताहै और नियमित जीवन में उपयुक्त अभ्यास किया जा सकता है।

Copyright © OSHO International Foundation, An MP3 audio file of this discourse can be downloaded from Osho.com or you can read the entire book online at the Osho Library.

Many of Osho’s books are available in the U.S. online from Amazon.com and Viha Osho Book Distributors. In India they are available from Amazon.in also.

 

2 thoughts on “व्यक्ति की स्वतंत्रता परम मूल्य है। राज्य व्यक्ति का सेवक है

If you need further clarification on this post or if you wish to share your experience in this regard that may prove beneficial to visitors, please comment.