Aziz Naza ko meri taraf se shraddhanjali swaroop. Fikr se Jikr tak.

An image of Aziz Naza taken from the moment he says ‘apni pani fikron mei jo bhi hai vo uljha hai’ from his YouTube channel maintained by Mumtaz.
Aziz Naza has successfully conveyed  the message of Sufi mystics to the needy people, I am one of those fortunate ones. Here I wish to attract your attention to one important mesage ‘apni pani fikron mei jo bhi hai vo uljha hai’. I am one of those people who could come out of mind ie ‘Fikr’ to attain a state of ‘’Jikr’’. Meri anant shriddhanjai swaroop yah post unke naam karta hun, allah unko jannat nawaze.

 

हुए नामवर … बेनिशां कैसे कैसे … ये ज़मीं खा गयी … नौजवान कैसे कैसे …

अज़ीज़ नाज़ा की मशहूर क़व्वाली चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जाएगा ओरिजिनल Mumtaz Aziz Naza के YouTube पर इस लिंक से देखने, सुनने को मिलेगी, और उनके बेटे Mujtaba Aziz Naza मुज़्तबा अज़ीज़ नाजा को भी चढ़ता सूरज क़व्वाली को नयी धुन के साथ YouTube पर इस लिंक पर देख सकते हैं और सुन सकते हैं। किसी गुमनाम सूफ़ी फ़क़ीर की लिखी इस क़व्वाली (Kawwali) को नयी धुन और लेटेस्ट साउंड इफ़ेक्ट के साथ Spotify पर भी मुज़्तबा अज़ीज़ नाजा से चढ़ता सूरज ढलता है ढल जाएगा को सुन सकते हैं।

ब्रैकेट में मैंने अपने अनुभव से सूफ़ी फ़क़ीर के संदेश पर कुछ और प्रकाश डालने का प्रयत्न किया है और जहां बात इस क़व्वाली में मुझे अधूरी लगी उसे पूरी करने का प्रयत्न किया है। जैसे यहाँ सूफ़ी फ़क़ीर ने अपनी अपनी फ़िक्रों  के कारण हम उलझे हैं यह तो बताया है लेकिन फ़िक्र (Fikr) को जानने के बाद उससे छूटकर ‘ज़िक्र’ (Jikr) तक कैसे पहुँचे पहुँचे यह नहीं बताया है।इसलिए अज़ीज़ नाजा के ओरिजिनल वीडियो से यह स्क्रीन शॉट उस समय का लिया गया  जब वह ‘अपनी अपनी फ़िक्रों में जो भी है वो उलझा है’ को बोल रहे हैं। उस समय लोग अनपढ़ होंगे और सूफ़ी संत उनके बीच मौजूद रहा होगा तो क़व्वाली से संदेश पहुँच गया अब जिसको फ़िक्र के उलझाव से निकलकर आगे ज़िक्र तक जाना है वह उस सूफ़ी फ़क़ीर के पास चला जाता होगा। 

इस पोस्ट के माध्यम से मैं जो भी फ़िक्र के उलझाव से निकलकर ‘ज़िक्र’ तक जाना चाहते हैं उनके लिए आगे की राह की तरफ़ सिर्फ़ इशारा कर रहा हूँ। क्योंकि लोग अब पढ़े लिखे हैं और इंटरनेट से लोग आगे की यात्रा के बारे में क्या करना है, यह जानने के बाद जहां है वहीं से ऑनलाइन सीखकर आगे की यात्रा भीतर की दिशा में कर सकते हैं। इसलिए यह पोस्ट के माध्यम से Aziz Naza की क़व्वाली और गुमनाम सूफ़ी फ़क़ीर के संदेश को और अधिक लोगों तक पहुँचाने का प्रयत्न किया है। 


(और उनके किए गये कामों को पत्थर पर उकेरने में लगे रहे जबकि उपनिषद पेड़ की छालों पर लिखे भी मौजूद थे जिन पर लिखने वाले ने अपने को सिर्फ माध्यम मानकर लिखा वे भी कोइ वृद्ध तो कोइ जवान थे बस अमर हो गये थे. फर्क इससे पड़ता है कि कौन लिख/बोल रहा है, किस अवस्था में और किस उद्देश्य से न कि किस पर या किस सुर ताल पर)
आज
(बदलाव तभी संभव है जब यह आज समझ में आ जाए- क्योंकि गाने वाले सूफी फकिर कि यह पुकार है आज उसकी मौजूदगी में कुछ घट सकता है यह सुनकर )

आज जवानी पर इतरानेवाले कल 

(कल कल करते करते कब मौत सामने खड़ी हो जायगी पता ही नहीं चलेगा जैसे अभी पीछे देखेगा तो पता चलेगा और कल का इस फकीर को भी पता नही)ं


चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जायेगा – २ ढल जायेगा ढल जायेगा – २
(जैसे आज इतना सूरज तो चढ़ चुका है और पता ही नहीं चलेगा और यह ढलने लगेगा)

Aziz Naza ki kawwali ke lyrics  :- 

तू यहाँ मुसाफ़िर है ये सराये फ़ानी है चार रोज की मेहमां तेरी ज़िन्दगानी है
ये ज़र ज़मीं ज़ेवर कुछ ना साथ जायेगा
खाली हाथ आया है खाली हाथ जायेगा
जानकर भी अन्जाना बन रहा है दीवाने
अपनी उम्र ए फ़ानी पर तन रहा है दीवाने
किस कदर तू खोया है इस जहान के मेले मे
तु खुदा को भूला है फंसके इस झमेले मे
आज तक ये देखा है पानेवाले खोता है
ज़िन्दगी को जो समझा ज़िन्दगी पे हंसता है
मिटनेवाली दुनिया का ऐतबार करता है (और जो अमिट है उस पर तेरी नजर ही नहीं है)
क्या समझ के तू आखिर इससे प्यार करता है (मिटता हुआ देखकर भी क्यों तुझे तेरे, तेरी संपत्ती ताकत के न मिटने का भरोसा है)
अपनी अपनी फ़िक्रों (अपने बनाये संसार)में जो भी है वो उलझा है – २
ज़िन्दगी हक़ीकत में क्या है कौन समझा है – २
(अपने संसार से बाहर आए तब समझे,लेकिन उसमें वह कई रोल कर रहा है जिसमें वह महत्वपूर्ण रोल अदा कर रहा है, उसके बगैर वहां कुछ भी नहीं हो सकेगा, और जो कुछ समझे वह भी पूरा नहीं समझ सके)
आज समझले …
आज समझले कल ये मौका हाथ न तेरे आयेगा
ओ गफ़लत की नींद में सोनेवाले एक दिन धोखा खायेगा
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जायेगा – २ ढल जायेगा ढल जायेगा – २

Aziz Naza fir kahte hain:- 

मौत ने ज़माने को ये समा दिखा डाला
कैसे कैसे रुस्तम को खाक में मिला डाला (यहां अहंकार पर चोंट)
याद रख सिकन्दर के हौसले तो आली थे
जब गया था दुनिया से दोनो हाथ खाली थे
अब ना वो हलाकू है और ना उसके साथी हैं
चंगजो न पोरस है और न उसके हाथी हैं
कल जो तनके चलते थे अपनी शान-ओ-शौकत पर
शम्मा तक नही जलती
आज उनकी तुरबत पर
अदना हो या आला हो सबको लौट जाना है – २
मुफ़्लिसों का कलन्दर का कब्र ही ठिकाना है – २
जैसी करनी … जैसी करनी वैसी भरनी आज किया कल पायेगा
(अपने को कर्ता माना तो बंधता जायगा और अपने को माध्यम माना तो मुक्त हो जाएगा)
सर को उठाकर चलनेवाले….
(अहंकार को सच मानने  वाले )
सर को उठाकर चलनेवाले एक दिन ठोकर खायेगा (जब अहं की मौत होगी)
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जायेगा – २
ढल जायेगा ढल जायेगा – २

Aziz Naza yahan kahte hain:- 

मौत सबको आनी है कौन इससे छूटा है
तू फ़ना नही होगा ये खयाल झूठा है
साँस टूटते ही सब रिश्ते टूट जायेंगे बाप माँ बहन बीवी बच्चे छूट जायेंगे
तेरे जितने हैं भाई वक्त का चलन देंगे (यहां मोह और माया पर वार)
छीनकर तेरी दौलत दो ही गज़ कफ़न देंगे
जिनको अपना कहता है कब ये तेरे साथी हैं
कब्र है तेरी मंज़िल और ये बराती हैं
ला के कब्र में तुझको मुरदा पाक डालेंगे
अपने हाथोंसे तेरे मुँह पे खाक डालेंगे
तेरी सारी उल्फ़त को खाक में मिला देंगे
तेरे चाहनेवाले कल तुझे भुला देंगे
इस लिये ये कहता हूँ खूब सोचले दिल में
क्यूँ फंसाये बैठा है जान अपनी मुश्किल में
(कल का क्या भरोसा है
आज बस संभल जायें)
कल से तु कर तौबा आज बस सम्भल जायें – २
दम का क्या भरोसा है जाने कब निकल जाये – २

मुट्ठी बाँध के आनेवाले …
मुट्ठी बाँध के आनेवाले हाथ पसारे जायेगा
धन दौलत जागीर से तूने क्या पाया क्या पायेगा
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जायेगा

यहाँ यह तो बताया है कि क्या नहीं करना है लेकिन जो कमी है कि क्या करना है? वह मेरी इस पोस्ट के माध्यम से बताना चाहता हूँ। हमने अपनी भीतर की आँख को बचपन में खो दिया है उसे फिर से याद करने का प्रयत्न करना है, उसके लिए सही तरीक़ा जो मेरे लिए कारगर हुआ वह बताने का प्रयत्न किया है। एक बार होंश भरे होकर से काम कैसे करना यह सीखना है और मैंने यह सुबह ब्रश करते समय साधने का प्रयत्न किया और बहुत सफल रहा। आपको भी कोई एक काम, जो आपको सबसे ज़्यादा सुकून देता हो, उसके साथ शुरुआत करनी है बस। 

मेरे अनुभव :-

समय के साथ, 20 वर्षों के भीतर, मैं अन्य कृत्यों के दौरान होंश (Honsh) या जागरूकता को लागू करने में सक्षम हो गया, जबकि मुझे बाद में एहसास हुआ कि कई कृत्यों में यह पहले ही स्वतः होने लगा था।

संपूर्णता के साथ जीना, जीवन को एक प्रामाणिक रूप में जीना यानी भीतर बाहर एक और ईमानदारी से जीना, लोगोंकी बिना भेदभाव के निःस्वार्थ भाव से सेवा करना और सभी बंधनों (धार्मिक, शैक्षिक, जाति, रंग आदि) से मुक्त होनातीन महत्वपूर्ण उत्प्रेरक हैं जो किसी को गहराई तक गोता लगाने में मदद करते हैं।

होंश का प्रयोग मेरे लिए काम करने का तरीका है, (instagram पर होंश) हो सकता है कि आपको भी यह उपयुक्तलगे अन्यथा अधिकांश लोगों के लिए गतिशील ध्यान है। लगभग 500 साल पहले भारतीय रहस्यवादी गोरखनाथद्वारा खोजी गई और ओशो द्वारा आगे संशोधित की गई 110 अन्य ध्यान तकनीकें हैं जिनका प्रयोग किया जा सकताहै और नियमित जीवन में उपयुक्त अभ्यास किया जा सकता है।

ज़िक्र से फ़िक्र तक का रास्ता: साधारण जीवन अपने प्रति ईमानदारी से जियें और अपना काम हम अधूरे मन से नहीं बल्कि अपने आपको पूरा झोंक दें तो हम समाज में जीते हुए होंश (Honsh) के नियमित प्रयोग से ही हम दर्शन (Philosia) तक पहुँच सकते हैं, फिर वही Darshan जिक्र ‘Jikr’ में अपनेआप परिवर्तित हो जाता है, करना नहीं पड़ता। जो ज़िक्र करना पड़े वह ज़िक्र नहीं है, मेरी नज़र में। 

ओशो इंटरनेशनल ऑनलाइन (ओआईओ) इन्हें आपके घर से सीखने की सुविधा प्रदान करता है,

1. ओशो ध्यान दिवस अंग्रेज़ी में @यूरो 20.00 प्रति व्यक्ति के हिसाब से। OIO तीन टाइमज़ोन NY, बर्लिन औरमुंबई के माध्यम से घूमता है। आप अपने लिए सुविधाजनक समय के अनुसार प्रीबुक कर सकते हैं।

2. ओशो इवनिंग मीटिंग स्ट्रीमिंग है जिसे हर दिन स्थानीय समयानुसार शाम 6:40 बजे से एक्सेस किया जा सकताहै (जिनमें से ओशो कहते हैं कि वह चाहते हैं कि उनके लोग इसे पूरी दुनिया में देखें और इन दिनों यह संभव है) और16 ध्यान ज्यादातर वीडियो निर्देशों के साथ और Osho के iMeditate पर और भी बहुत कुछ।

3. जो लोग पहले इसे आजमाना चाहते हैं उनके लिए 7 दिनों का नि: शुल्क परीक्षण भी है।

यह इन संन्यासियों के माध्यम से ओशो को सीखने और जानने का एक अवसर है, जो उनकी उपस्थिति में रहते थे औरउनके शब्दों को सभी स्वरूपों में सर्वोत्तम संभव गुणवत्ता में जीवंत करते थे।

अंतिम क्षणों में यीशु के शिष्यों ने उन्हें अकेला छोड़ दिया लेकिन ओशो के शिष्य तब तक उनके साथ रहे जब तक किउन्होंने काम करने के बाद स्वेच्छा से अपना शरीर नहीं छोड़ा, अंतिम दिन तक, हम सभी को प्रबुद्ध होने के लिए। यीशुने अपने शिष्यों को ध्यान सिखाने के लिए पकड़े जाने से पहले अंतिम समय तक कड़ी मेहनत की। सेंट जॉन गॉस्पेलके अनुसार: – यीशु ने अपनी ध्यान ऊर्जा को उनमें स्थानांतरित करने के लिए ‘सिट’ (Sit)शब्द का इस्तेमाल कियाऔर भगवान से प्रार्थना करने के लिए चले गए, लेकिन लौटने पर उन्होंने उन्हें सोते हुए पाया। उसने दो बार फिरकोशिश की लेकिन व्यर्थ।

आज भी ज़ेन (ZEN) लोग ध्यान के लिए ‘बैठो’ शब्द का प्रयोग अपने कथन में करते हैं ‘चुपचाप बैठो (Sit silently) कुछ न करो, मौसम आता है और घास अपने आप हरी हो जाती है’।

नमस्कार ….. मैं अपनी आंतरिक यात्रा के व्यक्तिगत अनुभवों से अपनी टिप्पणियाँ लिखता हूँ। इस पोस्ट में दुनिया भरके रहस्यवादियों की शिक्षाएँ शामिल हो सकती हैं जिन्हें मैं आज भी मानने लायक समझता हूँ। मेरे बारे में अधिकजानकारी के लिए और मेरे साथ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जुड़ने के लिए, मेरे सोशल मीडिया लिंक से जुड़ने केलिए वेबसाइट https://linktr.ee/Joshuto पर एक नज़र डालें, या मेरे यूट्यूब चैनल की सदस्यता लें और/यापॉडकास्ट आदि सुनें।

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