A call of Sufi mystic

हुए नामवर … बेनिशां कैसे कैसे … ये ज़मीं खा गयी … नौजवान कैसे कैसे …
(और उनके किए गये कामों को पत्थर पर उकेरने में लगे रहे जबकि उपनिषद पेड़ की छालों पर लिखे भी मौजूद थे जिन पर लिखने वाले ने अपने को सिर्फ माध्यम मानकर लिखा वे भी कोइ वृद्ध तो कोइ जवान थे बस अमर हो गये थे. फर्क इससे पड़ता है कि कौन लिख/बोल रहा है, किस अवस्था में और किस उद्देश्य से न कि किस पर या किस सुर ताल पर)
आज
(बदलाव तभी संभव है जब यह आज समझ में आ जाए- क्योंकि गाने वाले सूफी फकिर कि यह पुकार है आज उसकी मौजूदगी में कुछ घट सकता है यह सुनकर )

आज जवानी पर इतरानेवाले कल

(कल कल करते करते कब मौत सामने खड़ी हो जायगी पता ही नहीं चलेगा जैसे अभी पीछे देखेगा तो पता चलेगा और कल का इस फकीर को भी पता नही)ं

पछतायेगा – ३
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जायेगा – २ ढल जायेगा ढल जायेगा – २
(जैसे आज इतना सूरज तो चढ़ चुका है और पता ही नहीं चलेगा और यह ढलने लगेगा)

तू यहाँ मुसाफ़िर है ये सराये फ़ानी है चार रोज की मेहमां तेरी ज़िन्दगानी है
ये ज़र ज़मीं ज़ेवर कुछ ना साथ जायेगा
खाली हाथ आया है खाली हाथ जायेगा
जानकर भी अन्जाना बन रहा है दीवाने
अपनी उम्र ए फ़ानी पर तन रहा है दीवाने
किस कदर तू खोया है इस जहान के मेले मे
तु खुदा को भूला है फंसके इस झमेले मे
आज तक ये देखा है पानेवाले खोता है
ज़िन्दगी को जो समझा ज़िन्दगी पे हंसता है
मिटनेवाली दुनिया का ऐतबार करता है (और जो अमिट है उस पर तेरी नजर ही नहीं है)
क्या समझ के तू आखिर इससे प्यार करता है (मिटता हुआ देखकर भी क्यों तुझे तेरे, तेरी संपत्ती ताकत के न मिटने का भरोसा है)
अपनी अपनी फ़िक्रों (अपने बनाये संसार)में जो भी है वो उलझा है – २
ज़िन्दगी हक़ीकत में क्या है कौन समझा है – २
(अपने संसार से बाहर आए तब समझे,लेकिन उसमें वह कई रोल कर रहा है जिसमें वह महत्वपूर्ण रोल अदा कर रहा है, उसके बगैर वहां कुछ भी नहीं हो सकेगा, और जो कुछ समझे वह भी पूरा नहीं समझ सके)
आज समझले …
आज समझले कल ये मौका हाथ न तेरे आयेगा
ओ गफ़लत की नींद में सोनेवाले एक दिन धोखा खायेगा
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जायेगा – २ ढल जायेगा ढल जायेगा – २

मौत ने ज़माने को ये समा दिखा डाला
कैसे कैसे रुस्तम को खाक में मिला डाला (यहां अहंकार पर चोंट)
याद रख सिकन्दर के हौसले तो आली थे
जब गया था दुनिया से दोनो हाथ खाली थे
अब ना वो हलाकू है और ना उसके साथी हैं
चंगजो न पोरस है और न उसके हाथी हैं
कल जो तनके चलते थे अपनी शान-ओ-शौकत पर
शम्मा तक नही जलती
आज उनकी तुरबत पर
अदना हो या आला हो सबको लौट जाना है – २
मुफ़्लिसों का कलन्दर का कब्र ही ठिकाना है – २
जैसी करनी … जैसी करनी वैसी भरनी आज किया कल पायेगा
(अपने को कर्ता माना तो बंधता जायगा और अपने को माध्यम माना तो मुक्त हो जाएगा)
सर को उठाकर चलनेवाले….
(अहंकार को सच मानने  वाले )
सर को उठाकर चलनेवाले एक दिन ठोकर खायेगा (जब अहं की मौत होगी)
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जायेगा – २
ढल जायेगा ढल जायेगा – २

मौत सबको आनी है कौन इससे छूटा है
तू फ़ना नही होगा ये खयाल झूठा है
साँस टूटते ही सब रिश्ते टूट जायेंगे बाप माँ बहन बीवी बच्चे छूट जायेंगे
तेरे जितने हैं भाई वक्त का चलन देंगे (यहां मोह और माया पर वार)
छीनकर तेरी दौलत दो ही गज़ कफ़न देंगे
जिनको अपना कहता है कब ये तेरे साथी हैं
कब्र है तेरी मंज़िल और ये बराती हैं
ला के कब्र में तुझको मुरदा पाक डालेंगे
अपने हाथोंसे तेरे मुँह पे खाक डालेंगे
तेरी सारी उल्फ़त को खाक में मिला देंगे
तेरे चाहनेवाले कल तुझे भुला देंगे
इस लिये ये कहता हूँ खूब सोचले दिल में
क्यूँ फंसाये बैठा है जान अपनी मुश्किल में
(कल का क्या भरोसा है
आज बस संभल जायें)
कल से तु कर तौबा आज बस सम्भल जायें – २
दम का क्या भरोसा है जाने कब निकल जाये – २

मुट्ठी बाँध के आनेवाले …
मुट्ठी बाँध के आनेवाले हाथ पसारे जायेगा
धन दौलत जागीर से तूने क्या पाया क्या पायेगा
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जायेगा

2 Comments

  1. adgaly says:

    Nice iine✍️🙂✌️

    Liked by 1 person

Leave a Comment

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.