हक़ीरो-नातुवां तिनका

जिस प्रकार यह चीन के म्यूज़ियम में लगा रोबोट चल तो रहा था बिजली से लेकिन लोग इसको समझ रहे थे कि लाल तेल को समेटने का काम कर रहा है।उसी प्रकार हम भी हक़ीरो-नातुवां तिनका हैं।
हक़ीरो-नातुवां तिनका की तरह चीन के म्यूज़ियम में रखा प्रसिद्ध रोबोट चल तो बिजली से रहा था लेकिन लोग इसको लाल तेल समेटने वाली मशीन यह काम कर रही है ऐसा समझ रहे थे। तीन साल तक काम करने के बाद इस मशीन को बंद कर दिया गया, उसी प्रकार हम भी किसी और स्रोत से बिजली लेकर काम कर रहे हैं और एक दिन बिजली की सप्लाई बंद कर दी जाएगी। लेकिन हम सोंचते हैं कि हम काम कर रहे हैं।

हक़ीरोनातुवां तिनका, हवा के दोष पर पर्रां।

समझता था के बहरो-बर पर उसकी हुक्मरानी है।।

मगर झोंका हवा का एक अलबेला,

तलव्वुत केश बेपरवाह

जब उसके जी में आए रुख़ पलट जाए

हवा पलटी बुलंदी का फुसूँ टूटा,

हक़ीरो-नातुवां तिनका,

पाया है अपने को सबकी ख़ाक-ए-पा पर ।

ख़ुदा को जानकर इस राहगीरे बेपरवाह को, अब यह ख़्वाबे-अज़मत ही दिखाई देता है ।

एक तुच्छ और निर्बल तिनका कभी हवा पर चढ़ जाता है । वह आकाश में उड़ने लगता है । उसे हवा में उड़ते हुए यह लगता है जैसे इस नीचे दिखाई देने वाले पूरा इलाक़ा उसकी मेहरबानियों से ही मौजूद है । उसीके हुक्म से ही यह चलता सा लगने लगता है ।

लेकिन हवा का झोंका ही था वह जो बड़ी बेपरवाही से उसे उड़ा कर ले गया था और कभी भी, किसी भी क्षण उसका रुख़ पलट जा सकता है । अहंकार की हवा, समय की हवा आख़िर कब तक साथ देती इस तिनके से शरीर का ।

कुछ ही देर में हवा पलटी और तिनके की बुलंदी का सपना टूट गया ।

और अब तिनका रूपी शरीर राह की धूल में मिल गया है । आख़िर इस तिनके में भी ईश्वर मौजूद तो है ही। इसलिए यदि कोई अपने को जान ले तो ऐसा कहते हैं कि उसने ईश्वर को भी जान लिया। इसलिए कोई कोई संत आत्मज्ञान को पाकर कहते हैं कि आत्मज्ञान के पाते ही अहंकार जैसे ग़ायब हो जाता है और अब वह तिनका तिनके (ईश्वर के ) पास स्थित हो जाता है उसकी छाया (शरीर) मात्रा धूल में मिलती है । अहंकार के रहते हम छाया मात्र (शरीर ) में ही जीते हैं और असल को छू भी नहीं पाते हैं ।

यह भी ठीक नहीं है कि हम अहंकार की यात्रा पर ही ना निकलें क्योंकि पहला तो यह हमारे बस में ही नहीं है। कब हम इस यात्रा पर निकल जाते हैं यही तो हमें पता नहीं चलता? जिसने भी इसे पहचाना वह क़रीब क़रीब अपने अहंकार के शिखर पर पहुँच चुका होता है। इसीलिए जापान में जो सर्वश्रेष्ठ समुराई या तीरंदाज़ आध्यात्मिक यात्रा पर जाना चाहता है, वह शिखर पर होते हुए ही संन्यास ले लेता है ताकि अहंकार को पहचाना जा सके। अहंकार को अपने सर्वश्रेष्ठ पर ही सबसे आसानी से पहचाना जा सकता है, क्योंकि तब वह आपको सामने दिखाई देता है, और यदि उसने आपको पीछे से पकड़ रखा है तो सबसे कठिन है उसे पहचान पाना। जैसे कोई ढोंगी साधु का अहंकार। यदि कोई व्यक्ति ढोंगी हो याने की जो वह नहीं है वह जीवन जीता हो। जैसे कोई संसार से भागकर, ना कि संसार की निरार्थकता को जानकर, आध्यात्मिक जीवन जीने का प्रयत्न करे। तो यह कहा जाएगा कि उसको अहंकार ने पीछे से पकड़ रखा है। क्योंकि जिसे आप जानते ही नहीं हैं उसे आप छोड़ कैसे सकते हैं? संसार में रहकर ही संसार को जाना जा सकता है। समुराई बिल्कुल योग्य है संन्यास के लिए, यदि वह चाहे तो।

अहंकार को जानते ही अहंकार चला जाता है बोलना भी ग़लत होगा क्योंकि जो है ही नहीं, जिसकी स्वयं की कोई सत्ता ही नहीं है, जो था ही नहीं वह जाएगा भी कैसे? सत्य या असल प्रकट होता है और रोशनी होते ही अंधेरे की तरह का अहंकार ग़ायब हो जाता है। विनम्रता आ जाती है, लानी नहीं पढ़ती। यदि थोपी गयी विनम्रता है तो फिर अहंकार पीछे से आ गया।

यदि हमने अहंकार को शिखर पर नहीं जाना तो हम एक महान अवसर से चूक गए। जब भी मौत होती है तो अहंकार की ही मौत होती है। यदि उसे मौत के पहले ही जान लिया तो फिर शरीर छाया मात्र रह जाता है। फिर छाया धूल में गिरे या गुलाब पर कोई फ़रक नहीं पढ़ता ।

इस बात को सिर्फ़ समझने से जीवन वापस वैसा ही चलने लगेगा। लेकिन यदि हमने होश पूर्वक जीवन जीने की शुरुआत कर दी आज तो हम अहंकार को उसके शिखर पर पहचान पाएँगे। उसके लिए मैंने सुबह ब्रश करते समय इसे प्रयोग में लाया और इसके प्रभाव आश्चर्यजनक है।

ओशो द्वारा सुझाया सहज ध्यान यानी होंश पूर्वक जीना यानी रोज़ के काम में होंश का प्रयोग मेरे जीवन को बदलकर रख गया। अपने आप सहज ही मन सपने देखना कम कर देता है, फिर जब भी सपना शुरू करता है तो विवेकपूर्वक उसका आना दिखाई देने लगता है, और दिखाई दे गया कि फिर बुना नया सपना मन ने-तो फिर रोकना कोई कठिन काम नहीं है। मैंने इसे ओशो की एक किताब से सीखा और जीवन में सुबह ब्रश करते समय प्रयोग करके साधा।जिसे मेरे अंग्रेज़ी के पोस्ट ‘Awareness as meditation’पर पढ़ा जा सकता है।

नमस्कार ….. मैं अपनी आंतरिक यात्रा के व्यक्तिगत अनुभवों से अपनी टिप्पणियाँ लिखता हूँ। इस पोस्ट में दुनिया भरके रहस्यवादियों की शिक्षाएँ शामिल हो सकती हैं जिन्हें मैं अपने अनुभव से तौलकर आज भी मानने लायक समझता हूँ। अधिकजानकारी के लिए और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जुड़ने के लिए वेबसाइट https://linktr.ee/Joshuto पर एक नज़र डालें, या मेरे यूट्यूब चैनल या पॉडकास्ट आदि सुनें।

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