मन रे ! तू काहे ना धीर धरे-गाने का ओशो संन्यासी वर्ज़न

मन रे जो प्रेम के मार्ग में बाधा है उसे इन दिल के आकार की पत्तियों से कहता है कि तू काहे ना धीर धरे
काहे ना धीर धरे

मन रे ! तू काहे ना धीर धरे

जग निर्मोही, मोह ना जाने, उसका तू मोह करे

मन रे ! तू काहे ना धीर धरे

इस जीवन की चढ़ती ढलती धुप को जिसने बाँधा

रंग को जिसने बिखराया और रूप को जिसने ढाला

उसे काहे ना सिमर करे?

मन रे ! तू काहे ना धीर धरे

उतना ही उपकार समझ मन, जग जितना काम दिला दे

जनम मरण का खेल है सपना, ये सपना बिसरा दे

सपने में कोई क्यों रहे?

मन रे ! तू काहे ना धीर धरे

मन रे ! तू काहे ना धीर धरे

जग निर्मोही, जो मोह ना जाने, उसका मोह करे

मन रे ! तू काहे ना धीर धरे।

मन सपने बुनते चले जाता है, और हम उसके पीछे भागते भागते पूरा जीवन बिता देते हैं, और सपना कभी हक़ीक़त हुआ है? तो जीवन के अंत में जब हक़ीक़त से सामना होता है तब अपनी भूल का एहसास होता है। मनुष्य बहुत पछताता है, कोई कोई कोमा में भी चला जाता है, लेकिन अब वक्त नहीं बचा। बस यही पछतावा अगले जन्म की आधारशिला बन जाता है।

जीते जी सपने को जान लिया कि सपना है तो समझो मुक्त हुए। ओशो द्वारा सुझाया सहज ध्यान यानी होंश पूर्वक जीना यानी रोज़ के काम में होंश का प्रयोग मेरे जीवन को बदलकर रख गया। अपने आप सहज ही मन सपने देखना कम कर देता है, फिर जब भी सपना शुरू करता है तो विवेकपूर्वक उसका आना दिखाई देने लगता है, और दिखाई दे गया कि फिर बुना नया सपना मन ने-तो फिर रोकना कोई कठिन काम नहीं है।

ओशो ने ईशावास्य उपनिषद में कहा है, “जब मन बिलकुल ठहर जाता है तो होता ही नहीं। मन जब तक दौड़ता है, तभी तक होता है। सच तो यह है कि दौड़ का नाम ही मन है। मन दौड़ता है, यह भाषा की गलती है। यह गलती वैसी ही हो रही है जैसी जैसे हम कहते हैं कि ‘बिजली चमकती है’। असल में जो चमकती है, उसका नाम बिजली है। आपने कभी नहीं चमकने वाली बिजली देखी है? ठीक वैसे ही, ठहरे मन का कोई अर्थ नहीं होता है। मन अगर ठहर जाए तो वह आ-मन no-mind हो जाता है। कबीर ने इसे अमनी अवस्था कहा। जैसे चमकना और बिजली एक ही चीज़ के दो नाम हैं, वैसे मन और दौड़ना।”

होंश को १ सेकंड के लिए भी साध लेने पर जब एक बार अ-मनी अवस्था घटने लगे तो आपने एक बड़ी महत्वपूर्ण प्रक्रिया की आधारशिला रखी है। बुद्ध ने उसे कहा विचारों का विश्लेषण। जब भी अविचार घटे तो तुरंत उसके पहले वाले विचार को पकड़ो, फिर उससे उसके पहले वाले विचार पर जाओ, ऐसा करते करते फिर इन विचारों का जन्म जिस घटना या वाक्य आदि से शुरू हुआ उस तक जाओ। तब पहली बार अनुभव होगा कि मन ने इतनी से देर में क्या प्यारा सपना बुन दिया है। अब यह आपकी खुद की समझ का हिस्सा बना है। अब इसको आप कभी नहीं भूलेंगे, इसके बाद के जन्मों में भी। जब एक बार यह समझ बन गया तो अब जब जब भी विचार या मन सपना बनेगा आप तुरंत पहचान जाएँगे। और धीरे धीरे यह कम होता चला जाएगा। फिर जिस पर आप सोंचना चाहोगे उसी पर टिकेगा। 

नमस्कार ….. मैं अपनी साक्षी की साधना के व्यक्तिगत अनुभवों से अपनी टिप्पणियाँ लिखता हूँ। इस पोस्ट में दुनिया भरके रहस्यवादियों की शिक्षाएँ शामिल हो सकती हैं जिन्हें मैं अपने अनुभव से तौलकर आज भी मानने लायक समझता हूँ। अधिकजानकारी के लिए और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जुड़ने के लिए वेबसाइट https://linktr.ee/Joshuto पर एक नज़र डालें, या मेरे यूट्यूब चैनल या पॉडकास्ट आदि सुनें।

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