आसपास जो होता है दिखता नहीं

जो होता दिखता नहीं समझाने के लिए एक फ़ुल के फोटो का उपयोग किया है
होता है वह दिखता नहीं को समझना हो तो इस फ़ुल को देखें इसमें ईश्वर, जो की अमर है, वही खुश होकर खिला है, हर फूल में। ईश्वर ही गा रहा है चिड़िया की चहचहाहट में।

जो होता ‘है’ वो दिखता ‘नहीं’, जो दिखता ‘है’ वो होता ‘नहीं’।

दिखने की दुनिया जन्नत है, होने की दुनिया बस नज़ारा है॥

एक सिंहासन दिखता है, जैसे कई हुए वैसे ही लेकिन उनमें से कितने बचे? माना कि सिंहासन नष्ट होकर राख बन गया। लेकिन राख अब भी है। तो यह जो सिंहासन अब राख के रूप मैं है यह उसका होना है। इस राख को हवा में उड़ा दो तो सिंहासन अब हवा के रूप में है। तो यह सिंहासन का हवा के रूप में होना यह होने की दुनिया है। यहाँ कुछ भी नष्ट नहीं होता, किसी और रूप में मौजूद रहता है लेकिन नज़ारे के बाहर नहीं जाता चाहे ओझल रूप में ही क्यों ना मौजूद रहे।

होने की दुनिया में भी सिंहासन होते हैं, लेकिन खुद ईश्वर इन्हें तुम्हें सौंपता है। कबीर, बुद्ध, Jesus, लाओ त्ज़ु कुछ ऐसे ही सिंहासनों पर आज भी विराजे हुए हैं।

इसलिए जो दिखने की दुनिया है वो जन्नत है, या जहन्नुम है जैसा व्यक्ति चाहे बना ले, लेकिन होने की दुनिया सिर्फ़ एक नज़ारा है। राजा जनक के अष्टावक्र से पूछने पर कि मुक्ति क्या है? ज्ञान कैसे प्राप्त होगा? और वैराग्य कैसे घटेगा? के जवाब में अष्टावक्र ने कहा था कि मुक्ति तेरा स्वभाव है, और तू इसका अनुशठान करता है? तू इस जग का दृष्टा है, साक्षी है- मतलब तू नज़ारे को देखने वाला है ना की कोई ‘जन्नत की तरह यह जगत का हिस्सा है।

और जो जीते जी इस दिखने की दुनिया से, जिसे दिखाई देता है उसका हिस्सा बनता है -वह नष्ट होता है इस दुनिया से और उदय होता है होने की दुनिया में। वह अमर हो जाता है। वही असली घर है हर मनुष्य का । फिर चिड़ियों की चहचहाहट के संगीत से उसके स्वागत में खुद ईश्वर ही तो उसका स्वागत कर रहा होता है। तब जो फूल खिले हैं वे उसके स्वागत में ही तो खिलाए हैं ईश्वर ने। खुद ईश्वर ही हुआ है फूल और पक्षी, यह एहसास होते ही फिर सिर झुक जाता है।

लेकिन जन्नत की पकड़ इतनी मज़बूत है कि उसमें रहते उससे बाहर होना किसी महान ठग के ही बस का है।

कबीर ने कहा है।

माया तो ठगनी बनी, ठगत फिरत सब देश।जा ठग ने ठगनी ठगो, ता ठग को आदेश॥

जो जीते जी दुनिया को बस एक नज़ारे की तरह देखने लगा और उसमें नाटक के पात्र की तरह जीने लगा उसकी अब मृत्यु सम्भव नहीं वह अमर हो गया। मीरा का, कबीर का, ओशो का होना युग युग तक क़ायम रहेगा और वे यह नज़ारा शरीर छोड़कर भी देख रहे हैं। ज़रूरत पड़ने पर आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वालों की मदद भी करते रहते हैं।

इस दिखने की दुनिया से होने की दुनिया में जाने के लिए यह सबसे ज़रूरी है कि व्यक्ति जो खुद है है और जैसा है उसे जाने फिर स्वीकार करे। दिखने की दुनिया जन्नत है तो जहन्नुम भी है। और जहां दो हैं वहाँ खिंचाव है, तनाव है, दुःख है, सुख है, मन है, अहंकार है, कॉम्पटिशन है।

और होने की दुनिया में आपके सामने बस नज़ारा है और आप उससे तटस्थ हैं। ना मन है, ना शरीर है, है तो बस नज़ारा है खुद भी और सबका भी । आप अपने घर आ गए वापस, अब तो बस आनंद है । असीम आनंद । परमानंद।

यह अवस्था हम सबको बचपन में हासिल थी, लेकिन समाज, परिवार, धर्म, देश इत्यादि के बीच बड़े होते समय हमारे ऊपर मुखोटे चढ़ा दिए गए। सबको जानें, और स्वीकार करें तो यात्रा आरम्भ सकती है। स्वीकार करें उनको मुखौटों की तरह, तभी हम उनसे मुक्त हो सकते हैं। जैसे मोदी का मुखोटा लगाकर हर कार्यकर्ता अपने आपको मोदी समझने लगता है, और मोदी की बुराई उसे अपनी बुराई लगने लगती है। ठीक वैसे ही सारे मुखौटे हम समय आने पर अपने ऊपर लगा लेते हैं। नौकर के सामने अलग, मालिक के सामने अलग, पत्नी के सामने अलग, बच्चों के सामने अलग, नेता के सामने अलग, धार्मिक कार्यक्रमों में अलग। लेकिन वह जो इन्हें पहन रहा है, फिर उतारकर दूसरा पहन रहा है, फिर तीसरा पहन रहा है और यह सब इतनी तेज़ी से कर रहा है कि उसे अपना खुद का असली चेहरा ही भूल गया है। जो उसको ईश्वर ने दिया था, जो उसने बचपन में जिया था। वही है जिसे बचपन से लेकर आजतक के सारे चेहरे और मुखौटे याद हैं। जब हम कोई बात भूल जाते हैं, तो उसको दिमाग़ में या दिमाग़ रूपी मेमोरी में ढूँढता है। वह मेमोरी से भी परे है, मेमोरी की सीमा से बाहर है तभी तो ढूँढ पाता है।

इस यात्रा में यह महत्वपूर्ण है कि हम जानें कि हम कहाँ खड़े हैं। जैसे किसी कोचिंग क्लास में कम्पेटिटिव इग्ज़ाम की तैयारी के लिए जाते हैं तो वहाँ एक टेस्ट के बाद फ़ीस का निर्णय होता है क्योंकि उससे पता चलता है कि आपकी खुद की तैय्यारी कितनी है और उसके कारण आप उस परीक्षा की मेरिट लिस्ट में कहाँ स्थित हैं।

अपनेआप को जो हैं और शरीर से, मन से और आत्मा से जैसे हैं उसको स्वीकार करने से कम से कम यात्रा प्रारम्भ की जा सकती है। लाओ त्ज़ु ने इसीलिए कहा कि प्रथम की दौड़ कभी नहीं क्योंकि तब जन्नत की दुनिया से छूटना असम्भव हो जाता है, विशेषकर उनके लिए दौड़कर उसे हासिल करते हैं। और उसका दूसरा मंत्र है ख़ाली या अंतिम होने को जो राज़ी है वही नज़ारे की दुनिया में प्रवेश पा सकेगा। और उसका तीसरा मंत्र है प्रेम करना – प्रकृति से, अपनेआप से ना सिर्फ़ स्वीकारें अपने शरीर को उसकी सीमाओं को बल्कि प्रेम करें कि यह वरदान या तोहफ़ा मिला तुम्हें । फ़िट सिंहासन जो प्राप्त होता है वह ईश्वर का वरदान को पूरा करने पर मिलता है और कभी नष्ट नहीं होता। जीसस ने इसे kingdom of God कहा और तुम राजा की भाँति प्रवेश करोगे उसमें. हिंदुओं ने उसे रामराज्य में राम के रूप में तुम्हारा राज्याभिषेक होगा कहकर अपनी कथाओं में बताया। जीसस भी यही सीखकर गए थे और जो नहीं जानते थे उनको सिखाने का प्रयत्न करते रहे।

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ओशो द्वारा सुझाया सहज ध्यान यानी होंश पूर्वक जीना यानी रोज़ के काम में होंश का प्रयोग मेरे जीवन को बदलकर रख गया। अपने आप सहज ही मन सपने देखना कम कर देता है, फिर जब भी सपना शुरू करता है तो विवेकपूर्वक उसका आना दिखाई देने लगता है, और दिखाई दे गया कि फिर बुना नया सपना मन ने-तो फिर रोकना कोई कठिन काम नहीं है। मैंने इस होंश के प्रयोग को ओशो की एक किताब से सीखा और जीवन में सुबह ब्रश करते समय प्रयोग करके साधा। और कुछ समय बाद मुझे एक बार विचार शून्य अवस्था का अनुभव हो गया, तब मैंने इसको दूसरे सारे कार्यो, यहाँ तक की सेक्स के दौरान भी!, उपयोग किया तो मुझे अभूतपूर्व अनुभव हुए। उसके कारण मेरी आध्यात्मिक यात्रा को बड़ा बल मिला। उसी से मैं जो होता है दिखता नहीं का मतलब समझ पाया।