यहाँ यह बताना उचित होगा कि इस post के पहले ‘हर शरीर में घट रही है रामायण और महाभारत’ post को पढ़ें. ताकि मैं यहाँ कृष्ण, पांडव एवं द्रौपदी कहकर जिसकी ओर इशारा कर रहा हूँ वे जाने जा सकें। यहाँ कृष्ण बांसुरी लिए, मोर पंख वाले कृष्ण नहीं हैं बल्कि कालातीत सदा रहने वाला अंधियारा है जिसका अनुभव तभी होता है जब निर्वाण पर दिया -जो enlightenment पर जला था- वह बुझता है। और ऐसा ही सारे पात्र महाभारत के इस शरीर के भीतर ही मौजूद हैं।
यदि मुझसे कहा जाए कि महाभारत के इस प्रकरण की व्याख्या उपरोक्त महाभारत और कृष्ण के संदर्भ में की जाए तो मैं उसमें यह बदलाव करना चाहूँगा।
मनुष्य शरीर में पाँच शरीर है चाहे स्त्री हो या पुरुष। उसकी एक ही सहचरी है वह शक्ति स्वरूपा काली कहो, जगदंबा कहो। वही द्रोपदिके रूप में पांडवों की स्त्री के रूप में हर शरीर में स्थित है।
पुराने जमाने में स्त्री को ज्ञान प्राप्ति नहीं हो सकती थी, लेकिन मीरा, राबिया, दयाबाई इत्यादि ने साबित कर दिया कि जीसस के ज्ञानप्राप्ति के बाद से धर्म की यात्रा में अब समाज का निम्न वर्ग और स्त्री दोनों ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं, और कई कर भी चुके। आज जबमहिला ना सिर्फ़ घर सम्भालती है बल्कि नौकरी/व्यवसाय में भी कुशलता से काम करके कंधे से कंधा मिला रही है। यानी स्त्रियों ने अपने पुरुष शरीर को निखारना सीख लिया है, और उसे उपयोग में भी ला रही है, या कहें पुरुषों से बेहतर तरीक़े से उपयोगी साबित हो रही है।
आज की महाभारत काल में अब द्रोपदि इतनी असहाय महसूस नहीं करेगी जितनी की तब द्रोपदि कर रही थी। तब पिता ने कन्यादान करत्याग दिया, और फिर कौरवों को तो challenge कर आयी थी बचे पाँचों पांडव तो बाक़ी सब तो ठीक धर्मराज यूधिष्ठिर भी दांव पर लगा बैठे थे। तोएकमात्र सहारा कृष्ण ही बचे। आज भी स्त्री के लिए ईश्वर दर्शन के लिए सर्व का त्याग ही सबसे महत्वपूर्ण है। चाहे मीरा हो या आजकी स्त्री, जब सबने समय आने पर त्याग देना है तो क्यों ना स्त्री ही त्याग दे? मीरा के समय यह ठीक भी था।
लेकिन आज के वक्त में यदि फिर से महाभारत लिखी जाए तो पहले जो नियम था कि धर्म की/ईश्वर की यात्रा में स्त्री का भी त्याग कियाजा सकता है और पुरुष अपनी करुणा और दया भाव को दबाकर कठोर बनकर ही ऐसा कर सकता है जिसे हम आंतरिक स्त्री के चीरहरण के रूप से जानते हैं। इसीलिए सभी साधु, वैरागी अनिवार्य रूप से कठोर स्वभाव के होंगे, दिखावे के लिए चाहे बहुत सौम्य मालूम पड़ते हों, लेकिन यह सौम्यता बहुत गहरी नहीं होगी। ओशो ने कईयों को थोड़ा सा खरोंचा और वे बिखर गये।
तो अब यह बदलाव आएगा की धर्मराज द्रोपदि को दांव पर नहीं लगाएँगे ( पुरुष स्त्री का त्याग नहीं करेगा या अपने भीतर के स्त्री शरीर को दबाएगा नहीं) वरन अब उसकी लाज बचाएगा और द्रोपदि के साथ मिलकर कृष्ण की प्राप्तिका प्रयत्न ओशो के तरीक़े से कर पाएँगे।दोनों के बीच एक तारतम्य स्थापित करने का प्रयत्न होगा। और उसके लिए अपनी ownership का त्याग भी करेंगे तो अपनी friendship को बढ़ाएँगे और उसे पूरी आज़ादी देंगे कि वह अपने दोस्तों के साथ सबला नारी की तरह घूम फिर भी सके । कृष्ण अब दोनों की मदद करेंगे उनको इस कठिन समय में धर्म की यात्रा को पूरा करने में। समयनिकलना ही बहुत कठिन हो गया है, तो अब जब भी दोनों साथ मिलकर (चाहे sex के दौरान Tantra Meditation ही क्यों ना हो) प्रयत्न करें तभी कृष्ण को आना होगा।
awareness मेडिटेशन या mindfulness मेडिटेशन का दैनिक दिनचर्या के किसी भी एक काम के दौरान दोनों, या कोई भी एक, प्रयोग करके पहले awareness को साधें और फिर उसको सेक्स के दौरान apply करें इस प्रकार दिन के सभी कामों में इसको उपयोग में ला सकते हैं। ईश्वर सदा present में है, जब भी आप पूरी तरह present में here and now होते हैं, तब आपसे ईश्वर बहने लगता है। उसे ही हम aha मोमेंट कहते हैं, लेकिन धीरे धीरे अधिक प्रयोग करने से वह अनुभव गहरा होने लगता है और फिर उसका एहसास भी स्पष्ट होने लगता है। जब एक सीमा से ज़्यादा आप उसमें ठहर जाते हैं तो उसकी एक झलक वह दिखलाता है। तो sex से सिर्फ़ इस पहली मद्धिम सी झलक या मद्धिम से अहसास की ख़बर देता है ताकि आप उसे फिर पहचान सकें जब वह meditation से अनुभव में आए, उसपर रूक नहीं जाना है। उस ना रूकने के लिए ही कृष्ण की कृपा की आवश्यकता है। क्योंकि पहले के कई जन्मों में भी हम कहीं ना कहीं रूक गए थे। तभी यह जन्म मिला है वह भी उसकी कृपा और हम पर भरोसा ही बताता है।
सिर्फ़ दोनों को एक दूसरे का पूरा ध्यान रखना है, और पूरी स्वतंत्रता भी देनी है। अब वह ईश्वर तभी मदद के लिए आएँगे। उनकी मदद ही उनका दर्शन भी है। मैंने पाया, आप भी पा सकते हैं।
Simplest Awareness meditation :
By being totally aware during brushing feeling it’s abrasion on every tooth, coupled with sensation of paste etc all thoughts slowly got dissolved and only present moment remained. Miraculous it is, as it engrossed all my activities over the period of time.
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ओशो द्वारा सुझाया सहज ध्यान यानी होंश पूर्वक जीना यानी रोज़ के काम में होंश का प्रयोग मेरे जीवन को बदलकर रख गया। अपने आप सहज ही मन सपने देखना कम कर देता है, फिर जब भी सपना शुरू करता है तो विवेकपूर्वक उसका आना दिखाई देने लगता है, और दिखाई दे गया कि फिर बुना नया सपना मन ने-तो फिर रोकना कोई कठिन काम नहीं है। मैंने इसे ओशो की एक किताब से सीखा और जीवन में सुबह ब्रश करते समय प्रयोग करके साधा।
Awareness meditation is the way worked for me, may be you too find it suitable otherwise Dynamic meditation is for most of the people. There are 110 other meditation techniques discovered by Indian Mystic Gorakhnath about 500years before and further modified by Osho that one can experiment and the suitable one could be practiced in routine life.