कर्ता में अकर्ता को और अकर्ता में कर्ता को जो देखता है। वही देखता है।

मेरे बगीचे के एक फ़ुल के फोटो का प्रयोग मैंने कर्ता में अकर्ता को बताने के लिए किया है
कर्ता में अकर्ता को और अकर्ता में कर्ता को जो देख पाता है वह इस फ़ुल को अकर्ता मानकर इसे खिलाने वाली प्रकृति को कर्ता समझता है चाहे पेड़ पर लगा हुआ होने से पेड़ ने खिलाया है फ़ुल यह नहीं कहेंगे।

गीता के एक श्लोक पर आधारित है यह पोस्ट जिसे मैं जब भी पढ़ता था तो पूरा समझ नहीं पाता था। 

ऐसा प्रतीत होता है कि कर्ता में अकर्ता वाले गीता के श्लोक पर ‘अंधे और लंगड़े’ की कहानी आधारित है। यही हिंदू धर्म के अनुसंधान की खूबी है कि सब गूढ़ रहस्य की बातेंकहानियों के माध्यम से प्रचलित कर दी गयीं। और वे सब द्विअर्थी बनायी गयीं । एक अर्थ में सांसारिक जीवन के लिए उपयोगी औरदूसरे अर्थ में आध्यात्मिक जीवन के लिए भी उपयोगी। सहज ही सिर झुक जाता है उन रहस्यदर्शियों के प्रति।धर्म के फल लगें और पकें ऐसा पेड़ लगाने जैसा काम करगए । पीढ़ियाँ आती रहेंगी और फल खाती रहेंगी। असली के ब्राह्मण रहे होंगे। 

हमारा शरीर अंधा है, क्योंकि वह चल सकता है। सारे सांसारिक काम शरीर के माध्यम से ही पूरे होते हैं। और आत्मा वह  लंगड़ा है, क्योंकि बस देखता रहता है कुछ कर ही नहीं सकता है। और अंधे के कंधे पर लंगड़ा सवार होता है, तभी वह दोनों मिलकर जो जंगल में आग लग गयी है उससे बाहर निकल सकते हैं।

कंधे पर सवारी का मतलब ही यह है कि हम उसे, दृष्टा को जीवन में महत्व देंगे तभी वह हमारी मदद कर सकेगा। अभी हमने उसे अपना साथी बना रखा हैऔर पीछे कर रखा है। इसलिए हम अंधे की तरह बस भेड़चाल की तरह सभी एक दूसरे के सहारे चले जा रहे हैं। जीसस ने जो भटकी हुईभेड़ को कंधे पर बिठा कर लाए थे, वह यही कारण था कि भेड़ होते हुए भी उसने अपना खुद का निर्णय सर्वोपरि माना और भीड़ से अलगहोकर चलने का साहस कर दिखाया जबकि आम मनुष्य तक नहीं कर पाता है।

सांसारिक जीवन वह जंगल है जिसमें दुःख, तनाव, ईर्ष्या इत्यादि रूपी आग लगी है। और इससे बाहर दोनों मिलकर ही निकल सकते हैं।वह दोनों को समझना और साथ रहकर निकलना ही धर्म की यात्रा है। बाक़ी तो इसकी आग में जलकर मर ही रहे हैं। यह आग इतनीधीमी है कि इसका एहसास ही नहीं होता। और तो और व्यक्ति इसका भी accustomed हो जाता है। लेकिन बाहर निकले इसकाख़याल ही नहीं आ पाता। इसे ही कोई रहस्यदर्शी नशा या शराब का नाम देकर बता गया। 

आत्मा अकर्ता है, जब चलने की बात आये। और कर्ता है जब देखने की बात आए। इसे कहेंगे कर्ता में अकर्ता को देखना। और शरीर कर्ता है सांसारिक कार्य का, लेकिनअकर्ता, अपने को देख नहीं पाता, है जब तीसरी आँख से या भीतर की आँख से देखने की बात आए। तो इस प्रकार शरीर हमारा स्वरूप नहीं है क्योंकि यह तो  मृत्यु के साथ ही ख़त्म हो जाएगा। औरइससे तथा इसकी इंद्रियों की वासना को उपयोग इतना ही प्रयोग करना समय रहते जान लिया जाना चाहिए ताकि जो सदा रहेगा हमाराआत्मा, जो कि हमारा स्वरूप भी है, उसको जानने के लिए हम समय निकाल सकें, प्रयत्न कर सकें। 

तो जब हम काम करें, कोई भी एक काम ले लें दिन का जिसे रोज़ करते हों, तो देखते रहें कि इसमें कर्ता कौन है और अकर्ता कौन है। और जानें कि आत्मा देख रही है जो भी काम शरीर कर रहा है, और मैं आत्मा हूँ, मेरा स्वरूप आत्मिक है इसलिए मैं तो बस देख रहा हूँ, इसे हम भीतर की आँख से देखना कह सकते हैं, इस शरीर को इस छोटे से काम को करते हुए। बस कुछ समय के लिए आप here and now का अनुभव करेंगे जब इस सब प्रयत्न के दौरान आपके मन में कोई विचार नहीं होगा और आप अपनेआप को काम करते हुए बस देख रहे होंगे। यही आत्मा में स्थित हो जाना है। यही दृष्टा होने का अनुभव है। और आप कुछ पल के लिए शक्ति के अनंत भंडार से जुड़ जाते हैं। दिन भर के काम के बाद भी थकान महसूस नहीं करेंगे उस दिन।

ओशो ने इसी को awareness or mindfulness meditation कहा है।


जितनी जल्दी हम इस यात्रा पर जाने के लिए चुपचाप प्रयत्न करना प्रारंभ कर सकें उतना बेहतर,  फिर चाहे छोटा सा ही सही,  और इस छोटे से नित्य प्रयोग के कारण तुरंत (३-६ साल में ही) परिणाम हमको मिलताहै, जब हम पूरी तरह समर्पित होकर, अपनी basic जिम्मदारियों से मुक्त होकर इसमें लगते हैं। यह मेरा अनुभव कहता है। 

ओशो द्वारा सुझाया सहज ध्यान यानी होंश पूर्वक जीना यानी रोज़ के काम में होंश का प्रयोग मेरे जीवन को बदलकर रख गया। अपने आप सहज ही मन सपने देखना कम कर देता है, फिर जब भी सपना शुरू करता है तो विवेकपूर्वक उसका आना दिखाई देने लगता है, और दिखाई दे गया कि फिर बुना नया सपना मन ने-तो फिर रोकना कोई कठिन काम नहीं है। मैंने इसे ओशो की एक किताब से सीखा और जीवन में सुबह ब्रश करते समय प्रयोग करके साधा।जिसे आप मेरे अंग्रेज़ी के पोस्ट ‘Awareness as Meditation’ में पढ़ सकते हैं। 

नमस्कार ….. मैं अपनी आंतरिक यात्रा के व्यक्तिगत अनुभवों से अपनी टिप्पणियाँ लिखता हूँ। इस पोस्ट में दुनिया भरके रहस्यवादियों की शिक्षाएँ शामिल हो सकती हैं जिन्हें मैं अपने अनुभव से तौलकर आज भी मानने लायक समझता हूँ। अधिकजानकारी के लिए और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जुड़ने के लिए, वेबसाइट https://linktr.ee/Joshuto पर एक नज़र डालें, या मेरे यूट्यूब चैनल  या पॉडकास्ट भी सुन सकते हैं। 

कॉपीराइट © ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन, अधिकतर प्रवचन की एक एमपी 3 ऑडियो फ़ाइल को osho डॉट कॉम से डाउनलोड किया जा सकता है या आप उपलब्ध पुस्तक को OSHO लाइब्रेरी में ऑनलाइन पढ़ सकते हैं।यू ट्यूब चैनल ‘ओशो इंटरनेशनल’ पर ऑडियो और वीडियो सभी भाषाओं में उपलब्ध है। OSHO की कई पुस्तकें Amazon पर भी उपलब्ध हैं।

मेरे सुझाव:- 

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