
पूरब के देश जिसमें ख़ासकर India, Pakistan, Bangladesh, Afghanistan, Bhutan, Nepal, Myanmar, Tibet यानी हिमालयऔर उससे जुड़ी पर्वतमाला, उनसे जुड़े तराई का क्षेत्र तथा उससे निकली नदियों का क्षेत्र अध्यात्म के अनुसंधान का केंद्र रहे हैं प्राचीनसमय से।
इन अनुसंधानों के प्रयोग फिर दक्षिण भारत, श्रीलंका, Indonesia, Vietnam इत्यादि क्षेत्रों तक फैल गये, और लोग उससे आध्यात्मिकयात्रा को भी जीवन का मुख्य हिस्सा मानकर जीवन जीने लगे।
तो यदि हिमालय से जुड़ा और तराई तथा नदियों से जुड़ा भाग जब आध्यात्म से शून्य होने लगा तब उसके प्रभाव से दक्षिण में इसकीख़ासी बढ़ोतरी होने लगी।
और अब जब पूरा पूरब इस जीवन के महत्वपूर्ण अनुसंधान से रीता होने लगा तब पश्चिम में सत्य के प्रयोग आधुनिक तरीक़ों का उपयोगकरके तेज़ी से होने लगे।
कहने का मतलब यह है कि जब जब भी जिनके ऊपर इस महत्वपूर्ण अनुसंधान की ज़िम्मेदारी होती है, वे अपने पुरुषार्थ का दुरुपयोगकरते हैं तो सत्य नए नए रास्ते से दूसरी जगह तथा नए नए मनुष्यों से प्रकट होता रहता है।
उच्च वर्ग के बाद Jesus से प्रारम्भ होकर आज तक निम्न वर्ग और स्त्रियों के माध्यम से भी प्रकट हुआ। लेकिन उसकी निरंतरता को रोकानहीं जा सका।
पूरब में लेकिन आज भी कहीं कहीं यह प्रकट होता रहता है। और पूरब में रहने का मतलब ही यही है कि आप किसी की सत्य की यात्रा मेंजाने अनजाने साथी या कारण बन जाओगे। चाहे आप उससे आध्यात्मिक रूप से उच्च स्थित ही क्यों ना हो, लेकिन आपका किसी मेंअसीम ऊर्जा के प्रवाह का कारण बनने से आप भी कुछ उच्चतर स्थिति प्राप्त कर लेते हैं। और थोड़े से प्रयत्न से मोक्ष को प्राप्त हो सकतेहै उस थोड़े से समय का उपयोग कर लें तो।
लेकिन सूफ़ी संतों में यह चलन है कि किसी को ज्ञान की प्राप्ति या थोड़ी सी भी झलक या चाहे यात्रा की शुरुआत ही क्यों ना हुई हो- किसी को कानों कान खबर नहीं होनी चाहिए। वहाँ ऐसे लोगों को मार दिया गया है। जबकि उसके बताने का मतलब ही यह था किआपने भी उसमें जाने अनजाने सहयोग दिया है, अतः इस आंतरिक तीर्थ यात्रा में जो सहयोग दिया है उसका पुण्य आपको मिलेगा ज़रूर।और उस पुण्य का सदुपयोग आप भी आंतरिक या आध्यात्मिक यात्रा के लिए ही करें तो सर्वोत्तम निवेश आपके पुण्य का हो गया।
पूरब ने ऐसी सभी घोषणाओं का उपयोग करना सीख लिया और यदि आप पूरब में जन्मे हैं या रहने लगे हैं पश्चिम से आकर तो आपधन्यभागी हैं कि आपसे जाने अनजाने किसी को आध्यात्मिक यात्रा में सहयोग मिलेगा, और यदि वह आपके जान पहचान का भी है तोआपको यह अवसर भी मिलेगा कि इस पुण्य का सर्वोत्तम निवेश आप कर पाएँगे। इसलिए मैं पूरब के लोगों का पश्चिम में धन कमानेजाने का विरोधी हूँ, क्योंकि जो आप खो रहे हैं वह जन्मों जन्मों में कमाई सम्पदा है और कोड़ी के भाव उसको व्यर्थ कर दे रहे हैं।
ओशो द्वारा सुझाया सहज ध्यान यानी होंश पूर्वक जीना यानी रोज़ के काम में होंश का प्रयोग मेरे जीवन को बदलकर रख गया। अपने आप सहज ही मन सपने देखना कम कर देता है, फिर जब भी सपना शुरू करता है तो विवेकपूर्वक उसका आना दिखाई देने लगता है, और दिखाई दे गया कि फिर बुना नया सपना मन ने-तो फिर रोकना कोई कठिन काम नहीं है। मैंने इसे ओशो की एक किताब से सीखा और जीवन में सुबह ब्रश करते समय प्रयोग करके साधा इसे मेरी ‘Awareness as meditation’ टाइटल से पोस्ट पर पढ़ा जा सकता है।
नमस्कार ….. मैं अपनी आंतरिक यात्रा के व्यक्तिगत अनुभवों से अपनी टिप्पणियाँ लिखता हूँ। इस पोस्ट में दुनिया भरके रहस्यवादियों की शिक्षाएँ शामिल हो सकती हैं जिन्हें मैं अपने अनुभव से तौलकर आज भी मानने लायक समझता हूँ। अधिकजानकारी के लिए और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जुड़ने के लिए, वेबसाइट https://linktr.ee/Joshuto पर एक नज़र डालें, या मेरे यूट्यूब चैनल या पॉडकास्ट भी सुन सकते हैं।
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