
जो मैंने पाया है, उसे मैं चाहकर भी किसी को दे नहीं सकता।
पहला तो वह दिया ही नहीं जा सकता। सारे संतों ने उसे आपको देने का ही प्रयास किया है। लेकिन एक तो वह पूरा कभी होता ही नहीं और हमेशा कितना ही बताओ या बाँटो अधूरा ही रह जाता है।
दूसरा जो प्यासा है आत्मज्ञान का उसके मन में चलने वाले विचार। उसके जन्म से आजतक के परिवेश के कारण पूर्वाग्रह आदी। ये सब एक एक छलनी की तरह काम करते हैं। तो इन छलनियों से निकलकर जो पहुँचा वह आपको पहले से पता ही था। जो पहुँचना था वह रह ही गया।
तीसरा वह सबको मिला ही हुआ है, इसलिए सबके पास उसको खुद ही जान लेने के अलावा कोई दूसरा रास्ता हो ही नहीं सकता।
चौथा माया की पकड़, अहंकार की पकड़ इतनी मज़बूत होती है कि वह भ्रम को टूटने ही नहीं देती, जब तक लगातार उसपर प्रयत्न नहीं किए जाएँ । और वह भी इतने चोरी से की माया या अहंकार को पता ही ना चले कि यह उससे मुक्ति के लिए किया जा रहा है।
यह कुछ ऐसी घटना है, जैसे कोई अपने अनुभव लिख कर कापी हमको दे, और उसको खोलते ही उसके प्रष्ठ जलने लगें।
तो तीन गुना प्रयत्न हमको करने होते हैं, इसीलिए ओशो ने बार बार ध्यान से सुनने पर जोर दिया है। कई बार पूरा प्रवचन सिर्फ़ सुनने की कला पर ही दिया है। क्योंकि यह हमारे हाथ में है, और मैंने भी पाया है कि मेरी यात्रा में इसका बहुत महत्वपूर्ण योगदान है। समाज के कारण फ़ायदा भी होता है, मैंने जब भी मौक़ा मिला तो संतों के प्रवचन छुट्टी लेकर सुनने गया हूँ। और यहाँ सुनने या लिखा हुआ ध्यान से पढ़ने का मतलब है, जो भी समझ में आया है, उससे आपके जीवन में तुरंत उपयोग में लेना। जैसे एक बार आग में हाथ जलने से दूसरी बार आपको बताना नहीं पड़ता।
ओशो ने अपने जीवन में एक लाख पचास हज़ार किताबें पढ़ीं और जो प्रवचन दिये उनसे 600 किताबें ही हिंदी में, और अंग्रेज़ी में 300 किताबें छापी गयीं।
मेरी छोटी सी बुद्धी में यह बात घर कर गयी कि डेढ़ लाख किताबों के ज्ञान में ओशो ने अपने अनुभव के रस में डुबाकर इन 900 किताबों में सार दे दिया है। तो एक एक करके किताबें पढ़ता गया और उनके प्रयोगों को जीवन में उतरने लगा। अभी एक चौथाई ही पढ़ पाया हूँ, और किनारे आ गया हूँ।
और सिर्फ़ एक ‘माया की पकड़’ ही उपाय से ढीली की जा सकती है। कबीर का सुझाया और ओशो द्वारा पूरी दुनिया में प्रचलित सहज ध्यान याने Awareness Meditation ही कलियुग में सबसे उत्तम उपाय रह गया है। इसीलिए कबीर ने कहा ‘जो ठग ने ठगनी ठगो, ता ठग को आदेश’. यह ध्यान माया को ठग सकने में बहुत काम का है।
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