काम की कीचड़ में राम का कमल – मेरी उठावना पत्रिका

Photo of clover leaves from my garden used for expressing काम की कीचड़ में राम का कमल
काम की कीचड़ में राम का कमल खिला है। इन पत्तियों ने भी प्रेम को महसूस किया है।

गोरखनाथ के संदेशों पर प्रवचन करते हुआ ‘मरो ही जोगी मरो’ किताब में ओशो कहते हैं :- 

“काम की कीचड़ में राम का कमल छिपा है।
अरधै जाता उरधै धरै…।
इसलिए जागो, समझो, काम की ऊर्जा को पहचानो, उसके साक्षी बनो। लड़ो मत। दुश्मनी नहीं, मैत्री करो। मित्र को ही फुसलाया जा सकता है ऊपर जाने के लिये। हाथ में हाथ लो काम-ऊर्जा का, (काम है नीचे जाती ऊर्जा) ताकि धीरे-धीरे तुम उसे प्रेम में रूपांतरित करो।(प्रेम बीच में द्वार की तरह दोनों के लिए) पहले तो काम को प्रेम में रूपांतरित करना होगा, फिर प्रेम को प्रार्थना में। (प्रार्थना है ऊपर जाती ऊर्जा) ऐसे ये तीन सीढ़ियां पूर्ण हो जायें तो तुम्हारे भीतर सहस्रार खुले, शून्य गगन में उस बालक का जन्म हो।
खयाल रखना, काम से भी बच्चों का जन्म होता है, संभोग से भी बच्चे पैदा होते हैं और समाधि से भी बालक का जन्म होता है। वह बालक तुम्हारी अंतरात्मा है। वह बालक तुम्हारा भव्य रूप है, दिव्य रूप है। जैसे तुम्हारे भीतर कृष्ण का जन्म हुआ, कृष्णाष्टमी आ गयी! तुम्हारे भीतर बालक कृष्ण जन्म” -ओशो

 (from “मरौ हे जोगी मरौ – Maro He Jogi Maro (Hindi Edition)” by Osho .)Start reading it for free: https://amzn.in/4vl4dyn

इस पोस्ट को लिखने में मुझे क़रीब एक महीना से ज़्यादा की साधना करनी पड़ी। क्योंकि मेरा अनुभव नहीं बने तो मैं नहीं लिखूँगा यह पहली condition है। बहुत महत्वपूर्ण पड़ाव होता है यह आध्यात्मिक यात्रा का। अपने हाथों अपनी मौत की घोषणा करने जैसा है। मैं कहा करता था दोस्तों की कि मैं अपने उठवाने की पत्रिका खुद छपवाकर सबको पहले ही दे जाऊँगा। और अच्छी coloured छपवाऊँगा। और दोस्तों से मिलते ही मैं उनको भी पूछता था ‘क्यों ज़िंदा हो अभी तक, मरे नहीं? तुम्हारी भी पत्रिका छपवा ली है मैंने तो। मेरे साथ कौन जाएगा फिर?’

आज मरा हूँ, और यह मेरी उठावना पत्रिका समझी जाये। ऐसी तो कल्पना भी नहीं की थी, ख़ैर जो भी है ठीक ही है।

याद आ रहे हैं गोरखनाथ भी। मरो हे जोगी मरो, मरो मरण है मीठा। उस मरनी मरो, ज्यों गोरख मरी दीठा।।

पुनर्जन्म या दूसरा जन्म हुआ, जीवन मरण की चकरी से मुक्त हुआ।

कबीर का गीत:
झीनी झीनी बीनी चदरिया ॥ ( शरीर को चादर कहा है)
काहे कै ताना काहे कै भरनी,
कौन तार से बीनी चदरिया ॥ १॥
इडा पिङ्गला ताना भरनी,
सुखमन तार से बीनी चदरिया ॥ २॥
आठ कँवल दल चरखा डोलै,
पाँच तत्त्व गुन तीनी चदरिया ॥ ३॥
साँइ को सियत मास दस लागे,
ठोंक ठोंक कै बीनी चदरिया ॥ ४॥
सो चादर हिंदू और मुस्लिम ओढी,
ओढि कै मैली कीनी चदरिया ॥ ५॥
दास कबीर जतन करि ओढी,
ज्यों कीं त्यों धर दीनी चदरिया ॥ ६॥

इस शरीर को एक ओढ़ी हुई चादर की तरह शरीर के ऊपर से हटा कर घड़ी करके ईश्वर को वापस सौंप देने की बात कर रहे हैं कबीर. यह शरीर और आत्मा अलग अलग ही मिले थे, फिर बचपन से जवानी के बीच पता नहीं कब और कैसे इसे हम ओढ़ लेते हैं और इसी को अपना या खुद के होने को मानने लगते हैं। और फिर सारा संसार बुन लिया जाता है मन को जगह मिल गयी काम करने की.

यह बिलकुल ऐसा है जैसे सागर में एक लहर उठे, और सागर के किनारे पर जाकर नष्ट होकर, फिर दूसरी लहर बने और फिर सागर किनारे जाकर नष्ट हो जाए। फिर एक बार इस बारम्बारता का व्यर्थता का बोध हो जाए। और अपने को किनारे पर नष्ट होने के पहले जान ले कि लहर होना तो सिर्फ़ उसका काम है। उसका रोल है। असल में तो वह सागर ही है। चाहे चोटी लहर हो या बड़ी लहर सभी वही एक सागर ही उछाले ले रहा है। तो अब वह लहर नहीं होगी, वह गहरे में जाकर सागर का ही होकर रहेगी।

कबीर ने खुद को जाना और एक दिन वापस खुद को और शरीर को अलग करके रख दिया। उस दिन यह गीत फूटा होगा उनसे। यह अहंकार के शून्य हो जाने की दशा है। उसके इस शरीर से तादात्म्य हो जाने के कारण ही जो भी कर्म शरीर करता था तो अहंकार के कारण लगता था कि मैं कर रहा हूँ। बस कर्ता बनते ही व्यक्ति उस कर्म के परिणाम का भी हिस्सेदार हो जाता है। यह जीवन ऐसा है जैसे कोयले की सुरंग लम्बी सुरंग में कोई एक कोने से दूसरे कोने जाए। यह असम्भव है की उसपर कोई दाग नहीं लगे। लेकिन दूसरे कोने पर निकलने का मतलब ही है कि व्यक्ति ने अपने शरीर को आत्मा से अलग करने में सफलता हासिल कर ली है। जब दोनों अलग हो गए तो कर्म शरीर ने किये, आत्मा तो बस दृष्टा है कुछ करती ही नहीं। और कबीर अब शरीर तो हैं ही नहीं। आत्माराम हो गया उनका नाम।

यह ऐसा है जैसे हम किसी मृतक को उसके कर्म की सजा दें। उसने किए होंगे कर्म लेकिन अब उसकी सजा भुगतने वाला कोई है ही नहीं। तो यदि उसे सजा नहीं दी जा सकती तो उसने कर्म भी नहीं किए यही मानना होगा। इसलिए कबीर के शरीर पर काजल के दाग होते हुए भी उन्होंने उसको ज्यों की त्यों धर देने में सफल हुए। बुद्ध ने इसे कहा कि ज्ञान प्राप्त होने पर सारे पापों की गठरी जो तुम अबतक लिए फिर रहे थे वह जल जाएगी।

भयंकर हत्यारा अंगुलिमाल को जब बुद्ध ने उसी गाँव में भिक्षा माँगने भेजा जिसके 999 लोगों की वह हत्या कर चुका था, तब पहले तो लोगों ने अपने दरवाज़े खिड़की बंद कर लिए फिर जब डर ख़त्म हुआ तो उसको पत्थर से पीट पीट कर अधमरा कर दिया।

बुद्ध को खबर लगी तो वे दौड़ कर आए और पूछा, ‘अंगुलिमाल लोग जब पत्थर मार रहे थे तो तुमको कैसा लग रहा था?’

अंगुलिमाल बोला, ‘जब मैं हूँ ही नहीं तो मुझे तो लगा ही नहीं कुछ, सब शरीर को ही लगा’.

बुद्ध ने कहा, ‘तुम ज्ञान को प्राप्त हुए अंगुलिमाल, धन्य हो तुम अमर हो गए’। और अंगुलिमाल का सर बुद्ध ने अपनी गोद में ले लिया ताकि सम्मान पूर्वक शरीर त्याग सके. यह है जिसे कबीर ने कहा ‘ज्यों के त्यों धर दिनी चादरिया’.

अंगुलिमाल वह पहला व्यक्ति रहा धरती पर जो समाज के निचले तबके का होकर भी आत्मज्ञान को प्राप्त हुआ। यदि ज़िंदा छोड़ दिया जाता उस दिन तो एक महान और अनोखे संत के रूप में उसके अनुभव से हमको अपनी यात्रा के कुछ महत्वपूर्ण सूत्र मिल सकते थे।

क्योंकि वह काफ़ी कुछ हमसे मिलता जुलता था। अपने मन में हमने कोई कम लोगों की हत्या की योजना बनाई है? हम काफिर हैं जो उनको पूरा नहीं कर सके, इसीलिए ज्ञान प्राप्ति में भी नहीं सफल हो सके। यह विचार को मूर्त रूप देना बड़े हिम्मतवालों का काम है, इसीलिए तो बुद्ध को उसमें कोई उम्मीद नज़र आयी। मुझे लगता है यही अंगुलिमाल फिर जीसस के रूप में अवतरित हुआ और फिर मंसूर के रूप में भी यही अवतरित हुआ। हर बार काम की कीचड़ से राम कमल खिला। 


यदि मेरे जीवन में मेरी साधना को एक शब्द में कहने को कहा जाए तो वह होगा संसार में जीते हुए जीवन साधारण कार्यों में  ‘होश’ का प्रयोग। पिछले 35 वर्षों से सुबह toothbrush का समयपूरी तरह मेरा अपना समय है। इसी में मैंने होश को साधा। पूरा ध्यान इस विडीओ में बताए अनुसार किया। धीरे धीरे यह मेरे जीवन केहर काम में अतिक्रमण कर गया। मुझे पता ही नहीं चला।

ओशो द्वारा सुझाया सहज ध्यान यानी होंश पूर्वक जीना यानी रोज़ के काम में होंश का प्रयोग मेरे जीवन को बदलकर रख गया। अपने आप सहज ही मन सपने देखना कम कर देता है, फिर जब भी सपना शुरू करता है तो विवेकपूर्वक उसका आना दिखाई देने लगता है, और दिखाई दे गया कि फिर बुना नया सपना मन ने-तो फिर रोकना कोई कठिन काम नहीं है।

मैंने इसे जिस किताब से सीखा और जीवन में सुबह ब्रश करते समय प्रयोग करके साधा उसे जानने के लिए मेरेअंग्रेज़ी के Awareness as meditation पोस्ट पर पूरा पढ़ा जा सकता है। 

नमस्कार ….. मैंने अपनी आंतरिक यात्रा के व्यक्तिगत अनुभवों से ही यह मुक़ाम हासिल किया है कि मैं काम की  कीचड़ में राम रूपी कमल को उगा पाया हूँ और उन्हीं के आधार पर अपनी टिप्पणियाँ लिखता हूँ। इस पोस्ट में दुनिया भरके रहस्यवादियों की शिक्षाएँ शामिल हो सकती हैं जिन्हें मैं आज भी मानने लायक समझता हूँ। मेरे बारे में अधिकजानकारी के लिए और मेरे साथ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जुड़ने के लिए वेबसाइट https://linktr.ee/Joshuto पर एक नज़र डालें, या मेरे यूट्यूब चैनल की सदस्यता लें और/यापॉडकास्ट आदि सुनें।

कॉपीराइट © ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन, अधिकतर प्रवचन की एक एमपी 3 ऑडियो फ़ाइल को osho डॉट कॉम से डाउनलोड किया जा सकता है या आप उपलब्ध पुस्तक को OSHO लाइब्रेरी में ऑनलाइन पढ़ सकते हैं।यू ट्यूब चैनल ‘ओशो इंटरनेशनल’ पर ऑडियो और वीडियो सभी भाषाओं में उपलब्ध है। OSHO की कई पुस्तकें Amazon पर भी उपलब्ध हैं।

मेरे सुझाव:- 

ओशो के डायनामिक मेडिटेशन को ओशो इंटरनेशनल ऑनलाइन (ओआईओ) ऑनलाइन आपके घर से ओशो ने नई जनरेशन के लिए जो डायनामिक मेडिटेशन दिये हैं उन्हें सीखने की सुविधा प्रदान करता है। ओशो ध्यान दिवस अंग्रेज़ी में @यूरो 20.00 प्रति व्यक्ति के हिसाब से। OIO तीन टाइमज़ोन NY, बर्लिन औरमुंबई के माध्यम से घूमता है। आप अपने लिए सुविधाजनक समय के अनुसार प्रीबुक कर सकते हैं।

 

2 thoughts on “काम की कीचड़ में राम का कमल – मेरी उठावना पत्रिका

  1. एक ही बात है 5तत्व का पुटLआ गैबी खेले माहि
    ऐसा हुआ है।तो ठीक ह

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