
गोरखनाथ के जन्म के सम्बंध में प्रश्न पूछने पर उसके उत्तर में ओशो में कुछ इस तरह से कहा। (सम्पादित)
मैं भी किसी सीमा में बंधा नहीं हूं। मस्जिद भी मेरी है और मंदिर भी मेरा है और गिरजा भी और गुरुद्वारा भी…। और राष्ट्रों मेंमेरा भरोसा नहीं है। मैं तो मानता हूं कि राष्ट्रों के कारण ही मनुष्य-जाति पीड़ित है। राष्ट्र मिट जाने चाहिए। हो चुके बहुतराष्ट्रगान, उड़ चुके बहुत झंडे, हो चुकीं बहुत मूढ़ताएं पृथ्वी पर; अब तो मनुष्य की एकता स्वीकार करो। अब तो एक पृथ्वीऔर एक मनुष्य…। ये राष्ट्रीय सरकारें जानी चाहिये। और जब तक ये न जायेंगी तब तक मनुष्य की समस्याएं हल न होसकेंगी, क्योंकि मनुष्य की समस्याएं अब राष्ट्रों से बड़ी समस्याएं हैं। जैसे आज भारत गरीब है। भारत अपनी ही चेष्टा सेइस गरीबी के बाहर नहीं निकल सकेगा, कोई उपाय नहीं है। भारत गरीबी के बाहर निकल सकता है, अगर सारी मनुष्यताका सहयोग मिले। क्योंकि अब मनुष्यता के पास इस तरह के तकनीक, इस तरह का विज्ञान मौजूद है कि इस देश कीगरीबी मिट जाये। लेकिन अगर तुम अकड़े रहे कि हम अपनी गरीबी खुद ही मिटायेंगे, तो तुम ही तो इस गरीबी कोबनानेवाले हो, तुम मिटाओगे कैसे? तुम्हारी बुद्धि इसके भीतर आधार है, तुम इसे मिटाओगे कैसे? तुम्हें अपने द्वार-दरवाजेखोलने होंगे। तुम्हें अपना मस्तिष्क थोड़ा विस्तीर्ण करना होगा। तुम्हें मनुष्यता का सहयोग लेना होगा। और ऐसा नहीं है कितुम्हारे पास कुछ भी देने को नहीं है। तुम्हारे पास कुछ देने को है दुनिया को। तुम दुनिया को ध्यान दे सकते हो। अगरअमरीका को ध्यान खोजना है तो अपने बलबूते नहीं खोज सकेगा अमरीका। उसे भारत की तरफ नजर उठानी पड़ेगी। मगरवे समझदार लोग हैं; ध्यान सीखने पूरब चले आते हैं। कोई अड़चन नहीं है उन्हें, कोई बाधा नहीं है। बुद्धिमानी का लक्षणयही है कि जो जहां से मिल सकता हो ले लिया जाये। यह सारी पृथ्वी हमारी है। इसको खंडों में बांटकर हमने उपद्रव खड़ाकर लिया है। आज मनुष्य के पास ऐसे साधन मौजूद हैं कि अगर राष्ट्र मिट जायें, तो सारी समस्यायें मिट जायें। सारीमनुष्यता इकट्ठी होकर अगर उपाय करे तो कोई भी समस्या पृथ्वी पर बचने का कोई भी कारण नहीं है। मगर पुरानी आदतेंहैं। हमारा राष्ट्र–सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा…! और इसी तरह की मूढ़ताएं और राष्ट्रों में भी हैं। उनको भी यहीखयाल है। इन्हीं अहंकारों के कारण संघर्ष है। फिर संघर्ष और राष्ट्रों की सीमाओं के कारण मनुष्य की सारी शक्ति युद्धोंमें लग जाती है।
मनुष्य-जाति की अस्सी प्रतिशत क्षमता युद्ध में चली जाती है। यही अस्सी प्रतिशत क्षमता अगर खेतों में लगे, बगीचों मेंलगे, कारखानों में लगे, यह पृथ्वी स्वर्ग हो जाये! जो सपना तुम्हारे ऋषि-महर्षि देखते थे आकाश में स्वर्ग का, वह अब पृथ्वीपर बन सकता है, कोई रुकावट नहीं। लेकिन पुरानी आदतें…। यह हमारा देश, वह उनका देश। हमें भी लड़ना है, उन्हें भीलड़ना है। गरीब से गरीब देश भी अणुबम बनाने की चेष्टा में संलग्न हैं। भूखे मर रहे हैं, मगर अणुबम बनाना है! भारत जैसेदेश के पीछे भी वही भाव है गहरे में। भूखे मर जायें, मगर अपनी शान रखनी है! मैं तो राष्ट्रों में मानता नहीं। अगर मेरी सुनीजाये तो मैं तो कहूंगा कि भारत को पहला देश होना चाहिए जो राष्ट्रीयता छोड़ दे। यह अच्छा होगा कि कृष्ण, बुद्ध, पतंजलि और गोरख का देश राष्ट्रीयता छोड़ दे और कह दे कि हम अंतर्राष्ट्रीय भूमि हैं। भारत को तो संयुक्त राष्ट्र संघ कीभूमि बन जानी चाहिए। कह देना चाहिए, यह पहला राष्ट्र है जो हम संयुक्त राष्ट्र संघ को सौंपते हैं–सम्हालो! कोई तोशुरुआत करे…। और यह शुरुआत हो जाये तो युद्धों की कोई जरूरत नहीं है। ये युद्ध जारी रहेंगे, जब तक सीमाएं रहेंगी।ये सीमाएं जानी चाहिये।
फिर ऐसे व्यक्ति न तो अपने जन्म की चर्चा करते हैं, न अपने घर-द्वार की चर्चा करते हैं। ऐसे व्यक्तियों का क्या घर, क्याद्वार? यह सारा आकाश उनका घर है! यह सारी पृथ्वी उनकी है। मैं कल ही मेरे खिलाफ किसी हिंदू संन्यासी का लिखाहुआ एक पत्र करंट में छपा है, वह देख रहा था। उसने सरकार से प्रार्थना की है कि मैं देशद्रोही हूं, मुझ पर अदालत मेंमुकदमा चलाया जाना चाहिये।
कह सकते हो मुझे देशद्रोही–इन अर्थों में कि मैं मानव-द्रोही नहीं हूं। लेकिन तुम्हारे सब देश-प्रेमी मानव-द्रोही हैं। देश-प्रेमका अर्थ ही होता है मानव-द्रोह। देश-प्रेम का अर्थ होता है खंडों में बांटो। तुमने देखा न, जो आदमी प्रदेश को प्रेम करता हैवह देश का दुश्मन हो जाता है। और जो जिले को प्रेम करता है वह प्रदेश का भी दुश्मन हो जाता है। मैं दुश्मन नहीं हूं देशका, क्योंकि मेरी धारणा अंतर्राष्ट्रीय है। यह सारी पृथ्वी एक है। मैं बड़े के लिये छोटे को विसर्जित कर देना चाहता हूं। औरइन छोटे-छोटे घेरों ने, बागुड़ों ने मनुष्य को बहुत परेशान किया है। तीन हजार साल में पांच हजार युद्ध लड़े गये हैं। औरपहले तो ठीक था कि तीर-कमान से चल रहे थे युद्ध, चलते रहते, कोई हर्जा नहीं था। थोड़े-बहुत लोग मरते थे तो कोईअड़चन नहीं हो जाती थी। अब युद्ध समग्र युद्ध है। अब यह पूरी मनुष्य-जाति की आत्महत्या है। अब सब जगह हिरोशिमाबन सकता है–किसी भी दिन, किसी भी क्षण…। इस युद्ध की विभीषिका को समझो और इसमें जितनी ऊर्जा जा रही है, वह सोचो। यही ऊर्जा सारी पृथ्वी को हरियाली से भर सकती है, वैभव से भर सकती है। मनुष्य पहली दफा आनंदमग्न होनाच सकता है, प्रभु के गीत गा सकता है, ध्यान की तलाश कर सकता है। लेकिन यह नहीं होगा। ये तुम्हारे तथाकथितदेशप्रेमी, ये राष्ट्रवादी…। राष्ट्रवाद महापाप है। इस राष्ट्रवाद के कारण ही दुनिया में सारे उपद्रव होते रहे। मैं राष्ट्रवादी नहींहूं। मैं तो सारी सीमाएं तोड़ देना चाहता हूं।
(मेरे अनुभव: अब भी वक़्त है, हम वसुधैव कूटुंबकम बस कहते ही हैं। बाक़ी काम सारे उल्टे कर रहे हैं। शायद कहने की आवश्यकता ही इसीलिए महसूस होती है। और यह शुरुआत सिर्फ़ भारत ही कर सकता है। इसी से यहाँ पूरे विश्व के लोग अपना घर समझकर आ सकेंगे और तभी सही मायने में आध्यात्मिक यात्रा पर निकल भी सकेंगे। यह धरा फिर से पूरे विश्व के आंतरिक यात्रा के खोजियों और ईश्वर प्रेम के प्यासों से भर जाए। तभी आध्यात्मिक यात्रा में नए अनुसंधान हो सकेंगे, यहाँ एक नालंदा बनाने से अब और कुछ नहीं सिर्फ़ ख़ानापूर्ति ही होगी।)
इस पृथ्वी पर जिन लोगों ने भी परमात्मा की छोटी-सी झलक पाई है उनकी कोई सीमाएं नहीं हैं। वे किसी देश, किसीजाति, किसी वर्ग, किसी संप्रदाय, किसी वर्ण के नहीं होते। वे सब के हैं, सब उनके हैं। फिर इस तरह के व्यक्ति, गोरखजैसे व्यक्ति, इस बात की चिंता ही नहीं लेते कि कब हम पैदा हुए, इसकी बात करें; किस घर में पैदा हुए, इसकी बात करें; किस गांव में पैदा हुए, इसकी बात करें। ये व्यर्थ की बातें हैं, क्योंकि गोरख जानते हैं–न हम कभी पैदा हुए और न हम कभीमरेंगे। ये तो देहवादियों की बातें हैं। ये तो जिनका शरीर से मोह और तादात्म्य है, उनकी बातें हैं। गोरख जैसे व्यक्ति तो उसेजान लिये हैं जो न कभी पैदा होता है, न मरता है; न मर सकता है, न पैदा हो सकता है। अजन्मे को, अनादि को, अनंत कोजान लेने के बाद कौन जन्म की बात करे?
बुद्ध भी ठीक-ठीक किस तिथि-तारीख को पैदा हुए, पक्का करना मुश्किल है। हमने चिंता ही नहीं ली इस बात की। इससेअंतर भी क्या पड़ता है? बुद्ध ‘अ’ नाम के गांव में पैदा हों कि ‘ब’ नाम के गांव में पैदा हों, इससे अंतर क्या पड़ता है? औरबुद्ध इस सन में पैदा हों या उस सन में, क्या भेद पड़ेगा? हमने बुद्धत्व को समझने की चेष्टा की है। बुद्ध के व्यक्तित्व से क्यालेना-देना है? उनकी देह तो क्षण-भंगुर है, आज है और कल नहीं हो जाएगी। उनका संदेश शाश्वत है। और वह संदेश एकबुद्ध का ही नहीं, वह संदेश समस्त बुद्धों का है।
तथ्य तो बाहरी होता है। जैसे तुमने एक गुलाब का फूल देखा, यह तथ्य है। तुमने दो गुलाब के फूल देखे, यह तथ्य है। औरतुमने हजारों गुलाब के फूलों का इत्र निचोड़ लिया, यह सत्य है। इसका किसी एक फूल से कुछ लेना-देना नहीं है; यह सारहै।” (from “मरौ हे जोगी मरौ – Maro He Jogi Maro (Hindi Edition)” by Osho .)
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ओशो द्वारा सुझाया सहज ध्यान यानी होंश पूर्वक जीना यानी रोज़ के काम में होंश का प्रयोग मेरे जीवन को बदलकर रख गया। अपने आप सहज ही मन सपने देखना कम कर देता है, फिर जब भी सपना शुरू करता है तो विवेकपूर्वक उसका आना दिखाई देने लगता है, और दिखाई दे गया कि फिर बुना नया सपना मन ने-तो फिर रोकना कोई कठिन काम नहीं है। मैंने इसे जिस किताब से सीखा और जीवन में सुबह ब्रश करते समय प्रयोग करके साधा उसे जानने के लिए मेरे FB पेज Philosia की pinned पोस्ट पर इस लिंक से जाना होगा।
Awareness meditation is the way worked for me, may be you too find it suitable otherwise Dynamic meditation is for most of the people. There are 110 other meditation techniques discovered by Indian Mystic Gorakhnath about 500years before and further modified by Osho that one can experiment and the suitable one could be practiced in routine life.
Osho International Online (OIO) provides facility to learn these from your home, through Osho Meditation Day @€20.00 per person. OIO rotate times through three timezones NY,Berlin and Mumbai. You can prebook according to the convenient time for you.
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1. through Osho Meditation Day @€20.00 per person. OIO rotate times through three timezones NY,Berlin and Mumbai. You can prebook according to the convenient time for you.
2. There is OSHO Evening Meeting streaming which can be accessed every day at local time starting 6:40 pm (of which Osho says that he wants his people to view it all over the world and these days it is possible) and 16 of the meditations mostly with video instructions and so much more on OSHO.com/meditate.
3. There is a 7 days Free Trial also for people who would like to first try it out.
This is an opportunity for learning and knowing Osho through these sannyasins who lived in his presence and brought to life his words in best possible quality in all formats.
Disciples of Jesus left him alone in last minutes but Osho’s disciples remained with him till he left his body willingly after working, till last day, for all of us to get enlightened. Jesus tried hard till last minute, before being caught, to teach meditation to his disciples. As per Saint John’s Gospel:- Jesus used word ‘Sit’ to transfer his meditative energy to them and went on to pray God, but on returning he found them sleeping. He tried two times again but in vain.
Even today Zen people use word ‘Sit’ for meditation in their saying ‘Sit silently, do nothing, season comes and the grass grows by itself green’.
Hi ….. I write my comments from my personal experiences of my inner journey. This post may include teachings of Mystics around the world that I found worth following even today. For more about me and to connect with me on social media platforms, have a look at my linktree website for connecting with my social media links, or subscribe my YouTube channel and/or listen to the podcasts etc.