मेहंदी और मनुष्य जीवन

इस तरह रंग जाएँ हम संसार को तो मनुष्य जीवन सफल हुआ।

क्या ख़ूब है मेहंदी! बारीक पिसती है, पानी जैसी हो जाती है और जब लगती है हाथों में तो जिस भी तरह उसको ढालो ढल जाती है कि बनाने वाला अपने मन से उसको रूप दे सके, खुद तो सूख जाती है, लेकिन अपना रंग छोड़ जाती है।

मनुष्य जीवन भी कुछ ऐसा ही होना चाहिए, तभी जीवन का कुछ मतलब होगा अन्यथा बेकार गया पूरा जीवन। चले बहुत लेकिन कहीं पहुँचे नहीं।

हर मनुष्य का मन मेहंदी की पत्तियों के समान होता है। जुड़ा है वह ज़ड़ से (शून्यता से, आत्मा से, परमात्मा से) और बहुत पास है क्योंकि उसका ही रस आ रहा है और ऊर्जावान होकर जा रहा है, लेकिन बहुत दूर भी है क्योंकि जड़ तो ज़मीन में छिपी है दिखाई नहीं देती और रास्ता भी बहुत लम्बा है उस तक पहुँचने का। मनुष्य भी कई जन्मों के सफ़र के बाद भी अब तक नहीं मिल सका है अपनी जड़ों से तभी तो फिर इसबार उस तक पहुँचने के लिए अवसर के रूप में जन्म मिला है।

इस मन को बारीक करें, जैसे मेहंदी के पत्तों को पीसकर हम करते हैं, जितना बारीक उतना चोखा रंग। अपने अहंकार को जल समान बनाएँ, बर्फ़ की तरह कट्टर रहे, हिंदू ही रहे, मुसलमान ही रहे, ईसाई ही रहे, सिक्ख ही रहे। बौद्ध ही रहे तो नहीं आगे यात्रा नहीं हो पाएगी।

मैं यह नहीं कह रहा कि अपना धर्म छोड़ दो, नहीं वहाँ ही से तो शुरुआत होना है। राकेट की पहली स्टेज तो वही है, लेकिन उसको भी राकेट छोड़ता है पर उसके ही कारण तो आगे की यात्रा सम्भव हुई है इसलिए उसको ढोना नहीं है बल्कि उसका अब धन्यवाद स्वरूप पालन करना है, और तुमको अगली स्टेज, सहज ध्यान या (awareness meditation), को प्रज्वलित करके आगे बढ़ जाना है। यह आंतरिक यात्रा है बाहर किसी को पता ही नहीं चलेगा। लेकिन समय के साथ जो बदलाव आएँगे उसको लोग महसूस करेंगे ज़रूर।

अब ध्यान किसी धर्म की बपौती नहीं है। यह मानव मात्र के कल्याण के लिए की गयी खोज है। इसलिए यहाँ आप अपने धर्म में कट्टर रहे तो आप पूछने जाएँगे कि इसको आध्यात्मिक यात्रा के लिए उपयोग करें या ना करें, बस तभी कठिनाई आ सकती है। जिससे आप पूछेंगे वह यदि खुद प्रयोग कर रहा होगा, सिर्फ़ और सिर्फ़ तभी सही जवाब मिलेगा। जो किसी का अनुभव नहीं उसमें उसकी राय सिर्फ़ और सिर्फ़ ‘नहीं’ ही होगी क्योंकि उससे उसकी आपपर श्रेष्ठता सिद्ध होती है। कोई भी व्यक्ति नहीं चाहता कि कोई बात आपको पता चले और उसके बारे में उसे खुद ही पता नहीं है तो वह आपसे कमतर सिद्ध हो गया।

जैसे ही आपके जीवन में सहज ध्यान प्रवेश करेगा आपका बर्फ़ जैसा अहंकार पिघलने लगेगा। जब पानी हो जाएगा तब आप किसी भी काम को छोटा या बड़ा नहीं समझेंगे। यह पानी की तरह जैसे आकार में डाल दिया जाए उसमें ‘सहज ही’ ढल जाना है। सहज मतलब इस काम को ऐसे करना है जैसे वही काम तुम्हारी जीविका का एकमात्र साधन रह गया है। किसी ऐक्टर की तरह उस रोल को पूरी तन्मयता से कर देना है।

अब मेहंदी पानी के साथ मिलकर कलाकार जिस आकार में उसे ढालना चाहे उसके लिए तैयार है। जब प्रतिपल हम इसी तरह जीने लगेंगे तब हम कोई आकृति को पूरी तरह बनाने में सफल हुए। अभी शुरू में बस एक लाइन खींची और वापस वैसे ही हो गए, तो पूरी आकृति नहीं बन पाएगी लेकिन यह प्रयास भी बेकार नहीं जाएगा, इकट्ठा होता रहेगा। जैसे बच्चा अक्षर बनाना शुरू करता है, टुकड़े टुकड़े में, ठीक वैसे ही।

एक घड़ी ऐसी आएगी की पूरी आकृति बनेगी और मेहंदी सूखकर खिर जाएगी लेकिन अपना रंग छोड़ जाएगी, अपनी मोहक सुंदरता और सुगंध सबके लिए अनंत काल के लिए छोड़ जाएगी। बुद्ध हुए, महावीर हुए, कृष्ण हुए, कबीर हुए, जीसस हुए, नानक हुए, मीरा हुई, रबिया हुई, लल्ला हुई, दयाबाई और सहजो हुई जो अपनी रचाई मेहंदी से अब तक लोगों के जीवन में सुगंध और सुंदरता, प्रेम से भर रहे हैं। जीवित संत सूखी हुई मेहंदी के समान हैं, अपना रंग छोड़ चुके लेकिन हमारे लिए मौजूद हैं। चाहें तो उसे सहेजें चाहे उसे निकाल दें, हमको ही फ़र्क़ पड़ना है, संत को नहीं।

मेहंदी (मन) तो सूख गयी उनकी लेकिन पीछे अमर हो गए अपनी छाप से लाल कर गए संसार को।यह अमरता हमें अपने शरीर के जाने के बाद भी उसका रंग बरकरार रखने में मददगार होती है। इसीलिए कबीर का काम आज भी मौजूद है। ऋषि मुनीयों का उपनिषद आज भी मौजूद है। तब हम अपने काम की रक्षा के लिए सही व्यक्ति तक अपने काम को पहुँचाने में सफल होते है। अनंत काल तक हम उसकी रक्षा भी कर सकते हैं। लोगों के भरोसे तो ज़्यादा 100 साल ही रक्षा होती है। फिर नया राजा अपने हिसाब से किताबों से पाठ ग़ायब करवाता है, इतिहास बदलाता है। इसीलिए मोहम्मद हर गए, जीसस को मार दिया लेकिन उनका संदेश मौजूद है। वे तो अमर हो गए और वही अमरता उनको अपना संदेश संसार से जाने के बाद भी बचाकर रखने में सहयोगी होता है। काम तो कोई नेता भी बड़ा कर जाता है लेकिन उसके चेले जो उससे नफ़रत करते थे उसको बचाकर क्यों रखेंगे। लोक लाज के कारण 50-100 साल । फिर जो नेहरू, गांधी के साथ जो ये लोग कर रहे हैं आने वाली पीढ़ी इनके साथ करेगी।

ओशो द्वारा सुझाया सहज ध्यान यानी होंश पूर्वक जीना यानी रोज़ के काम में होंश का प्रयोग मेरे जीवन को बदलकर रख गया। अपने आप सहज ही मन सपने देखना कम कर देता है, फिर जब भी सपना शुरू करता है तो विवेकपूर्वक उसका आना दिखाई देने लगता है, और दिखाई दे गया कि फिर बुना नया सपना मन ने-तो फिर रोकना कोई कठिन काम नहीं है। मैंने इसे जिस किताब से सीखा और जीवन में सुबह ब्रश करते समय प्रयोग करके साधा उसे जानने के लिए मेरे अंग्रेज़ी में  इस पोस्ट पर इस लिंक से जाना होगा। 

मेरे जीवन के अनुभव से मैं कहता हूँ कि दैनिक जीवन में होंश के प्रयोग के साथ साथ सहज जीवन भी यदि जिया जाए तो साधना की सरलता से सफलता भी बढ़ जाती है। ये दोनों एक दूसरे को मज़बूत करते जाते हैं। मुझसे सोशल मीडिया और अन्य ब्लॉग पर जुड़ने के लिए।

कॉपीराइट © ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन, अधिकतर प्रवचन की एक एमपी 3 ऑडियो फ़ाइल को osho डॉट कॉम से डाउनलोड किया जा सकता है या आप उपलब्ध पुस्तक को OSHO लाइब्रेरी में ऑनलाइन पढ़ सकते हैं।यू ट्यूब चैनल ‘ओशो इंटरनेशनल’ पर ऑडियो और वीडियो सभी भाषाओं में उपलब्ध है। OSHO की कई पुस्तकें Amazon पर भी उपलब्ध हैं।

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