सहज जीवन के सूत्र-जो कार्य सहज वह कर्तव्य

जापान के माउंट फ़ूजी का चित्र जिसे जापानी लोग अपनी सहज जीवन का प्रतीक मानते हैं।
सहज यानी जैसे कोई पहाड़ की तरह अपने स्वभाव में स्थिर हो तो वह उसकी सहजता कहलाएगी। जरा भी कुछ हमने अपने को ज़्यादा बताने या साबित करने का प्रयत्न किया की हम असहज हुए।
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मेरे जीवन के अनुभव से मैं यह कहता हूँ कि ओशो के यह वचन बिलकुल सत्य वचन हैं।

एक साधे सब सधे, सब साधे सब जाय।

मेरे देखे कई ब्राह्मण सब साधने में ही नष्ट हो गए और में गेलिया एक को साध लूँ वही बहुत। और इसी भोलेपन से स्वीकारभाव ने कमाल कर दिया। इस अपने को कम अक़्ल समझने से और उसको बढ़ाने के लिए सारे हर व्यक्ति से सीखने में, हर ज्ञान को समझने में प्रयत्न कुछ इस प्रकार किए जैसे कोई बिल्ली जब एक चूहे को पकड़ लेती है।

और उसी में वह सब पा गया, जो सिर्फ़ सुना था कभी प्रवचनों में। सिर्फ़ होंश को साध लो सब सध जाता है। अपने को ज्ञानी मानने वाले महा-अंधकार में ही जाएँगे यह सिद्ध हो गया। 

ओशो के इन शब्दों में अमृत की बूँद उतर आये आपके भीतर इतनी ताक़त है इसलिए ध्यान से पढ़ना, गुनना और जीवन में भी उतार सके तो धन्यभागी हुए आप।

अष्टावक्र महागीता भाग चार- #34 धार्मिक जीवन – सहज, सरल, सत्य में सहज जीवन पर यह कहते हैं ओशो:- “ अगर तुम सहज बनने लगो तो तुम अचानक पाओगे: परमात्मा को खोजने के लिए कुछ भी नहीं करना पड़ता; तुम्हारी सहजता के ही झरोखे से किसी दिन परमात्मा भीतर उतर आता है। क्योंकि परमात्मा यानी सहजता।

(मेरे जीवन में सहजता का एहसास मुझे भी नहीं था, क्योंकि यदि इसको साधने लगे तो यही उसकी असह्यता का कारण बन जाती है।)

धर्म के इतने जाल की जरूरत नहीं है, अगर तुम सहज हो। क्योंकि सहज होना यानी स्वाभाविक होना, स्वाभाविक होना यानी धार्मिक होना। महावीर ने तो धर्म की परिभाषा ही स्वभाव की है: बत्थु सहावो धम्मो! जो वस्तु का स्वभाव है, वही धर्महै। जैसे आग का धर्म है जलाना, पानी का धर्म है नीचे की तरफ बहना–ऐसा अगर मनुष्य भी अपने स्वभाव में जीने लगे तोबस हो गयी बात। कुछ करना नहीं है। सहज हो गये कि सब हो गया।

और आनंदमग्न जीने का एक ही उपाय है: अपेक्षाएं पूरी करने मत लग जाना। जिनकी तुम अपेक्षाएं पूरी करोगे, उन्हें तुमकभी प्रसन्न न कर पाओगे, यह और एक मजा है। तुम अपने को विकृत कर लोगे और वे कभी प्रसन्न न होंगे। क्योंकितुम्हारे प्रसन्न हुए बिना वे कैसे प्रसन्न हो सकते हैं?

तुम अगर काम कर रहे हो तो एक बात ईमानदारी से समझ लो कि तुम अपने आनंद के लिए कर रहे हो। बच्चों का उससे हित हो जाएगा, यह गौण है, यह लक्ष्य नहीं है। तुम्हारी पत्नी को वस्त्र और भोजन मिल जाएगा, यह गौण है, यह लक्ष्य नहींहै। काम तुम अपने आनंद से कर रहे हो, यह तुम्हारा जीवन है। तुम आनंदित हो इसे करने में। 

और यह तुम्हारी पत्नी है, तुमने इसे चाहा है और प्रेम किया। तुम आनंदित हो इसे प्रेम करने में। बच्चों को प्रेम करने में।”

“जो आनंद से पैदा नहीं होता, वह आनंद पैदा कर भी नहीं पाता। आनंद से बहेगी जो धार, उसी से आनंद फलता है।

तो तुम कह देना साफ; भीतर कुछ, बाहर कुछ मत करना। बाहर पैर दाब रहे हैं और बड़े आज्ञाकारी पुत्र बने बैठे हैं और भीतर कुछ और सोच रहे हैं, विपरीत सोच रहे हैं, क्रोधित हो रहे हैं। सोच रहे हैं, समय खराब हुआ; विश्राम कर लेते, वह गया। लेकिन तुम अपने साथ झूठ हो रहे हो और तुम पिता के सामने भी सच नहीं हो।

मैं नहीं कहता, ऐसा कर्तव्य करो। मैं कहता हूं, तुम क्षमा मांग लेना। कहना कि क्षमा करें।

ऐसा बचपन में मेरे होता था। मेरे दादा थे, उनको पैर दबवाने का बहुत शौक था। वे हर किसी को पकड़ लेते कि चलो, पैर दाबो। कभी-कभी मैं भी उनकी पकड़ में आ जाता। तो कभी मैं दाबता, जब मेरी मौज में होता; और कभी मैं उनसे कह देता, क्षमा करें, अभी तो भीतर मैं गालियां दूंगा।

दबवाना हो दबवा लें, लेकिन मैं दाबूंगा नहीं। यह कर्तव्य होगा।

अभी तो मैं खेलने जा रहा हूं। धीरे-धीरे वे समझे।

एक दिन मैंने सुना, वे मेरे पिता से कह रहे थे कि जब यह मेरे पैर दाबता है तो जैसा मुझे आनंद मिलता है, कभी नहीं मिलता। हालांकि यह सदा नहीं दाबता। मगर जब यह दाबता है तो इस पर भरोसा किया जा सकता है कि यह दाब रहा है और इसे रस है। कभी-कभी तो यह बीच दाबते-दाबते रुक जाता है और कहता है, बस क्षमा…। ‘

‘क्यों भाई, क्या हो गया, अभी तो तू ठीक दाब रहा था।’ ‘बस, अब बात खतम हो गयी, अब मेरा इससे आगे मन नहीं है।’

वे जितने प्रसन्न मुझसे थे, कभी परिवार में किसी से भी नहीं रहे। हालांकि उनके बेटे तो उनके पैर दाबते थे, मगर वे उनसे प्रसन्न नहीं थे। मैं तो छोटा था, ज्यादा उनके पैर दाब भी नहीं सकता था।

फिर तो धीरे-धीरे वे मुझसे पूछने लगे कि आज मन है? उन्होंने यह कहना बंद कर दिया कि चलो, पैर दाबो। फिर तो धीरे-धीरे मैं खुद भी जब कभी मुझे मन होता, मैं उनसे जा कर कहता: ‘आपका मन है? आज मैं राजी हूं।’

जीवन को जितने दूर तक बन सके, छोटे से छोटे काम से ले कर, सहज करना उचित है, क्योंकि सहज ही धीरे-धीरे समाधि बन जाता है।

वही करना जो तुम्हारे आनंद से हो रहा हो। और तुम लंबे अर्से में पछताओगे नहीं। हो सकता है, तत्क्षण अड़चन मालूम पड़े।

लेकिन झूठ झूठ है और तत्क्षण कितना ही सुविधापूर्ण मालूम पड़े, अंततः तुम्हें जाल में उलझा जाएगा। तुम साफ-साफ होना। इसको मैं प्रामाणिक होना कहता हूं।

पूछा है तुमने: ‘मनुष्य फिर कैसे तय करे – क्या कर्तव्य, क्या अकर्तव्य?’ तय करने की बात ही नहीं है।

जो सुखद, जो प्रीतिकर – वही कर्तव्य। जो प्रीतिकर नहीं, जो सुखद नहीं – वही अकर्तव्य।

तुम्हें उल्टा सिखाया गया है, इसलिए उलझन पैदा हो रही है। तुम्हें सिखाया गया है प्रीतिकर-अप्रीतिकर का कोई सवाल नहीं है, सहज-असहज का कोई सवाल नहीं है – दूसरे जैसा चाहते हैं, वैसा करो तो कर्तव्य; तुम जैसा चाहते हो, वैसा करो तो अकर्तव्य हो गया।

तो हर व्यक्ति दूसरे के हिसाब से जी रहा है। इसलिए तो कम लोग जी रहे हैं, अधिक लोग तो मरे-मराए हैं, जी ही नहीं रहे हैं। यह कोई जीने का ढंग है?”

प्राकृतिक ररूप से कटे हुए पत्ते वाले पौधे की एक पत्ती का चित्र
यदि यह कटा हुआ पत्ता अपने को बाक़ी पत्तियों से तौलने लगे तो यह असहज हो जाएगा। और इसी कारण चूक जाएगा लेकिन यही इसके सौंदर्य का कारण समझता है इसलिए सहज है। इसी को लेकर यदि इतराने लगे तो फिर यह असहज हो जाएगा।
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ओशो की इसी किताब से सहज समाधि पर ओशो:- 

“और मैं यह नहीं कहता कि अतीत जन्मों में तुमने कोई पाप किए थे, इसलिए तुम नर्क में हो।

मैं तुमसे कहता हूं: अभी तुम भ्रांतियां कर रहे हो, इसलिए तुम नर्क में हो।

क्योंकि अतीत जन्मों में किए पापों को अब तो दोहराने और ठीक करने का कोई उपाय नहीं। अब तो पीछे जाने की कोई जगह नहीं। वह तो धोखा है।

मैं तो तुमसे कहता हूं: अभी भी तुम वही कर रहे हो।

उनमें एक बुनियादी बात है: सहजता को मत छोड़ना।

कबीर ने कहा है: साधो सहज समाधि भली!

तुम सहज और सत्य और सरल…फिर जो भी कीमत हो, चुका देना। यही संन्यास है।

कीमत चुकाना तपश्चर्या है।

तुम झूठ मत लादना। तुम झूठे मुखौटे मत पहनना।

झेन फकीर कहते हैं: खोज लो अपना असली चेहरा, ओरिजिनल फेस। सहजता असली चेहरा है।

जीसस ने कहा: हो जाओ फिर छोटे बच्चों की भांति! सहजता छोटे बच्चों की भांति हो जाना है।

और वही अष्टावक्र का संदेश है, देशना है, कि जैसे हो वैसे ही, इसी क्षण घटना घट सकती है; सिर्फ एक बात छोड़ दो, अपने को कुछ और-और बताना छोड़ दो।

जो हो, बस वैसे…।

शुरू में निश्चित कठिनाई होगी, लेकिन धीरे-धीरे तुम पाओगे, हर कठिनाई तुम्हें नए-नए द्वारों पर ले आई और हर कठिनाई तुम्हारे जीवन को और मधुर कर गई और हर कठिनाई ने तुम्हें सम्हाला और हर कठिनाई ने तुम्हें मजबूत किया, तुम्हारे भीतर बल को जगाया!

धीरे-धीरे कदम-कदम चल कर एक दिन आदमी परिपूर्ण सहज हो जाता है।

तब उसके जीवन में कोई दुराव नहीं रह जाता, कोई कपट नहीं रह जाता।

इस जीवन को ही मैं धार्मिक जीवन कहता हूं।”

-ओशो,  “अष्टावक्र महागीता, भाग चार – Ashtavakra Mahageeta, Vol. 4: युग बीते पर सत्य न बीता, सब हारा पर सत्य न हारा (Hindi Edition)” by Osho .)

ओशो द्वारा सुझाया सहज ध्यान की यूट्यूब लिंक और मेरे अनुभव से होंश पूर्वक जीना यानी रोज़ के काम में होंश का प्रयोग मेरे जीवन को बदलकर रख गया। अपने आप सहज ही मन सपने देखना कम कर देता है, फिर जब भी सपना शुरू करता है तो विवेकपूर्वक उसका आना दिखाई देने लगता है, और दिखाई दे गया कि फिर बुना नया सपना मन ने-तो फिर रोकना कोई कठिन काम नहीं है। फिर बीज कब और सुगंध बनकर अनंत में घुल गया पता ही नहीं चलेगा। मैंने इसे जिस किताब से सीखा और जीवन में सुबह ब्रश करते समय प्रयोग करके साधा उसे जानने के इस लिंक से जाना होगा। यूट्यूब पर ओशो का होंश के प्रयोग पर वीडियो।

मेरा अनुभव जो आपके काम आ सकता है:-

सुबह ब्रश करते समय मैंने होंश को साधने का प्रयत्न करने लगा और समय के साथ, 20 वर्षों के भीतरमैं अन्य कृत्यों के दौरान होंश या जागरूकता को लागू करने में सक्षम हो गयाजबकि मुझे बाद में एहसास हुआ कि कई कृत्यों में यह पहले ही स्वतः होने लगा था।

संपूर्णता के साथ जीनाजीवन को एक प्रामाणिक रूप में जीना यानी भीतर बाहर एक और ईमानदारी से जीनालोगोंकी बिना भेदभाव के निःस्वार्थ भाव से सेवा करना और सभी बंधनों (धार्मिकशैक्षिकजातिरंग आदिसे मुक्त होनातीन महत्वपूर्ण उत्प्रेरक हैं जो किसी को गहराई तक गोता लगाने में मदद करते हैं।

होंश का प्रयोग मेरे लिए काम करने का तरीका है, (instagram पर होंशहो सकता है कि आपको भी यह उपयुक्तलगे अन्यथा अधिकांश लोगों के लिए गतिशील ध्यान है। लगभग 500 साल पहले भारतीय रहस्यवादी गोरखनाथद्वारा खोजी गई और ओशो द्वारा आगे संशोधित की गई 110 अन्य ध्यान तकनीकें हैं जिनका प्रयोग किया जा सकताहै और नियमित जीवन में उपयुक्त अभ्यास किया जा सकता है।

मेरे जीवन के अनुभव से मैं कहता हूँ कि दैनिक जीवन में होंश के प्रयोग के साथ साथ सहज जीवन भी यदि जिया जाए तो साधना की सरलता से सफलता भी बढ़ जाती है। ये दोनों एक दूसरे को मज़बूत करते जाते हैं। मुझसे सोशल मीडिया और अन्य ब्लॉग पर जुड़ने के लिए।

कॉपीराइट © ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन, अधिकतर प्रवचन की एक एमपी 3 ऑडियो फ़ाइल को osho डॉट कॉम से डाउनलोड किया जा सकता है या आप उपलब्ध पुस्तक को OSHO लाइब्रेरी में ऑनलाइन पढ़ सकते हैं।यू ट्यूब चैनल ‘ओशो इंटरनेशनल’ पर ऑडियो और वीडियो सभी भाषाओं में उपलब्ध है। OSHO की कई पुस्तकें Amazon पर भी उपलब्ध हैं।

मेरा सुझाव:- 

ओशो के डायनामिक मेडिटेशन को ओशो इंटरनेशनल ऑनलाइन (ओआईओ) ऑनलाइन आपके घर से सीखने की सुविधा प्रदान करता है। ओशो ध्यान दिवस अंग्रेज़ी में @यूरो 20.00 प्रति व्यक्ति के हिसाब से। OIO तीन टाइमज़ोन NY, बर्लिन औरमुंबई के माध्यम से घूमता है। आप अपने लिए सुविधाजनक समय के अनुसार प्रीबुक कर सकते हैं।

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