द्विज होने का मतलब क्या होता है?

नये वर्ष के आगमन पर एक कार्टून या मीम के ज़रिए जीवन को ट्रेडमिल पर की दौड़ बताया गया है। द्विज होने का मतलब प्रतिपल जन्मदिन मनाने से है ना की वर्ष पूरा करने से।
द्विज होने का मतलब समय की ट्रेड मिल पर दौड़ने जैसा नहीं है।


Today i come across a post on FaceBook as below.

🌹अपने जन्मदिन पर मे दिया गया परमगुरु ओशो का प्रवचन:..( 11 DEC 1970 )🌹

उस दिन से आपका जन्म शुरू हुआ जिस दिन से यह जिंदगी व्यर्थ दिखाई पड़नी शुरू हो जाए, उस दिन मैं कहूंगा आपकी असली जिंदगी शुरू हुई। आपका असली जन्म शुरू हुआ। और इस तरह के आदमी को ही द्विज, ट्वाइस बॉर्न।

जनेऊ डालने वाले को नहीं। क्योंकि जनेऊ तो किसी को भी डाला जा सकता है।

द्विज हम कहते रहे हैं उस आदमी को जो इस दूसरी जिंदगी में प्रवेश कर जाता है।

एक जन्म है जो मां-बाप से मिलता है वह शरीर का ही हो सकता है।

कि एक और जन्म है जो स्वयं की खोज से मिलता है वही जीवन की शुरुआत है।

इस जन्मदिन पर, मेरे तो नहीं कह सकता।

क्योंकि मैं तो जीसस, बुद्ध और लाओत्से से राजी हूं।

लेकिन इस जन्मदिन पर जो कि अ, ब, स, द किसी का भी हो सकता है।

आपसे इतना ही कहना चाहता हूं कि एक और सत्य भी है। उसे खोजें। एक और जीवन भी है यहीं पास, जरा मुड़ें तो शायद मिल जाए। बस किनारे पर, कोने पर ही। और जब तक वह जीवन न मिल जाए, तब तक जन्मदिन मत मनाएं। तब तक सोचें मत जन्म की बात।

क्योंकि जिसको आप जन्म कह रहे हैं, वह सिर्फ मृत्यु का छिपा हुआ चेहरा है।

हां, जिस दिन जिसको मैं जन्म कह रहा हूं, उसकी आपको झलक मिल जाए, उस दिन मनाएं। उस दिन फिर प्रतिपल जन्म है, क्योंकि उसके बाद फिर जीवन ही जीवन है–शाश्वत, अनंत; फिर उसका कोई अंत नहीं है। ऐसे जन्म की यात्रा पर आप निकलें, ऐसी परमात्मा से प्रार्थना करता हूं…!!

मेरा इस पोस्ट पर comment.

हम सबका जीवन जैसे Treadmill पर दौड़ने जैसा है। उस ट्रेड्मिल पर दौड़ते दौड़ते एक साल होने को जन्मदिन कैसे कहा जा सकता है?

जबकि मनुष्य होने का मतलब ही तब है जब हम उस दौड़ने से बाहर होकर जान जाएँ कि यह दौड़ने वाला शरीर मैं नहीं हूँ। मैं तो दृष्टा हूँ इसको देखने वाला। यह मनुष्य जीवन का चरम है और इसी को खोजने के लिए जन्म मिला है। इसको खोज लेना ही द्विज होना है क्योंकि हक़ीक़त में तुम वही हो।

अब यह शरीर तुम्हारे लिए बेकार हो गया। जिस काम के लिए यह मिला था वह पूरा हो गया। अब प्रारब्ध के कारण जितना जी सकेगा जीवन जिया जाएगा।

शरीर को भी आपके सहयोग की आवश्यकता है जीते रहने के लिए। कोई प्रधान मंत्री बन जाए तो उसकी सारी बीमारियाँ वैसे ही ठीक हो जातीं हैं क्योंकि जीवन का मज़ा तो अब है।

लेकिन द्विज होने के पश्चात् आपका सहयोग शरीर को मिलना बंद हो जाता है। इसी को कबीर ने कहा है

कबीर मन मिरतक भया, और दुर्बल भया शरीर।

अब पीछे लागा हरी फिरे, क़हत कबीर कबीर॥


लेकिन हमारा अहंकार हमको दूसरों के साथ दौड़ में लगा देता है। कोई समय की ट्रेडमिल पर ज़्यादा तेज़ी से दौड़ रहा है तो अपने को शक्तिशाली, धनी या मशहूर समझने लगता है।

और कोई इस समय की ट्रेडमिल पर धीरे ही दौड़ पा रहा है या जानबूझकर धीरे दौड़ तो अपने को कमजोर समझकर जी रहा है।

दोनों ही भ्रम में हैं। इस अहंकार या भ्रम को मिटाया नहीं जा सकता क्योंकि यह मन की परछाई है। इसलिए मन को मिटाने के लिए ध्यान किया जाता है। मन का मिट जाना ही अहंकार का मिटना हो जाता है। 

 केक और उसपर छः मोमबत्तियाँ जलती हुई बताते हुए फोटो जिससे पता चलता है कि छठा जन्मदिन मनाया गया है
मनुष्य को क्षुद्र में उलझाकर ही उसे उसके परम विस्तार को खोजने से रोका जा सकता है लेकिन अनंत काल तक नहीं। कभी ना कभी उसे यह सभी व्यर्थ नज़र आ ही जाता है। सारे संतों का प्रयास यही है कि जिसे कोई एक ऐसे काम में भी उस व्यर्थता का एहसास हो चुका है उस तक होंश के प्रयोग और उसके चमत्कारी परिणाम पहुँच सके।
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होंश के छोटे से प्रयोग ने मेरे जीवन में चमत्कारी परिणाम दिये आप भी इस अवस्था को समय के साथ अपने भीतर मौजूद पाएँगे। मेरे एक पोस्ट में इसके बारे में विस्तार से बताया है। लिंक पर क्लिक करके उसे भी पढ़ सकते हैं। 

इसके साथ ‘सहज जीवन के सूत्र’ पोस्ट में मैंने जीवन को कैसे जिया जाए की होंश के प्रयोग का प्रभाव देखने में आ सके, उसे भी पढ़ेंगे तो और भी बेहतर होगी आपकी आंतरिक यात्रा। अनंत शुभकामनाओं के साथ।

मेरे जीवन के अनुभव से मैं कहता हूँ कि दैनिक जीवन में होंश के प्रयोग के साथ साथ सहज जीवन भी यदि जिया जाए तो साधना की सरलता से सफलता भी बढ़ जाती है। ये दोनों एक दूसरे को मज़बूत करते जाते हैं।

मेरा अनुभव जो आपके काम आ सकता है:-

समय के साथ, 20 वर्षों के भीतरमैं अन्य कृत्यों के दौरान होंश या जागरूकता को लागू करने में सक्षम हो गयाजबकि मुझे बाद में एहसास हुआ कि कई कृत्यों में यह पहले ही स्वतः होने लगा था।

संपूर्णता के साथ जीनाजीवन को एक प्रामाणिक रूप में जीना यानी भीतर बाहर एक और ईमानदारी से जीनालोगोंकी बिना भेदभाव के निःस्वार्थ भाव से सेवा करना और सभी बंधनों (धार्मिकशैक्षिकजातिरंग आदिसे मुक्त होनातीन महत्वपूर्ण उत्प्रेरक हैं जो किसी को द्विज होने का मतलब समझने की गहराई तक गोता लगाने में मदद करते हैं।

होंश का प्रयोग मेरे लिए काम करने का तरीका है, (instagram पर होंशहो सकता है कि आपको भी यह उपयुक्तलगे अन्यथा अधिकांश लोगों के लिए गतिशील ध्यान है। लगभग 500 साल पहले भारतीय रहस्यवादी गोरखनाथद्वारा खोजी गई और ओशो द्वारा आगे संशोधित की गई 110 अन्य ध्यान तकनीकें हैं जिनका प्रयोग किया जा सकताहै और नियमित जीवन में उपयुक्त अभ्यास किया जा सकता है।

मेरे जीवन के अनुभव से मैं कहता हूँ कि दैनिक जीवन में होंश के प्रयोग के साथ साथ सहज जीवन भी यदि जिया जाए तो साधना की सरलता से सफलता भी बढ़ जाती है। ये दोनों एक दूसरे को मज़बूत करते जाते हैं। मुझसे सोशल मीडिया और अन्य ब्लॉग पर जुड़ने के लिए।

कॉपीराइट © ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन, अधिकतर प्रवचन की एक एमपी 3 ऑडियो फ़ाइल को osho डॉट कॉम से डाउनलोड किया जा सकता है या आप उपलब्ध पुस्तक को OSHO लाइब्रेरी में ऑनलाइन पढ़ सकते हैं।यू ट्यूब चैनल ‘ओशो इंटरनेशनल’ पर ऑडियो और वीडियो सभी भाषाओं में उपलब्ध है। OSHO की कई पुस्तकें Amazon पर भी उपलब्ध हैं।

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