
सांचे का साहब धनी, समरथ सिरजनहार।
पाखंड की यह पिर्थवी, परपंच का संसार।।
यह जो आदमियों ने बना रखा है संसार, यह तो सब झूठ का है। ये तो झूठे खेल इसमें चल रहे हैं। पारस्परिक असत्य के संबंध चल रहे हैं। जो नहीं है वैसा मान कर हम चल रहे हैं।
एक स्त्री को तुम विवाह कर लाए, सात चक्कर लगा लिए अग्नि के। वह तुम्हारी हो गई सात चक्कर लगाने से? कल तक कोई भी न थी, आज सब कुछ हो गई सात चक्कर लगाने से! सत्तर लगाओ तो भी क्या होगा? चक्कर लगाने से किसी का अपना होने से क्या संबंध है? लेकिन एक भ्रांति पैदा हो गई कि मेरी है। सहारा मिला। उसको भी सहारा मिला कि तुम उसके हो। अब तुम एक-दूसरे पर भरोसा कर सकते हो। एक-दूसरे के कंधे पर हाथ का सहारा ले सकते हो। अब तुम सोच सकते हो कि कोई तुम्हारा है।
यह परपंच है। कोई किसी का नहीं है। तुम अपने ही हो जाओ तो काफी है।
मैं यह नहीं कह रहा हूं कि तुम पत्नियों को छोड़ कर भाग जाओ। उनका कोई कसूर नहीं है। मैं यह कह रहा हूं, तुम जहां हो वहीं जागो। पत्नी को छोड़ने की कोई जरूरत नहीं है। सिर्फ मेरा भाव छूट जाए कि यह मेरी; कि मैं इसका। तो तुम दोनों परमात्मा के हो। अभी तुम पत्नी के हो, पत्नी तुम्हारी है। तुमने एक अलग दुनिया बना ली परमात्मा के जगत से। तुमने अपना एक घर-संसार बना लिया। तुम्हारे बच्चे हैं, तुम्हारी धन-दौलत, तुम्हारी तिजोड़ी, बैंक-बैलेंस। तुमने अलग ही तोड़ लिया अपने को। तुम अब समष्टि के हिस्से नहीं हो।
भागने से कुछ भी न होगा, जागने से होगा। जागने का मतलब यह है कि तुम अचानक जाग कर देखते हो, यह भी कैसा सपना देख रहा हूं! कौन मेरा है! अकेला आया, अकेला जाऊंगा, अकेला हूं। पत्नी कितने ही पास हो, तो भी फासला अनंत है। कोई भागने का सवाल नहीं है। खुद जागो, उसे भी जगाओ कि हम दोनों परमात्मा के हैं। यह जो बीच में हमने एक अपनी दुनिया बना ली थी, एक निजी संसार बना लिया था, वह झूठ है, वह प्रपंच है।
पाखंड की यह पिर्थवी…
पाखंड को पृथ्वी कह रहे हैं दादू, पृथ्वी को पाखंड नहीं कह रहे हैं। इसको समझ लेना।
पाखंड की यह पिर्थवी…
वे इस पृथ्वी को पाखंड नहीं कह रहे हैं। पृथ्वी तो बड़ी सच्ची है, उसको तो पाखंड का कोई भी पता नहीं। लेकिन जिस पृथ्वी पर तुम रह रहे हो, वह पाखंड की है। तुमने एक जमीन का टुकड़ा घेर लिया, बागुड़ लगा दी, कहते हो, मेरी। यह जो “मेरी’ पृथ्वी है, यह पाखंड हो गई। सब उसका है। तुम्हारा क्या है? तुम यहां नहीं थे, तब भी पृथ्वी थी। तुम नहीं रहोगे, तब भी पृथ्वी रहेगी। आदमियत न थी, तब भी थी पूरी; आदमियत खो जाएगी किसी दिन, तब भी रहेगी। पक्षी ऐसे ही गीत गाएंगे, वृक्ष ऐसे ही हरे होंगे, हवाएं ऐसी ही चलेंगी। किसी को तुम्हारे न होने का पता भी न चलेगा। तुम थे कि तुम नहीं थे, कोई अंतर न आएगा। यह जगत की कथा ऐसी ही चलती रहेगी। नहीं, यह पृथ्वी तुम्हारी नहीं है। लेकिन तुमने एक और पृथ्वी बना ली है–भारत! यह पाखंड। पाकिस्तान! यह पाखंड। पृथ्वी उसकी है, खंड तुम कैसे करते हो? कहां तुम रेखा खींचते हो पाकिस्तान की? किस आधार पर खींचते हो? तुम्हारी रेखा तुम्हारे पागलपन की खबर देती है, लेकिन पृथ्वी के बंटने की कोई खबर नहीं देती। पृथ्वी को पता ही नहीं कहां पाकिस्तान शुरू होता है, कहां हिंदुस्तान शुरू होता है।
मैंने सुना है, जब भारत और पाकिस्तान बंटा, तो एक पागलखाना था। राजनेता बंटवारे में लगे थे, उनको किसी को खयाल ही न रहा कि पागलखाना कहां जाए। वह बिलकुल सीमा पर था। आधा इस तरफ, आधा उस तरफ। पागलखाने की फिक्र भी किसको थी! कौन उत्सुक था उसको लेने के लिए! कोई भी ले ले। इसलिए किसी ने ज्यादा चिंता न की। सब बंटवारा हो गया तब पता चला उसका तय नहीं हुआ पागलखाने का। उसको कहां जाना, क्या करना। तो जैसा बड़े पागलखाने में हुआ था कि हिंदुओं से पूछ लो, मुसलमानों से पूछ लो; ऐसा ही लोगों ने कहा, उस छोटे पागलखाने में भी यही नियम का उपयोग करो, पागलों से पूछ लो–कहां जाना?
अब पागलों को यही पता होता कहां जाना तो पागल क्यों होते! पागलों से पूछा तो पागलों ने कहा, हमें तो कहीं नहीं जाना। हमें तो यहीं रहना है।
उनको बहुत समझाया कि तुम समझो।
मगर पागल सीधे-सादे थे, जैसे कि पागल सीधे-सादे होते हैं। वे तुम्हारे राजनीतिज्ञों जैसे तिरछे नहीं थे। उनकी समझ में ही न आए। वे बड़े सोच-विचार में पड़े। उन्होंने बड़ा विचार किया, रात सोएं न, एक-दूसरे से समझाएं कि मामला क्या है! अधिकारी कहते हैं कि जाना कहीं भी नहीं है, रहोगे तुम यहीं; फिर भी कहां जाना है? पाकिस्तान में जाना है कि हिंदुस्तान में जाना है?
उनको बात बेबूझ हो गई। यह तो बड़ी पहेली हो गई। कहते हैं कि जाना कहीं भी नहीं है, रहोगे यहीं, और फिर भी पूछते हैं–कहां जाना है? जब जाना ही नहीं कहीं तो पूछना क्या! अगर पूछना ही है तो झूठा आश्वासन क्यों देते हैं कि यहीं रहोगे। इसमें जरूर कोई जालसाजी है।
आखिर कोई निर्णय न हो सका तो अधिकारियों ने कहा, अब वही करो जो बड़े पागलखाने में किया–बीच से एक दीवाल खींच दो, ठीक बीच से। इस तरफ हिंदुस्तान हो जाएगा, उस तरफ पाकिस्तान हो जाएगा।
बीच में दीवाल खींच दी। जिन पागलों की कोठरियां उस तरफ पड़ गईं, वे पाकिस्तान में हो गए। जिन पागलों की कोठरियां इस तरफ पड़ गईं, वे हिंदुस्तान में हो गए।
मैंने सुना है कि अभी भी पागल भरोसा नहीं कर पाए कि हुआ क्या! क्योंकि वे हैं तो वहीं। वे कभी-कभी दीवाल पर चढ़ जाते हैं और एक-दूसरे से बात करते हैं कि मामला क्या है? हम हैं वहीं। तुम भी वहीं, हम भी वहीं। बीच में एक दीवाल खींच दी, तुम पाकिस्तानी हो गए, हम हिंदुस्तानी हो गए। तुम हमारे दुश्मन हो गए, हम तुम्हारे दुश्मन हो गए। अधिकारी आ जाते हैं तो दीवालों से उतर कर अपनी कोठरियों में छिप जाते हैं। क्योंकि अधिकारी यह बरदाश्त नहीं करते कि पाकिस्तान- हिंदुस्तान की सीधी कोई वार्ता हो; कि पाकिस्तानी-हिंदुस्तानी मिलें। नहीं; उन्होंने पुलिस के आदमी खड़े कर रखे हैं।
आदमी की बुद्धि बंटी है; जमीन तो बंटी नहीं है। जिस पृथ्वी को दादू कह रहे हैं पाखंड, वह तुम्हारी बुद्धि की बंटी हुई पृथ्वी है। वह तुम्हारे खयालों की पृथ्वी है। वास्तविक पृथ्वी, जिस पर तुम खड़े हो, वह तो अनबंटी परमात्मा की है।
और…परपंच का संसार।
संसार प्रपंच नहीं है, प्रपंच संसार है। वे तुमने जो खेल बना रखे हैं प्रपंच के–पति के, पत्नी के, भाई के, बहन के, दोस्त के, दुश्मन के। हजार तरह के खेल तुमने खेल रखे हैं। ग्राहक, दुकानदार, मालिक, नौकर–न मालूम कितने खेल हैं जो आदमी खेल रहा है। तुम कभी चौबीस घंटे निरीक्षण करो–तुम कितने खेल खेलते हो।
तुम कमरे में बैठे अखबार पढ़ रहे हो, नौकर आता है, तुम ऐसे अखबार पढ़ते रहते हो जैसे कोई मनुष्य प्रविष्ट नहीं हुआ। क्योंकि यह कोई मनुष्य थोड़े ही है, नौकर है। इसका आना-जाना, ध्यान नहीं देना पड़ता। तुम अखबार से आंख भी नहीं उठाते। तुम ऐसा मान कर चलते हो जैसे कुत्ता-बिल्ली गई हो। कुत्ता-बिल्ली भी जाए तो आदमी थोड़ा चौंक कर देखता है। नौकर है!
नौकर कोई आदमी थोड़े ही है। यह किसी का पति थोड़े ही है, किसी का बाप थोड़े ही है। इसके हृदय में थोड़े ही हृदय धड़कता है। इसकी श्वास में थोड़े ही श्वास चलती है। यह नौकर है! एक लेबल है। तुम लेबल के इस तरफ खड़े हो। उस तरफ के आदमी को तुम देखते भी नहीं।
क्योंकि देखने में खतरा है। अगर तुम देखो खेल के बाहर झांक कर, तो हो सकता है इसकी पत्नी बीमार हो, और जो तनख्वाह तुम दे रहे हो, यह मरने के लिए काफी हो, जीने के लिए काफी न हो। इसका बच्चा भूखा हो। अगर तुम आदमी देखो तो तुम झंझट में पड़ोगे। आदमी देखना ही नहीं है। बड़ा लेबल लगा दिया–कि नौकर। उस तरफ छिपा दिया आदमी को। अब हमारा नौकर से लेना-देना है। सौ रुपये महीना देना है वह ले लो। काम करना है वह काम कर दो। काम का तुम्हारा संबंध, पैसे हमें तुम्हें दे देने हैं, इससे ज्यादा कोई नाता नहीं। इससे ज्यादा न हम तुममें देखेंगे, न तुम हममें देखने की कोशिश करना।
फिर तुम्हारा मालिक आता है, जिसके तुम नौकर हो। उछल कर खड़े हो जाते हो। यह मालिक है। पूंछ हिलाने लगते हो। कुर्सी पर बिठाते हो, आगत-स्वागत करते हो। यह भी वैसा ही आदमी है। लेकिन लेबल इस पर दूसरा है। वह जो आदमी था, नौकर था। अब तुम नौकर हो। यह तुम्हारे साथ वैसा ही व्यवहार करेगा जैसा तुमने अपने नौकर के साथ व्यवहार किया था।
यह खेल है। यह नाटक चल रहा है। तुम्हारी पत्नी है, तुम्हारा बेटा है। अगर तुम्हारा बेटा बीमार है तो परेशान हो। पड़ोसी का बीमार है तो कोई अंतर नहीं पड़ता। यह सिर्फ खेल है। तुम्हें पक्का पता है कि तुम्हारा बेटा तुम्हारा बेटा है? हो सकता है पड़ोसी का हो। किसको क्या पता है? लेकिन लेबल बांध लिए तो हिसाब सीधा हो गया।
फिर खेल की सीमा बना ली है। नियम हैं खेल के, उस हिसाब से चलते हैं। जैसे रास्ते पर चलने का नियम है, बाएं चलो। अमरीका में नियम है, दाएं चलो। वह भी काम देता है, यह भी काम देता है। दोनों खेल के नियम हैं। जरूरी हैं। क्योंकि इतना भीड़-भड़क्का है, अगर सभी लोग सीधे रास्ते पर चलने लगें, जहां जिनको जाना हो, तो चलने में मुश्किल होगी, अड़चन होगी। टहलने वालों को तो कोई अड़चन न होगी, जिनको कहीं पहुंचना है उनको बड़ी मुसीबत हो जाएगी। तो नियम बना लिए हैं, खेल बना लिए हैं।
प्रपंच का अर्थ है, जीवन की वास्तविकता के ऊपर आदमी ने जो अपने नियम थोप दिए हैं। और जिनके आस-पास वह जीता है और जिनके आर-पार कभी नहीं देखता।
-ओशो-अकथ कहानी प्रेम की, प्रवचन #3, प्रेम प्रसाद है (सूफ़ी संत फ़रीद के संदेशों पर ओशो के प्रवचन से)
मेरा अनुभव कहता है कि एक व्यक्ति जो ‘सजग और सहज’ (aware & authentic) है उसे धीरे धीरे उसके जीवन में जो भी पाखंड और प्रपंच हैं, वे वैसे ही नज़र आने लगते हैं जैसे की फ़रीद को नज़र आते हैं। यह दिखाई देना ही उन उन पाखंडों और प्रपंचों का उसके जीवन से मुक्ति का मार्ग बनाता है। जीवन को ईश्वर ने बुना ही इस प्रकार है कि इनसे पहचान हर व्यक्ति की होती है, फ़र्क़ सिर्फ़ यह होता है कि जीवन में कितनी जल्दी हम इनको पहचानकर इनसे मुक्त हो गए। अधिकतर लोगों को यह मृत्यु के ठीक पहले यह एहसास होता है, लेकिन तब समय ही नहीं होता और छटपटाहट के साथ, और इस खीज के साथ मरते हैं कि पहले इसका एहसास क्यों नहीं हुआ? इसलिए फ़रीद के शिष्य दादू को लगा कि यह लोगों तक काफ़ी पहले बता देने से वे सजग और सहज जीवन जीने लगेंगे। लेकिन लोग हैं कि जानकर भी अनजान बन जाते हैं और इस काम को भविष्य में करने के लिए लिख लेते हैं। आदमी का जीवन क्षणभंगुर है, और समय बीतते भी देर नहीं लगती और फिर वही प्रश्न सामने खड़ा हो जाता है। इसलिए शुभ काम को टालने के लिए सख़्त मना किया है सभी संतों ने एकमत होकर।
होंश के छोटे से प्रयोग से आप भी इस अवस्था को समय के साथ अपने भीतर मौजूद पाएँगे। मेरे एक पोस्ट में इसके बारे में विस्तार से बताया है। लिंक पर क्लिक करके उसे भी पढ़ सकते हैं।
इसके साथ ‘सहज जीवन के सूत्र’ पोस्ट में मैंने जीवन को कैसे जिया जाए की होंश के प्रयोग का प्रभाव देखने में आ सके, उसे भी पढ़ेंगे तो और भी बेहतर होगी आपकी आंतरिक यात्रा। अनंत शुभकामनाओं के साथ।
मेरे जीवन के अनुभव से मैं कहता हूँ कि दैनिक जीवन में होंश के प्रयोग के साथ साथ सहज जीवन भी यदि जिया जाए तो साधना की सरलता से सफलता भी बढ़ जाती है। ये दोनों एक दूसरे को मज़बूत करते जाते हैं।
Quora पर आध्यात्मिक यात्रा से संबंधित विभिन्न भाषाओं जैसे हिन्दी, मराठी और गुजराती में भी प्रश्नों के जवाब दिये हैं। हो सकता है आपके किसी प्रश्न का जवाब वहाँ मिल जाए। https://www.quora.com/profile/Philosia-of-Existence
Spotify पर हिन्दी में कुछ पॉडकास्ट दर्शन (Philosia) नाम के चैनल पर किए हैं। नीले अक्षरों से लिखे “दर्शन (Philosia)” पर क्लिक करके उसकी लिंक पर जाकर उनको सुन सकते हैं।
Awareness meditation is the way worked for me, may be you too find it suitable otherwise Dynamic meditation is for most of the people. There are 110 other meditation techniques discovered by Indian Mystic Gorakhnath about 500years before and further modified by Osho that one can experiment and the suitable one could be practiced in routine life.
Osho International Online (OIO) provides facility to learn these from your home,
1. through Osho Meditation Day @€20.00 per person. OIO rotate times through three timezones NY,Berlin and Mumbai. You can prebook according to the convenient time for you.
2. There is OSHO Evening Meeting streaming which can be accessed every day at local time starting 6:40 pm (of which Osho says that he wants his people to view it all over the world and these days it is possible) and 16 of the meditations mostly with video instructions and so much more on OSHO.com/meditate.
3. There is a 7 days Free Trial also for people who would like to first try it out.
This is an opportunity for learning and knowing Osho through these sannyasins who lived in his presence and brought to life his words in best possible quality in all formats.
Disciples of Jesus left him alone in last minutes but Osho’s disciples remained with him till he left his body willingly after working, till last day, for all of us to get enlightened. Jesus tried hard till last minute, before being caught, to teach meditation to his disciples. As per Saint John’s Gospel:- Jesus used word ‘Sit’ to transfer his meditative energy to them and went on to pray God, but on returning he found them sleeping. He tried two times again but in vain.
Even today Zen people use word ‘Sit’ for meditation in their saying ‘Sit silently, do nothing, season comes and the grass grows by itself green’.
Hi ….. I write my comments from my personal experiences of my inner journey. This post may include teachings of Mystics around the world that I found worth following even today. For more about me and to connect with me on social media platforms, have a look at my linktree website for connecting with my social media links, or subscribe my YouTube channel and/or listen to the podcasts etc.
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