कोलंबस जैसे को ही गुरु के बिना ज्ञान उपलब्ध होगा

सारथी बनें स्वार्थी नहीं की प्रेरणा देता एक क्वोट। कोलंबस जैसे व्यक्ति से अपने जुझारूपन से की प्रेरणा लेकर ही हम गुरु के बिना ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।
गुरु के बिना ज्ञान उपलब्ध है लेकिन सिर्फ़ कोलंबस जैसे लोगों को ही। कोलंबस आज लाखों करोड़ों लोगों को संसार में सफल होने की प्रेरणा का आज भी स्रोत हैं। ओशो कहते हैं कि कोई इस तरह का जुझारू व्यक्ति ही अपनेआप से आत्मज्ञान को, परमात्मा को प्राप्त कर सकता है। बाक़ी साधारण लोगों को किसी जीवित गुरु की सहायता की लगेगी ही। अतः ईश्वर दर्शन के खोजी को अपने आसपास खोजते रहना चाहिए।

कोष्ठक में मेरे अनुभव से ओशो के वचन को आज की दुनिया के परिपेक्ष्य में स्पष्ट करने का प्रयत्न करता हूँ। 

गुरु के बिना ज्ञान उपलब्ध है, परमात्मा उपलब्ध है, मगर उपलब्ध हो न सकेगा।(जब तक की व्यक्ति में तीव्र प्यास ना जगी हो, और उसको बुझाने के लिए वह किसी से भी सीखने को तैयार हो)

जब वह उपलब्ध हो जाएगा तब तुम जानोगे कि हो सकता था। लेकिन वह सदा बाद में।

कोलंबस ने अमरीका खोजा। जब तक नहीं खोजा, तो कोई भरोसा नहीं था किसी को; लोग सोचते थे यह गया, यह लौटने वाला नहीं है। क्योंकि यह सिर्फ कल्पना के आधार पर कि यदि पृथ्वी गोल है… जो कि गैलीलियो और कोपरनिकस ने सिद्ध कर दिया था कि पृथ्वी गोल है, मगर कोई देखा तो नहीं था; देखा तो अभी तक नहीं था।

जब पहली दफा अंतरिक्ष-यात्रा शुरू हुई और मनुष्य पृथ्वी के घेरे के बाहर गया तब पहली दफा दिखाई पड़ा कि पृथ्वी गोल है, इसके पहले तो किसी ने देखा न था, यह तो धारणा थी, तर्कसिद्ध थी, हजार प्रमाण थे इसके, लेकिन सब प्रमाण परोक्ष थे।

कोलंबस ने कहा कि जब पृथ्वी गोल है तो अगर मैं जाऊं यात्रा पर और करता ही रहूं यात्रा सीधा, सीधा, तो एक दिन वापस इसी जगह लौट आऊंगा। अगर बीच में कुछ हुआ तो मिल गई कोई जगह तो ठीक है, नहीं तो वापस अपने घर आ जाएंगे। गोल अगर पृथ्वी है तो लौट ही आएंगे अपनी जगह, भटकने का कोई सवाल नहीं है।

कोई साथ जाने को राजी न था। बड़ी मुश्किल से सालों की खोज के बाद अस्सी आदमी तैयार हो सके। उनमें कई ऐसे थे, जो मरने को तत्पर थे, जिनको जिंदगी में कोई सार न था। कुछ पागल थे, दीवाने थे, उन्होंने कहा, चलो, कोई हर्जा नहीं; मरेंगे, और क्या होगा!

ढंग का कोई एक आदमी तैयार नहीं था। कुछ को सम्राट की आज्ञा हुई थी, इसलिए कुछ सैनिकों को जाना पड़ रहा था, तो वे गए थे। इन अस्सी आदमियों को लेकर कोलंबस गया। जिसने धन की सहायता दी थी, जिस रानी ने, उसके दरबारियों ने कहा था: यह फिजूल पैसा खराब हो रहा है। ये अस्सी आदमी मरेंगे। ये लाखों रुपये खराब होंगे। पर उस रानी ने कहा: करने दो, एक प्रयोग है देखेंगे।

कोलंबस अमरीका खोज कर लौट आया। दरबार में उसका स्वागत हुआ।

तो उन्हीं दरबारियों ने कहा: यह कोई क्या खास बात है, यह कोई भी खोज लेता। अगर पृथ्वी गोल है, कोई भी जाता तो मिल जाता।

कोलंबस की थाली में एक अंडा रखा था। उसने अंडा उठाया और उसने कहा: इसे कोई सीधा खड़ा करके बता दे टेबल पर।

कई ने कोशिश की खड़ा करने की; पर अब अंडा कैसे सीधा खड़ा हो? वह गिर-गिर जाए। उन्होंने कहा: यह हो ही नहीं सकता; यह असंभव है।

कोलंबस ने जोर से अंडे को ठोका टेबल पर, नीचे की पर्त सीधी हो गई, अंदर दब गई, अंडा खड़ा हो गया।

उन्होंने कहा: अरे, यह तो कोई भी कर देता!

कोलंबस ने कहा: लेकिन किसी ने किया नहीं।

करने के बाद तो सभी कुछ आसान हो जाता है। करने के पहले असली सवाल है। उस करने के पहले गुरु की जरूरत है।

— भक्ति सूत्र – Bhakti Sutra by Osho . Read it for free
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मेरा अनुभव:

1983 का क्रिकेट का one day championship की जीत से साबित हुआ कि कपिल देव ने गुरु के बिना ज्ञान हासिल किया, या कुश्ती और बैड्मिंटॉन के olympic मेडल साक्षी और साइना नेहवाल ने गुरु के बिना ज्ञान हासिल कर जीते हों आज के Indian में आत्मविश्वास की झलक उन्हीं महान प्रयत्नों से हासिल हुए राष्ट्र गौरव का परिणाम है।

Spotify पर हिन्दी में कुछ पॉडकास्ट दर्शन (Philosia) नाम के चैनल पर किए हैं।

द्रष्टा (यानी भीतर की आँख से) होने का चमत्कार यह है कि जब तुम (आँख बंद करके अपने ) शरीर को देखते हो, तो तुम्हारा द्रष्टा अधिक मजबूत होता है। जब तुम अपने विचारों को देखते हो, तो तुम्हारा द्रष्टा और भी मजबूत होता है। और जब अनुभूतियों को देखते हो, तो तुम्हारा द्रष्टा फिर और मजबूत होता है। जब तुमअपनी भाव-दशाओं को देखते हो, तो द्रष्टा इतना मजबूत हो जाता है कि स्वयं बना रह सकता है — स्वयं को देखता हुआ, जैसे किअंधेरी रात में जलता हुआ एक दीया न केवल अपने आस-पास प्रकाश करता है, बल्कि स्वयं को भी प्रकाशित करता है!

लेकिन लोग बस दूसरों को देख रहे हैं, वे कभी स्वयं को देखने की चिंता नहीं लेते।गुरु के बिना ज्ञान उपलब्ध करने के लिए स्वयं को देखने की चिंता करनी होगी। हर कोई देख रहा है — यह सबसे उथले तल परदेखना है — कि दूसरा व्यक्ति क्या कर रहा है, दूसरा व्यक्ति क्या पहन रहा है, वह कैसा लगता है। हर व्यक्ति देख रहा है — देखने की प्रक्रिया कोई ऐसी नई बात नहीं है, जिसे तुम्हारे जीवन में प्रवेश देना है। उसे बस गहराना है — दूसरों से हटाकर स्वयं की आंतरिकअनुभूतियों, विचारों और भाव-दशाओं की ओर करना है — और अंततः स्वयं द्रष्टा की ओर ही इंगित कर देना है।

लोगों की हास्यास्पद बातों पर तुम आसानी से हंस सकते हो, लेकिन कभी तुम स्वयं पर भी हंसे हो? 

कभी तुमने स्वयं को कुछ हास्यास्पदकरते हुए पकड़ा है?

 नहीं, स्वयं को तुम बिलकुल अनदेखा रखते हो — तुम्हारा सारा देखना दूसरों के विषय में ही है, और उसका कोईलाभ नहीं है।

अवलोकन की, अवेयरनेस की इस ऊर्जा का उपयोग अपने अंतस के रूपांतरण के लिए कर लो। यह इतना आनंद दे सकती है, इतने आशीष बरसा सकती है कि तुम स्वप्न में भी नहीं सोच सकते। सरल सी प्रक्रिया है, लेकिन एक बार तुम इसका उपयोग स्वयं पर करने लगो, तो यह एक ध्यान बन जाता है।

किसी भी चीज को ध्यान बनाया जा सकता है!

अवलोकन तो तुम सभी जानते हो, इसलिए उसे सीखने का कोई प्रश्न नहीं है, केवल देखने के विषय को बदलने का प्रश्न है। उसे करीबपर ले आओ। अपने शरीर को देखो, और तुम चकित होओगे।

अपना हाथ मैं बिना द्रष्टा हुए भी हिला सकता हूं, और द्रष्टा होकर भी हिला सकता हूं। तुम्हें भेद नहीं दिखाई पड़ेगा, लेकिन मैं भेद कोदेख सकता हूं। जब मैं हाथ को द्रष्टा-भाव के साथ हिलाता हूं, तो उसमें एक प्रसाद और सौंदर्य होता है, एक शांति और एक मौन होताहै।

तुम हर कदम को देखते हुए चल सकते हो, उसमें तुम्हें वे सब लाभ तो मिलेंगे ही जो चलना तुम्हें एक व्यायाम के रूप में दे सकता है, साथही इससे तुम्हें एक बड़े सरल ध्यान का लाभ भी मिलेगा।

–ओशो 

ध्यानयोग: प्रथम और अंतिम मुक्ति

मेरे अनुभव जो शायद आपके कुछ काम आ सकें:- 

समय के साथ, 20 वर्षों के भीतर, मैं अन्य कृत्यों के दौरान होंश या जागरूकता को लागू करने में सक्षम हो गया, जबकि मुझे बाद में एहसास हुआ कि कई कृत्यों में यह पहले ही स्वतः होने लगा था। और जब तक हम एक बार मन से शून्य, विचारों से शून्य होने का अनुभव लेकर उसको सभी कार्यों में, यहाँ तक कि सेक्स में भी, उपयोग करके देख लेने से हमको गुरु के बिना ज्ञान मिलने की संभावना बढ़ जाती है। अपने जीवन में प्रयोग करके देखने की वृत्ति होना ज़रूरी है। उसके लिए कोलंबस जैसे (सांसारिक) जीवन तक दांव पर लगाने की हिम्मत होना चाहिए। 

संपूर्णता के साथ जीना, जीवन को एक प्रामाणिक रूप में जीना यानी भीतर बाहर एक और ईमानदारी से जीना, लोगोंकी बिना भेदभाव के निःस्वार्थ भाव से सेवा करना और सभी बंधनों (धार्मिक, शैक्षिक, जाति, रंग आदि) से मुक्त होनातीन महत्वपूर्ण उत्प्रेरक हैं जो किसी को गहराई तक गोता लगाने में मदद करते हैं।

होंश का प्रयोग मेरे लिए काम करने का तरीका है, (instagram पर होंश) हो सकता है कि आपको भी यह उपयुक्तलगे अन्यथा अधिकांश लोगों के लिए गतिशील ध्यान है। लगभग 500 साल पहले भारतीय रहस्यवादी गोरखनाथ द्वारा खोजी गई और ओशो द्वारा आगे संशोधित की गई 110 अन्य ध्यान तकनीकें हैं जिनका प्रयोग किया जा सकताहै और नियमित जीवन में उपयुक्त अभ्यास किया जा सकता है।

नमस्कार ….. मैं अपनी आंतरिक यात्रा के व्यक्तिगत अनुभवों से अपनी टिप्पणियाँ लिखता हूँ। इस पोस्ट में दुनिया भरके रहस्यवादियों की शिक्षाएँ शामिल हो सकती हैं जिन्हें मैं आज भी मानने लायक समझता हूँ। मेरे बारे में अधिकजानकारी के लिए और मेरे साथ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जुड़ने के लिए, मेरे सोशल मीडिया लिंक से जुड़ने केलिए वेबसाइट https://linktr.ee/Joshuto पर एक नज़र डालें, या मेरे यूट्यूब चैनल की सदस्यता लें और/यापॉडकास्ट आदि सुनें।

कॉपीराइट © ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन, अधिकतर प्रवचन की एक एमपी 3 ऑडियो फ़ाइल को osho डॉट कॉम से डाउनलोड किया जा सकता है या आप उपलब्ध पुस्तक को OSHO लाइब्रेरी में ऑनलाइन पढ़ सकते हैं।यू ट्यूब चैनल ‘ओशो इंटरनेशनल’ पर ऑडियो और वीडियो सभी भाषाओं में उपलब्ध है। OSHO की कई पुस्तकें Amazon पर भी उपलब्ध हैं।

मेरे सुझाव:- 

ओशो के डायनामिक मेडिटेशन को ओशो इंटरनेशनल ऑनलाइन (ओआईओ) ऑनलाइन आपके घर से ओशो ने नई जनरेशन के लिए जो डायनामिक मेडिटेशन दिये हैं उन्हें सीखने की सुविधा प्रदान करता है। ओशो ध्यान दिवस अंग्रेज़ी में @यूरो 20.00 प्रति व्यक्ति के हिसाब से। OIO तीन टाइमज़ोन NY, बर्लिन औरमुंबई के माध्यम से घूमता है। आप अपने लिए सुविधाजनक समय के अनुसार प्रीबुक कर सकते हैं।

 

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