मनु संस्कृति से स्त्रियों को अंबेडकर, ओशो ने कैसे मुक्ति दी

मनु संस्कृति was uprooted by ambedkar by giving equal rights to women to get educated through law in constitution
मनु संस्कृति से महिलाओं को मुक्ति अंबेडकर ने संविधान के माध्यम से दिलाई

सभी लड़कियां और महिलाएं विशेष ध्यान दें। यह महज़ संयोग नहीं है कि मनु संस्कृति को जिलाये रखने वाली किताब मनुस्मृति को अंबेडकर द्वारा 25 दिसंबर के दिन जलाया गया, बल्कि इतिहास में स्त्री और निचले तबके के लोगों के लिए आध्यात्मिक मार्ग अपनाकर अपने भीतर के सत्य को पाने का मार्ग जीसस क्राइस्ट ने ही खोला था।जीसस के पहले तक सिर्फ़ उच्च वर्ग या कुलीन परिवार के पुरुष लोग ही शिक्षा और अध्यात्म के द्वारा सत्य के प्राप्ति कर पाये। जीसस के बाद राबिया, मीरा, लैला, सहजो और दयाबाई इत्यादि स्त्रियों ने आत्मज्ञान को प्राप्त कर कई पुरुषों को भी आत्मज्ञान के लिए mentoring किया।

कितने आश्चर्य की बात है कि जिस मनु संस्कृति में स्त्रियों को भी पशु या शूद्र की ही तरह बर्ताव करने का मनुस्मृति में लिखा है, और जीसस ने दोनों के लिए अध्यात्म का रास्ता खोला। इस तरह मनुस्मृति को 2000 साल तक ज़बरदस्ती शूद्रों और महिलाओं पर थोपा गया।

Image of page 35 of book ‘varn vyabastha ke Janak’ stating importance of Brahman over others.
वर्ण व्यवस्था के जनक किताब का यह पृष्ठ स्पष्ट करता है कि ब्राह्मण सर्वोपरि है।

फ़ेसबुक पर एक पोस्ट के आधार पर

भारत में आज नारी 18 वर्ष की आयु के बाद ही बालिग़ अर्थात विवाह योग्य मानी जाती है। परंतु मशहूर अमेरिकन इतिहासकार कैथरीन मायो (Katherine Mayo) ने अपनी बहुचर्चित पुस्तक “मदर इंडिया” (जो 1927 में छपी थी) में स्पष्ट लिखा है कि भारत का रूढ़िवादी हिन्दू वर्ग नारी के लिए 12 वर्ष की विवाह/सहवास आयु पर ही अडिग था।


1860 में तो यह आयु 10 वर्ष थी। इसके 30 साल बाद 1891में अंग्रेजी हकुमत ने काफी विरोध के बाद यह आयु 12 वर्ष कर दी। कट्टरपंथी हिन्दुओं ने 34 साल तक इसमें कोई परिवर्तन नहीं होने दिया। इसके बाद 1922 में तब की केंद्रीय विधान सभा में 13 वर्ष का बिल लाया गया। परंतु धर्म के ठेकेदारों के भारी विरोध के कारण वह बिल पास ही नहीं हुआ।

भारत एक खोज का एक eposiode इस दिशा में ज्योतिराव फुले के 1973 में किए गए महान प्रयत्न पर आधारित है। हम मनु संस्कृति को 2000 साल तक झेलते रहने के बाद भारत में भी इंडस्ट्रियल रेवोलुशन दौर आ चुका था। लेकिन फिर भी महिलाओं की स्थिति, शिक्षा तथा अन्य समस्याएँ वही की वही रही जो उसमें स्पष्ट होती है।


1924 में हरीसिंह गौड़ ने बिल पेश किया। वे सहवास की आयु 14 वर्ष चाहते थे।

इस बिल का सबसे ज्यादा विरोध पंडित मदन मोहन मालवीय ने किया, जिसके लिए ‘चाँद’ पत्रिका ने उनपर लानत भेजी थी।

अंत में सिलेक्ट कमेटी ने 13 वर्ष पर सहमति दी और इस तरह 34 वर्ष बाद 1925 में 13 वर्ष की सहवास आयु का बिल पास हुआ।


6 से 12 वर्ष की उम्र की बच्ची सेक्स का विरोध नहीं कर सकती थी उस स्थिति में तो और भी नहीं, जब उसके दिमाग में यह ठूस दिया जाता था कि पति ही उसका भगवान और मालिक है। जरा सोचिये! ऐसी बच्चियों के साथ सेक्स करने के बाद उनकी शारीरिक हालत क्या होती थी? इसका रोंगटे खड़े कर देने वाला वर्णन Katherine Mayo ने अपनी किताब “Mother India” में किया है कि किस तरह बच्चियों की जांघ की हड्डियां खिसक जाती थी, मांस लटक जाता था और कुछ तो अपाहिज तक हो जाती थीं।


6 और 7 वर्ष की पत्नियों में कई तो विवाह के तीन दिन बाद ही तड़प तड़प कर मर जाती थीं। स्त्रियों के लिए इतनी महान थी हमारी मनु संस्कृति। अगर भारत में अंग्रेज नहीं आते तो भारतीय नारी कभी भी उस नारकीय जीवन से बाहर आ ही नहीं सकती थी।

As per image of a page from Shiva Purana, Rudra Samhita, Parvati Khanda 54.25 duties of a faithful wife are described..
Ladies, your duties per Shiva Purana, Rudra Samhita, Parvati Khanda 54.25
Ladies, your duties per Shiva Purana, Rudra Samhita, Parvati Khanda 54.25


संविधान बनने से पहले साधारण स्त्रियों का कोई अधिकार नहीं था। इंडस्ट्रियल रेवोलुशन दौर में भी मनु संस्कृति को जिलाये रखने वाली किताब मनुस्मृति के अनुसार बचपन में पिता के अंडर, जवानी में पति की दासी और बुढ़ापे मे बेटे की कृपा पर निर्भर रहती थी। बाबा साहब डॉ अंबेडकर ने संविधान मे इनको बराबरी का दर्जा दिया। संपत्ति का अधिकार, नौकरी में बराबरी का अधिकार, ये सब बाबा साहब की देन है।

आप सैकड़ों या हज़ारों साल से देवी की पूजा करती हैं। आपकी आस्था और भक्ति का सम्मान है। पर भारत में महिलाओं को —

image of a page from book of Taimur lang describing horrific incident of sati.
तैमूर लंग जैसा व्यक्ति भी काँप गया था एक स्त्री को जीवित सती होते हुए।
  1. सती होकर जलाए जाने से आज़ादी 1829 में मिली।
Image of a post on FB stating that today ie 4th December 1829 the sati Sahagamanam was abolished.
End of sati system on 4th December 1829
  1. लड़कियों का पहला स्कूल सावित्री बाई फूले और फ़ातिमा शेख ने 1848 में खोला।
  2. 1856 में विधवाओं को फिर से विवाह का अधिकार मिला।
  3. बेटियों की हत्या को 1870 में अपराध माना गया।
Image contacting photo of baba sahab who gave freedom to spam from मनु संस्कृति
मनु संस्कृति से मुक्ति दिलाने के बाद बाबा साहब ने जो पहला अधिकार स्त्रियों को दिया वह संपत्ति का अधिकार इस हिंदू कोड बिल के कारण मिला।
  1. महिलाएं भी तलाक़ दे सकती हैं, ये अधिकार 1955 में मिला।
  2. हिंदू औरतों को बहुपत्नी प्रथा से छुटकारा 1955 में मिला।
  3. पैत्रिक संपत्ति में अधिकार 1956 में मिला।
  4. लड़कियों को देह व्यापार में धकेलना 1956 में अपराध घोषित हुआ।
  5. समान वेतन क़ानून 1976 में बना।

आज़ादी के बाद महिलाओं को मिले ज़्यादातर अधिकार बाबा साहब के ड्राफ़्ट किए हुए हिंदू कोड बिल से निकले हैं। फिर भी मैं आपकी आस्था और भक्ति का सम्मान करता हूँ।


ये सन्देश उन महिलाओं के लिए, जो कहती है कि बाबा साहेब ने कुछ नहीं किया। आपने इसे ध्यान से पढ़ा इसके लिये आपको बहुत बहुत धन्यवाद।

मनु संस्कृति दहन दिवस का एक पोस्टर
मनु संस्कृति दहन दिवस २५ दिसंबर का एक पोस्टर।
फ़ेसबुक की पोस्ट और उसके कमेंट का स्क्रीनशॉट
औरतों के लिए स्वर्ग में कुछ भी नहीं लिखा गया है क्योंकि वो सिर्फ़ बच्चे पैदा करने के लिए उपयोगी मानी गई थी जैसे अन्य जानवर थे।

मेरा कॉमेंट:

और मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि यदि भाजपा पूरे देश पर शासन करने में सफल होती है तो जिस प्रकार सहयोगी दलों को वह खाती जा रही है, नष्ट करती जा रही है उसी प्रकार जब उसे महिलाओं की ज़रूरत नहीं रह जाएगी तो वह अब तक की उनकी सभी महिलाओं पर भी वही पुरानी मनु संस्कृति को जिलाये रखने वाली किताब मनुस्मृति को ज़रूर लागू करना चाहेगी। और तब तक वह किसी को सहारा भी नहीं बना सकेगी।

Poster of Osho describing that he is most anti sex person, his whole work is to transform it into super consciousness.
Osho’s main message

कुंवारे व्यक्ति को महिलाओं से विशेष घृणा होती है, क्योंकि वह उसके ब्रह्मचर्य को उजागर कर देती है-ओशो

मनु संस्कृति को जिलाये रखने वाली किताब के आधार पर जब भारत चल रहा था तब भी कुछ घने जंगलों में रहने वाले आदिवासी उस संस्कृति से अछूते रह गये थे।जिससे मनु संस्कृति से पहले यानी 5000 साल पहले के भारत के बारे में हमको पता चलता है। 

ओशो कहते हैं कि आदिवासी लोगों से हमको याने पूरे विश्व को सीखने की ज़रूरत है। उनकी सेक्स को लेकर जो मान्यताएँ हैं और जो प्रचलन है वह सबसे उत्तम दर्जे का है। और यह घोषणा वे 1960 में करते हैं, अपनी किताब ‘सम्भोग से समाधि की ओर’ के माध्यम से जिसके cover पर उन्होंने तब खजुराहो की मूर्तियों को छापा। (मेरे एक पोस्ट बीज की यात्रा सुगंध होकर अनंत में विलीन होने तक में आप इसके संदेश को हिंदी में जान सकते है) जब भारत में लोगों के लिए यह सोंचना भी असम्भव था।

मैं ख़ुद कई सेक्स संबंधी सवालों  के जवाब चाहता था लेकिन इस बारे में बात करना ही जैसे पाप था। तब ‘The Sun’-अमेरिका से छपने वाली किताब के सेक्स सम्बन्धी प्रश्न और उनके उत्तर सेक्शन से मेरे प्रश्नों के उत्तर मिले।

मेरे सहकर्मी जो retirement के क़रीब थे और मेरी शादी तब 1994 में हुई ही थी, उन्होंने मुझे बताया कि तुम तो बड़े मज़े में हो। उनका कहना था कि उनको उनकी पत्नी के साथ मिले हुए ही महीनों हो जाते थे और ऊपर से डर बना रहता था कि कोई देख ना ले। तो समय भी कम होता था, इसलिए सब कुछ बस जल्दी जल्दी होता था और टीस अलग रह ही जाती थी कि अब कब मिलना होगा? कहीं गर्भवती हो गयी तो गयी बात फिर साल भर पर। औरत सिर्फ़ बच्चे पैदा करने के लिए ही होती थी। “सेक्स का सुख” नाम की कोई चीज़ महिलाओं में तो प्रचलित ही नहीं थी।

ओशो (हिंदी में ओशो की जानकारी विकीपेड़िया पर) ने स्त्रियों को सहवास के साथ साथ orgasm का भी अधिकार दिया और भारत में घर घर बेडरूम बनाए जाने लगे। मेरे देखे सन 1990 के पहले, यानी आज़ादी के बाद भी, सारी स्त्रियाँ एक कमरे में सोतीं थीं और सारे पुरुष एक साथ. विवाह का मतलब सिर्फ़ बच्चे पैदा करना होता था। ओशो का संदेश स्त्रियों के लिए यही है कि अभी तक सेक्स उसके जीवन में बच्चे पैदा करने तक ही रह गया था, और इस तरह से उसे आज तक अपनी कुंडलिनी शक्ति को जगाने से वंचित रखा गया है। क्योंकि एक बार कोई महिला कुंडलिनी शक्ति की एक झलक भी पा ले तो फिर उसे ग़ुलाम बनाना असंभव है और ऐसी संभावना अधिक है कि स्त्रियों ऐसा का समूह सारे पुरुषों को भी अपने क़ाबू में कर ले। हालाँकि यह विश्व के भले के लिए ही होगा क्योंकि पुरुष वाली सत्ता ने अभी तक सिर्फ़ युद्ध ही दिये है, और प्रकृति को नष्ट ही किया है। सेक्स के दौरान ऑर्गैज़म के क्षण में उस शक्ति की एक झलक हमको मिलती है। उसी शक्ति के रूपांतरण से किसी स्त्री द्वारा कुंडलिनी को जगाया जा सकता है। होंशपूर्वक सहवास orgasm तक लेकर जा सकता है यह ओशो का मूल मंत्र है भविष्य के नए मनुष्य के लिए। मैंने भी इसे किया और इसे सही पाया।

ओशो ने तिब्बती तंत्र के अनुसार सहवास को भी प्रार्थना के समान एक पवित्र कार्य माना और इसके लिए उन्होंने बाऊल संतों के गीतों में दिए संदेशों को उचित ठहराया। जैसा कि नीचे के quote में बताया गया है।

बाउल बहुत स्वस्थ लोग होते हैं — सिज़ोफ्रेनिक नहीं, विभाजित नहीं। उनके संश्लेषण को समझना होगा; यह समझ ही तुम्हारी अत्यधिक सहायता करेगी।

वे कहते हैं, “यह दुनिया और परलोक विपरीत नहीं हैं।”

वे कहते हैं, “खाओ, पियो और मौज करो, और प्रार्थना करो, विपरीत नहीं हैं।”

वे कहते हैं, “यह किनारा और दूसरा किनारा परमेश्वर की एक ही नदी के हैं।”

इसलिए वे कहते हैं कि प्रत्येक क्षण को भौतिकतावादी के रूप में जीना होगा, और प्रत्येक क्षण को एक आध्यात्मिकतावादी के रूप में एक दिशा देनी होगी।

प्रत्येक क्षण, व्यक्ति को हर्षित, आनन्दित, उत्सवी होना चाहिए, और साथ ही, सतर्क और सचेत रहना चाहिए, भविष्य के विकास के बारे में पूरी तरह से जागरूक रहना चाहिए। लेकिन वह खुलासा इस पल के आनंद के खिलाफ नहीं है।

वास्तव में, क्योंकि तुम इस क्षण में आनन्दित होते हो, अगले ही क्षण तुम्हारा फूल और खुल जाता है।

( Osho की किताब The Beloved के Volume 2, Chapter #1 के नीचे दिये अंश का हिन्दी में अनुवाद The Bauls are very healthy people — not schizophrenic, not split. Their synthesis has to be understood; the very understanding will help you tremendously. They say, “This world and the other world are not opposite.” They say, “To eat, drink and be merry, and to be prayerful, are not opposite.” They say, “This shore and the other shore belong to the same river of God.” So they say that each moment has to be lived as a materialist, and each moment has to be given a direction as a spiritualist. Each moment, one has to be delightful, rejoicing, celebrating, and at the same time, remaining alert and conscious, remaining fully aware about the future unfoldment. But that unfoldment is not against this moment’s rejoicing. In fact, because you rejoice in this moment, the next moment your flower opens more.———-Osho
The Beloved, Vol. 2, # 1”)

अभी किसी प्रकार महिलाओं को ऊँचे पदों पर सहन कर रहे हैं, (जैसा अभी तक मुसलमानों को संसद में और मंत्री तक बनाया गया और अब एक भी नहीं है) क्योंकि पूर्ण सत्ता प्राप्त नहीं हुई है। फिर इनकी चलेगी तो ये ईरानी, सीतारमन, कंगना, राणा और चिताले को उनके बेटे के भरोसे ही बुढ़ापा काटना होगा क्योंकि सेना में तो अभी से भेदभाव शुरू हो ही गया है।

मनु संस्कृति को जिलाये रखने वाली किताब मनुस्मृति से हमको मुक्ति दिलाने में मददगार मसीहा पेरियार ने महिलाओं को समानता देने की भी बात की। जब उत्तर भारत में उनका प्रभाव बढ़ने लगा तब उनके जन्मदिन को विश्वकर्मा जयंती के रूप में मनाने की शुरुआत कर दी गई। और विश्वकर्मा के लिये पेरियार का ही फोटो कुछ वस्त्र और आभूषण के साथ उपयोग में किया जाने लगा।

A screenshot of a post on FB stating how the मनु मनुस्मृति was preserved by changing the birthday of Periyar into Hindu festival.
अंबेडकर के साथ साथ पेरियार ने दक्षिण में मनु संस्कृति के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल रखा था। उनकी उत्तर में लोकप्रियता को भाँपते हुए उनके जन्म दिन को विश्वकर्मा दिवस बनाकर उनके प्रभाव को ख़त्म कर दिया गया।

Fake Vishwakarma created by Brahmin, from a look-alike of  Periyar Ramaswamy, and celebrate on Periyar’s birthday so that people forget Periyar. But Periyar thatha can never be forgotten, because #India is the first #Atheist and #Rational #Country in the world.-अर्चना सोंटी की ट्विटर पोस्ट के अनुसार

Spotify पर हिन्दी में कुछ पॉडकास्ट दर्शन (Philosia) नाम के चैनल पर किए हैं। 

नमस्कार ….. मैं अपनी आंतरिक यात्रा के व्यक्तिगत अनुभवों से अपनी टिप्पणियाँ लिखता हूँ। इस पोस्ट में दुनिया भरके रहस्यवादियों की शिक्षाएँ शामिल हो सकती हैं जिन्हें मैं आज भी मानने लायक समझता हूँ। मेरे बारे में अधिकजानकारी के लिए और मेरे साथ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जुड़ने के लिए, मेरे सोशल मीडिया लिंक से जुड़ने केलिए वेबसाइट https://linktr.ee/Joshuto पर एक नज़र डालें, या मेरे यूट्यूब चैनल की सदस्यता लें और/यापॉडकास्ट आदि सुनें।

कॉपीराइट © ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन, अधिकतर प्रवचन की एक एमपी 3 ऑडियो फ़ाइल को osho डॉट कॉम से डाउनलोड किया जा सकता है या आप उपलब्ध पुस्तक को OSHO लाइब्रेरी में ऑनलाइन पढ़ सकते हैं।यू ट्यूब चैनल ‘ओशो इंटरनेशनल’ पर ऑडियो और वीडियो सभी भाषाओं में उपलब्ध है। OSHO की कई पुस्तकें Amazon पर भी उपलब्ध हैं।

मेरे सुझाव:- 

ओशो के डायनामिक मेडिटेशन को ओशो इंटरनेशनल ऑनलाइन (ओआईओ) ऑनलाइन आपके घर से ओशो ने नई जनरेशन के लिए जो डायनामिक मेडिटेशन दिये हैं उन्हें सीखने की सुविधा प्रदान करता है। ओशो ध्यान दिवस अंग्रेज़ी में @यूरो 20.00 प्रति व्यक्ति के हिसाब से। OIO तीन टाइमज़ोन NY, बर्लिन औरमुंबई के माध्यम से घूमता है। आप अपने लिए सुविधाजनक समय के अनुसार प्रीबुक कर सकते हैं।

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