
मेरे जीवन के अनुभव से कहता हूँ:-
ओशो का संन्यासी किसी एक के प्रेम में हारा हुआ होकर संन्यासी नहीं बना है, बल्कि उसके उलट वह सबसे प्रेम करता है। उनके दुःख को वह अपना दुःख समझता है इसलिए उसके प्रेम से किए कार्य, सहयोग, मदद, सेवा के बदले वह कोई उम्मीद नहीं रखता। इस बग़ैर किसी उम्मीद के अपने कार्य को करने से वह उसमें से असीम आनंद की एक बूँद कुछ इस तरह अपने लिए बटोर ले जाता है कि इसका भी उसे भी पता नहीं होता। यह तो जब उसका इकट्ठा किया हुआ असीम आनंद किसी मधुमक्खी के छत्ते के टूटकर गिरने की तरह उसपर बरसता है और आत्मज्ञान को वह प्राप्त होता है तभी उसे इस बात का पता चलता है। इसलिए निःस्वार्थ सेवा करने वाला कभी नुक़सान में नहीं रहता।
ओशो कहते हैं:
अगर तुम्हारे जीवन में प्रेम बुझ जाये और फिर वैराग्य हो, तो कुछ खास न हुआ। प्रेम जलता रहे और वैराग्य हो तो कुछ हुआ।
बुझी इश्क की राख अंधेर है, मुसलमां नहीं राख का ढेर है।
शराबे-कुहन फिर पिला साकिया, वही जाम गर्दिश में ला साकिया।।
मुझे इश्क के पर लगा कर उड़ा, मेरी खाक जुगनू बना कर उड़ा।
जिगर में वही तीर फिर पार कर, तमन्ना को सीने में बेदार कर।।
बुझी इश्क की राख अंधेर है। –प्रेम का अंगारा बुझ जाये तो फिर जिसे तुम वैराग्य कहते हो, वह राख ही राख है। प्रेम का अंगारा भी जलता रहे और जलाये न, तो कुछ कुशलता हुई, तो कुछ तुमने साधा, तो तुमने कुछ पाया।
बुझी इश्क की राख अंधेर है, मुसलमां नहीं राख का ढेर है।–फिर वह आदमी धार्मिक नहीं, मुसलमां नहीं–राख का ढेर है।
तो एक तरफ जलते हुए, उभरते हुए अंगारे ज्वालामुखी हैं, और एक तरफ राख के ढेर हैं–बुझ गये, ठंडे पड़ गये, प्राण ही खो गये, निष्प्राण हो गये।
तो एक तरफ पागल लोग हैं, और एक तरफ मरे हुए लोग हैं।
कहीं बीच में.
पागलपन इतना न मिट जाये कि मौत हो जाये, और पागलपन इतना भी न हो कि होश खो जाये।
पागलपन जिंदा रहे और फिर भी मौत घट जाये। अहंकार मरे, तुम न मरो। संसार का भोग मरे, परमात्मा का भोग न मरे। त्याग हो, लेकिन जीवंत हो, रसधार न सूख जाये।
शराबे-कुहन फिर पिला साकिया!–बड़ी प्यारी पंक्तियां हैं।
पंक्तियां यह कह रही हैं, अगर राख का ढेर हो गये हम, तो क्या सार! हे परमात्मा, फिर थोड़ी शराब बरसा!
शराबे-कुहन फिर पिला साकिया, वही जाम गर्दिश में ला साकिया।–फिर वही जाम गर्दिश में ला। अभी संसार को प्रेम किया था, अब तुझे प्रेम करेंगे; लेकिन फिर वही जाम दोहरा।
प्रेम तो बचे; जो व्यर्थ के लिए था वह सार्थक के लिये हो जाये। दौड़ तो बचे; अभी वस्तुओं के लिए दौड़े थे, अब परमात्मा के लिये दौड़ हो जाये।
शराबे-कुहन फिर पिला साकिया, वही जाम गर्दिश में ला साकिया।
मुझे इश्क के पर लगा कर उड़ा!–अभी इश्क के पर तो थे, लेकिन खिसकते रहे जमीन पर, रगड़ते रहे नाक जमीन पर।
‘मुझे इश्क के पर लगाकर उड़ा!’
उड़ें परमात्मा की तरफ, लेकिन पर तो इश्क के हों, प्रेम के हों।
मेरी खाक जुगनू बना कर उड़ा, जिगर से वही तीर फिर पार कर।—वह जो संसार में घटा था, वह जो किसी युवती के लिए घटा था, किसी युवक के लिए घटा था, वह जो धन के लिए घटा था, पद के लिए घटा था–वही तीर!
जिगर से वही तीर फिर पार कर, तमन्ना को सीने में बेदार कर!–वह जो वासना थी, आकांक्षा थी, अभीप्सा थी, वस्तुओं के लिए, संसार के लिए–उसे फिर जगा, लेकिन अब तेरे लिए!
बहुत लोग हैं, अधिक लोग ऐसे ही हैं–जीते हैं, भोगते हैं, लेकिन भोग करना उन्हें आया नहीं। वासना की है, चाहत में अपने को डुबाया, लेकिन चाहत की कला न आयी।
न आया हमें इश्क करना न आया, मरे उम्र भर और मरना न आया।
जीवन एक कला है और धर्म सबसे बड़ी कीमिया है। इसलिए मेरे लिए संन्यासी का जो अर्थ है, वह है: संतुलन, सम्यक संतुलन, सम्यक न्यास; कुछ छोड़ना नहीं और सब छूट जाये; कहीं भागना नहीं और सबसे मुक्ति हो जाये; पैर पड़ते रहें जलधारों पर लेकिन गीले न हों; आग से गुजरना हो जाये, लेकिन कोई घाव न पड़े। और ऐसा संभव है। और ऐसा जिस दिन बहुत बड़ी मात्रा में संभव होगा, उस दिन जीवन की दो धाराएं, श्रमण (जैन) और ब्राह्मण (हिंदू) मिलेंगी; भक्त और ज्ञानी आलिंगन करेगा। (ओशो का मानना है कि हिंदू धर्म सिर्फ़ भक्ति मार्गी होने के कारण भटक गया, और जैन धर्म सिर्फ़ ज्ञान मार्ग के कारण ।और भविष्य के व्यक्ति की चेतना इतनी उच्च अवस्था में होगी कि दोनों वह साथ में साध सकेगा । और तब लोग ऐसे ज्ञान को प्राप्त होंगे जैसे भड़भुंजे की भाड़ में फुल्ले फूटते हैं) । और उस दिन जगत में पहली दफा धर्म की परिपूर्णता प्रकट होगी। अभी तक धर्म अधूरा-अधूरा प्रकट हुआ है, खंड-खंड में प्रकट हुआ है।”
— जिन-सूत्र, भाग: एक – Jin Sutra, Vol. 1 by Osho .
https://amzn.in/9BEtLHP
मेरे अनुभव से : मैंने ओशो की एक किताब में होंश या जागरूकता के बारे में पढ़ा और सुबह दांतों को ब्रश करते समय होंश प्रयोग करना शुरू किया। समय के साथ, 20 वर्षों के भीतर, मैं अन्य कृत्यों के दौरान होंश या जागरूकता को लागू करने में सक्षम हो गया, जबकि मुझे बाद में एहसास हुआ कि कई कृत्यों में यह उससे पहले ही स्वतः होने लगा था।
संपूर्णता के साथ जीना, जीवन को एक प्रामाणिक प्राणी के रूप में जीना और सभी बंधनों (धार्मिक, शैक्षिक, जाति, रंग आदि) से मुक्त होना तीन महत्वपूर्ण उत्प्रेरक हैं जो किसी को गहराई तक गोता लगाने में मदद करते हैं।
होंश का प्रयोग मेरे लिए काम करने का तरीका है, हो सकता है कि आपको भी यह उपयुक्त लगे अन्यथा अधिकांश लोगों के लिए गतिशील ध्यान है। लगभग 500 साल पहले भारतीय रहस्यवादी गोरखनाथ द्वारा खोजी गई और ओशो द्वारा आगे संशोधित की गई 110 अन्य ध्यान तकनीकें हैं जिनका प्रयोग किया जा सकता है और नियमित जीवन में उपयुक्त अभ्यास किया जा सकता है।
नमस्कार ….. मैं अपनी आंतरिक यात्रा के व्यक्तिगत अनुभवों से अपनी टिप्पणियाँ लिखता हूँ। इस पोस्ट में दुनिया भरके रहस्यवादियों की शिक्षाएँ शामिल हो सकती हैं जिन्हें मैं आज भी मानने लायक समझता हूँ। मेरे बारे में अधिकजानकारी के लिए और मेरे साथ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जुड़ने के लिए, मेरे सोशल मीडिया लिंक से जुड़ने केलिए वेबसाइट https://linktr.ee/Joshuto पर एक नज़र डालें, या मेरे यूट्यूब चैनल की सदस्यता लें और/यापॉडकास्ट आदि सुनें।
कॉपीराइट © ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन, अधिकतर प्रवचन की एक एमपी 3 ऑडियो फ़ाइल को osho डॉट कॉम से डाउनलोड किया जा सकता है या आप उपलब्ध पुस्तक को OSHO लाइब्रेरी में ऑनलाइन पढ़ सकते हैं।यू ट्यूब चैनल ‘ओशो इंटरनेशनल’ पर ऑडियो और वीडियो सभी भाषाओं में उपलब्ध है। OSHO की कई पुस्तकें Amazon पर भी उपलब्ध हैं।
मेरे सुझाव:-
ओशो के डायनामिक मेडिटेशन को ओशो इंटरनेशनल ऑनलाइन (ओआईओ) ऑनलाइन आपके घर से ओशो ने नई जनरेशन के लिए जो डायनामिक मेडिटेशन दिये हैं उन्हें सीखने की सुविधा प्रदान करता है। ओशो ध्यान दिवस अंग्रेज़ी में @यूरो 20.00 प्रति व्यक्ति के हिसाब से। OIO तीन टाइमज़ोन NY, बर्लिन औरमुंबई के माध्यम से घूमता है। आप अपने लिए सुविधाजनक समय के अनुसार प्रीबुक कर सकते हैं।