हम जागरूक होकर काम करें तो महल अपना ही बनेगा।

ज्ञान के लिए अफ़्रीकन चिन्ह जिसे जागरूक होकर काम करें तो अपने भीतर प्रकाश के रूप में पाया जा सकता है।
जागरूक होकर काम करें तो इस संसार रूपी विशाल मकड़जाल में रहकर भी अपने को लिए महल बना लेता है, और उसमें राजा की तरह बाक़ी जीवन बिताता है। मृत्यु पर स्वेच्छा से शरीर छोड़कर अमरता का अधिकारी हो जाता है। Ananse Ntontan यह अफ़्रीकन चिन्ह है ज्ञान और क्रिएटिविटी के लिए।

इतनी कहानियों को बचपन में सुना है कि बताना मुश्किल है कि किस कहानी ने क्या छाप छोड़ी लेकिन यह तो सच है कि जीवन में उन सब कहानियों से कई सूत्र बचपन में ही हाथ लग गये। जो फिर पूरे जीवन भर मुझे मार्गदर्शन देते रहे।

बचपन में एक कहानी किसी ने सुनाई थी।जिसमें एक राजा का ज्ञानी वज़ीर जब बूढ़ा होने लगा तो उसको राजा ने सलाह दी कि एक होनहार व्यक्ति को चुनकर उसको होने वाले वज़ीर के लिए समय रहते तैयार किया जाय।

वज़ीर ने उस व्यक्ति की तलाश के लिए प्रतियोगिता करवाई लेकिन उसमें कोई योग्य युवक नहीं मिल सका। तब उस वज़ीर ने भेस बदलकर ख़ुद ही शहर में उस व्यक्ति की तलाश  करना शुरू किया।

राजा के महल में कुछ काम चल रहा था तो उत्सुकतावश वह वहाँ के मज़दूरों से पूछा कि वह क्या कर रहे हैं?

एक मज़दूर ने जवाब दिया की वह पत्थर उठा रहा है,

दूसरे ने जवाब दिया वह मज़दूर है तो मज़दूरी कर रहा है और यहाँ वह क्या कर सकता है?

तीसरे ने जवाब दिया वह नींव की चिनाई में कारीगर की मदद कर रहा है।

चौथे ने जवाब दिया वह राजा के महल की नींव बना रहा है।

वज़ीर चौथे मजबूर के जज़्बे को को देखकर हैरान रह गया कि कोई मज़दूरी भी इतनी शिद्दत से कर सकता है।

उसने उसको दूसरे दिन से अपने घर पर कुछ काम करने के लिए लगवा लिया और एक दिन उससे इस जज्बे का राज पूछा तो उसने कहा बस जागरूक होकर काम करें हम तो सब अपने से होता जाता है। धीरे धीरे उसको वज़ीर बनाने की ट्रेनिंग भी देता रहा। और एक दिन उसको राजा के दरबार में शामिल कर लिया।

इस कहानी से मिली शिक्षा मेरे भीतर गहरी बैठ गई और मैंने जीवन भर इसी को साधा। कोई भी काम करता तो उस मज़दूर की सीख याद रखता कि हम जागरूक होकर काम करें और ऐसे करें जैसे मैं किसी राजा के महल की नींव बना रहा हूँ। चाहे वह काम किसी को महत्वपूर्ण लगे या ना लगे, मैंने उसे पूरी शिद्दत से, पूरी तल्लीनता से किया।

और इस कारण मुझे बहुत सीखने को मिला, कई ज्ञानियों ने मुझे मेरे काम के जज्बे के लिए अलग अलग नाम से पुकारा जैसे किसी ने कहा ‘हतिमताई’ तो किसी ने नाम दिया ‘हरफ़नमौला’ तो किसी ने ‘बेवकूफ’ की उपाधि भी दी। किसी ने इशारे में ही सही लेकिन ‘भगवान’ तक कह दिया।

और मैंने उन उपानामों को कभी अपने दिमाग़ में घुसने भी नहीं दिया। मेरा उसूल है कि जो मुझे जैसा नाम दे रहा है असल में वो वैसा ही व्यक्ति है, मैं तो सिर्फ़ अच्छा शीशा हूँ जिसमें उनको अपना ही स्वरूप स्पष्ट दिखाई दे रहा है।

और सबसे महत्वपूर्ण बात जिसे आपसे कहने के लिए इतनी भूमिका बनाई वह यह है कि उस दिन जब मुझे आत्मज्ञान हुआ या जिसे में फ़िलोसिया मोमेंट या सत्य का साक्षात्कार यानी दर्शन भी कहता हूँ, तब मैंने जाना कि वह राजा भी मैं ही था, और मैं अपने ही क़िले की नींव बना रहा था।

इसका मतलब यह हुआ कि हम जो भी काम कर रहे हैं चाहे किसी के लिए भी काम कर रहे हों, यदि हम जागरूक होकर काम करें तो अपने क़िले की नींव ही बना रहे होते हैं। उम्र ढलने पर ही पता चलता है कि हमारी चालाकियों के कारण धन, पद और मान सम्मान चाहे हमने काफ़ी अर्जित कर लिया हो, लेकिन महल की बजाय हम मकड़ी का जाला बुन रहे थे। और अब उसमें ही फँसकर मौत का बस इंतज़ार करने के सिवाय कोई चारा नहीं रह गया है।

अफ़्रीका में इसलिए ज्ञानी व्यक्ति के लिए निशान ‘मकड़ी का जाला’ है कि वह संसार में इस प्रकार अपना जीवन व्यतीत करता है कि महल की नींव भरता रहता है और इसलिए इस संसार रूपी विशाल मकड़जाल में रहकर भी अपने को लिए महल बना लेता है, और उसमें राजा की तरह बाक़ी जीवन बिताता है। मृत्यु पर स्वेच्छा से शरीर छोड़कर अमरता का अधिकारी हो जाता है।

मेरे अनुभव जो शायद आपने कुछ काम आयें :-

समय के साथ, 20 वर्षों के भीतर, मैं अन्य कृत्यों के दौरान होंश या जागरूकता को लागू करने में सक्षम हो गया, जबकि मुझे बाद में एहसास हुआ कि कई कृत्यों में यह पहले ही स्वतः होने लगा था।

संपूर्णता के साथ जीना, जीवन को एक प्रामाणिक रूप में जीना यानी भीतर बाहर एक और ईमानदारी से जीना, लोगोंकी बिना भेदभाव के निःस्वार्थ भाव से सेवा करना और सभी बंधनों (धार्मिक, शैक्षिक, जाति, रंग आदि) से मुक्त होनातीन महत्वपूर्ण उत्प्रेरक हैं जो किसी को गहराई तक गोता लगाने में मदद करते हैं।

काम के दौरान होंश का प्रयोग यह मेरे मेरे लिए हर काम करने का तरीका है, (instagram पर होंश) हो सकता है कि आपको भी यह उपयुक्तलगे अन्यथा अधिकांश लोगों के लिए गतिशील ध्यान है। लगभग 500 साल पहले भारतीय रहस्यवादी गोरखनाथद्वारा खोजी गई और ओशो द्वारा आगे संशोधित की गई 110 अन्य ध्यान तकनीकें हैं जिनका प्रयोग किया जा सकताहै और नियमित जीवन में उपयुक्त अभ्यास किया जा सकता है।

नमस्कार ….. मैं अपनी आंतरिक यात्रा के व्यक्तिगत अनुभवों से अपनी टिप्पणियाँ लिखता हूँ। इस पोस्ट में दुनिया भरके रहस्यवादियों की शिक्षाएँ शामिल हो सकती हैं जिन्हें मैं आज भी मानने लायक समझता हूँ। मेरे बारे में अधिकजानकारी के लिए और मेरे साथ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जुड़ने के लिए, मेरे सोशल मीडिया लिंक से जुड़ने केलिए वेबसाइट https://linktr.ee/Joshuto पर एक नज़र डालें, या मेरे यूट्यूब चैनल की सदस्यता लें और/यापॉडकास्ट आदि सुनें।

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