
अमरीका के कैलिफ़ोर्निया में हुए जातिवाद के समर्थन और विरोध के प्रदर्शन पर सुमित चौहान की रिपोर्ट ट्विटर पर और यू ट्यूब पर भी उपलब्ध है उनके चैनल News Beak के नाम से। फोटो क्रेडिट : न्यूज़ बीक।
मुझे भी बड़ा आश्चर्य हुआ जब पता चला कि अमरीका पहुँचकर भी सवर्ण सुधरे नहीं। सच है किसी भी मानसिक बीमारी का स्थान से कोई लेना देना नहीं होता। अमरीका में जो जातिवाद के ख़िलाफ़ हो रहा है वह काम अभी आधा ही हुआ है, अमरीका से उम्मीद है कि इन सवर्णों की common मानसिक बीमारीयां जैसे Neurosis, cognitive dissonance और schizophrenia तथा अन्य का proper इलाज करने का भी बिल साथ हो साथ पास किया जाए।
आप शायद नहीं जानते होंगे कि मंडल कमीशन को लागू करने के लिए परदे के पीछे रहकर काम करने वाले ओशो ही थे। उन्होंने इसे अपने सहपाठी और शिष्य शरद यादव के माध्यम से किया था, जो वी पी सिंह सरकार में मंत्री और सांसद थे। तो आपको बता दें कि जातिगत भेदभाव को दूर करने की जो प्रक्रिया ज्योतिबा फुले ने अमेरिका के राष्ट्रपति को अपनी किताब गुलामगिरी की एक प्रति भेजकर शुरू की थी। मंडल आयोग के कार्यान्वयन के माध्यम से ओशो द्वारा इसे मजबूत किया गया था जो अब यूएसए पहुंच गया है। 200 साल लग गए! अपने ही धर्म की बेड़ियाँ काटने में।

जाति व्यवस्था में विश्वास करते ही हम कितने subtle तरीक़े से अपने आत्मज्ञान या सत्य के साक्षात्कार से दूर रह जाते हैं इसका हमको अन्दाज़ ही नहीं है।
ईश्वर सबको सहज ही उपलब्ध है इसका जाती या मनुष्य के व्यक्तित्व से सिर्फ़ इतना संबंध है कि भीतर दिया जल सके उसकी विधि बदल जाती है। सबके लिए एक ही विधि होना ही इसको कठिन बनाता है, जैसे सबको एक ही साइज के कपड़े पहनने को दे दिये गये हों। ऊपर लिंक में सबके लिए सहज विधि बताई गई है। अंग्रेज़ी में भी मैंने इस विषय पर लिखा है।
भीतर के प्रकाश की रोशनी में जिया गया जीवन मनुष्य की उच्चतम स्थिति है।
हमारा जो असली चेहरा है वह अमूर्त है, जो मूर्तरूप (हमारा शरीर) धारण करने को गर्भ में प्रविष्ट हुआ। फिर विस्तार होता चला गया, और जन्म के बाद जो जो उसको सिखाया गया उससे हमारे संसार और उसमें हमारी स्थिति का विस्तार हुआ।
और आध्यात्मिक यात्रा ठहरने से शुरू होती है कि अब बहुत हुआ। फिर अपने को सिकोड़ना है, और जो जो भी जन्म के बाद आवरण धारण किए थे सांसारिक विस्तार के लिए उनसे एक एक कर बिदा लेना है। यदि ठीक ठीक चले तो जो अमूर्त है वह हमारे पुरुषार्थ के प्रसाद स्वरूप स्वयं को प्रकटकर हमारे असली चेहरे से हमारी पहचान कराता है। वही निर्वाण है, वही समाधि है और वही वही ईश्वर दर्शन भी है।
क्योंकि स्वयं के दर्शन से ही ईश्वर दर्शन होते हैं, वह हमारा ही विराट स्वरूप इसीलिए कहलाता है। और फिर उदघोश होता है अहं ब्रह्मस्मि का। तभी हम सवर्ण हुए, ब्राह्मण हुए।
उसके पहले हमारी जाति के आधार पर यदि मान ही लिया है कि हम आत्मज्ञानी हैं ही by default तो यात्रा ही शुरू नहीं हो पाती।
जो मानता ही नहीं कि वह बीमार है तो वह checkup के लिए भी नहीं जाएगा। फिर सीधे मौत होगी, लेकिन अवसर तो चूक गए। जन्म जुआँ जितने वालों के लिए ही यह संसार मौज है, बाक़ी की स्थिति डँवाडोल ही रहती है।
भारत, दक्षिण एशिया और अमरीका में जातिवाद के समर्थक सवर्ण लोग, जिनका जन्म भारत में हुआ है, उनसे मैं यह नहीं कहता कि अपने को कोई सवर्ण नहीं माने, बस पूरी ज़िंदगी मानता ही ना रहे।
जीवन में ठहराव आए तो सबसे पहले उसे ही उतारकर फेंके। फिर इस धरती पर भारत भूमि में जन्म लेने के अवसर को खोना नहीं है, बाद यह ठानकर भिड़ जाए अपनी पूरी ताक़त के साथ तो यात्रा यहाँ ४-५ साल से ज़्यादा की नहीं है। हर ७-८ kilometer पर एक संत गड़ा है, उसकी vibes आपको घर बैठे ही मदद करेगी। जो अमरीका गए पैसे कमाने उनका यही दुर्भाग्य है। अनंत को कौड़ी के बदले तोलकर बड़े समझदार बनते फिर रहे हैं।
कबीर इसी को कुछ इस तरह कहते हैं।
कबीर पईड़ा प्रेम का, विकट सिलसिली गैल।
फिसलत पाँव पीपली को, लोग लदावत बैल।।
कबीर कहते हैं कि ईश्वर प्रेम का रास्ता इतना चिकना है, इतनी फिसलन भरा है कि चींटी के भी पाँव फिसलते हैं। और लोग हैं कि बैल को काँधे पर लादकर उसपर चलते हैं, बस इतना हो तो भी ठीक लेकिन पार जाने की इच्छा भी रखते हैं। हमारा धर्म, जाति, कुल, पद, मान सम्मान, धन, वैभव और ताक़त ही वे भार हैं जो सब मिलकर बैल के बराबर हो जाते हैं। जो निर्भार हो सके वे ही पार हो सके।
मैंने सुबह टूथब्रश करते समय होंश का प्रयोग शुरू किया और समय के साथ, 20 वर्षों के भीतर, मैं अन्य कृत्यों के दौरान होंश या जागरूकता को लागू करने में सक्षम हो गया, जबकि मुझे बाद में एहसास हुआ कि कई कृत्यों में यह उससे पहले ही स्वतः होने लगा था। यह पहली पायदान है आंतरिक यात्रा की, इसके बाद सब अपने आप घटते जाता है। बशर्ते ५०-५५ की उम्र के पहले यात्रा आरंभ कर दी गई हो।
संपूर्णता के साथ जीना, जीवन को एक प्रामाणिक प्राणी के रूप में जीना और सभी बंधनों (धार्मिक, शैक्षिक, जाति, रंग आदि) से मुक्त होना तीन महत्वपूर्ण उत्प्रेरक हैं जो किसी को गहराई तक गोता लगाने में मदद करते हैं।
मेरे सुझाव:
होंश का प्रयोग मेरे लिए काम करने का तरीका है, (instagram पर होंश) हो सकता है कि आपको भी यह उपयुक्तलगे अन्यथा अधिकांश लोगों के लिए गतिशील ध्यान है। लगभग 500 साल पहले भारतीय रहस्यवादी गोरखनाथद्वारा खोजी गई और ओशो द्वारा आगे संशोधित की गई 110 अन्य ध्यान तकनीकें हैं जिनका प्रयोग किया जा सकताहै और नियमित जीवन में उपयुक्त अभ्यास किया जा सकता है।
नमस्कार ….. मैं अपनी आंतरिक यात्रा के व्यक्तिगत अनुभवों से अपनी टिप्पणियाँ लिखता हूँ। इस पोस्ट में दुनिया भरके रहस्यवादियों की शिक्षाएँ शामिल हो सकती हैं जिन्हें मैं आज भी मानने लायक समझता हूँ। मेरे बारे में अधिकजानकारी के लिए और मेरे साथ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जुड़ने के लिए, मेरे सोशल मीडिया लिंक से जुड़ने केलिए वेबसाइट https://linktr.ee/Joshuto पर एक नज़र डालें, या मेरे यूट्यूब चैनल की सदस्यता लें और/यापॉडकास्ट आदि सुनें।
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मेरे सुझाव:-
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