मनुष्य संसार में रहते हुए ही प्रकाश को इस तरह प्राप्त करे

ओशो के फोटो के साथ उनका एक क्वोट “भीतर का दिया जलता रहे तो फिर हम जो भी करते हैं, उसमें प्रकाश पड़ता है।”
प्रकाश बनना नहीं होता भीतर दिया कैसे जले इस खोज पर निकलना होगा और जिन्होंने भी उस दिये को अपने भीतर जलाया होगा उनके सुझाये हुए प्रयोग रोज़ के जीवन में उतारने होंगे। क्योंकि दिया, तेल, बाती इत्यादि सब पहले से मौजूद है ही, बस ऐसी स्थिति निर्मित की जा सकती है जिसमें वह दिया अपनेआप जल उठे। होंश के प्रयोग ने मेरे जीवन में वह स्थित निर्मित की। आपको अपने लिए उचित प्रयोग ढूँढना है बस, फिर उसे करते चले जाना है। जो विधि हमको रास नहीं आयी वह ही हमें उस विधि तक पहुँचाती है जो हमारे काम आएगी, इसलिए सभी को प्रयोग में लेना होता है।

ओशो से इनके संन्यासी का प्रश्न : मैं स्वयं के लिए प्रकाश कैसे बन सकता हूँ?

ओशो : ‘अप्प दीपो भव’ ये गौतम बुद्ध के अंतिम शब्द थे, उनके शिष्यों के लिए उनका बिदाई संदेश: “स्वयं प्रकाशवान हो जाओ”.

लेकिन जब वे कह रहे हैं, “स्वयं प्रकाशवान हो जाओ” उसका मतलब यह नहीं है कि “अपने लिए एक प्रकाश बनो”.

होने और बनने में बहुत फर्क है।

बनना एक प्रक्रिया है; ( जैसे डॉक्टर बनना, इंजीनियर बनना)

होना एक खोज है।

बीज ही वृक्ष में परिवर्तित होता है; वह एक रूप है। बीज में पहले से ही वृक्ष था, वह उसका अस्तित्व या श्रेष्ठतम रूप था। बीज फूल नहीं बनता। बीज में फूल पहले से थे अप्रकट, अब प्रकट हैं।

बनने का सवाल ही नहीं है। वरना एक कंकड़ फूल बन सकता था।

लेकिन ऐसा नहीं होता है। चट्टान गुलाब नहीं बन सकती; ऐसा नहीं होता है क्योंकि चट्टान में गुलाब होने की कोई क्षमता नहीं है।

बीज केवल मिट्टी में मरकर स्वयं को खोज लेता है – अपने बाहरी आवरण को गिराकर, वह अपनी आंतरिक वास्तविकता में प्रकट हो जाता है।

हर मनुष्य बीजरूप में प्रकाश है। आप पहले से ही बुद्ध हैं।

ऐसा नहीं है कि तुम्हें बुद्ध बनना है, यह सीखने का सवाल नहीं है, हासिल करने का सवाल है, यह सिर्फ पहचानने का सवाल है- यहअपने भीतर जाकर देखने का सवाल है कि वहां क्या है।

यह आत्म-खोज है।यह भीतर की आँख जिसको हम कभी कभी प्रयोग में लेते हैं -जब कोई भूला नाम याद नहीं आता तब- उसे प्रतिदिन उपयोग करके उसपर धार करनी है ताकि हम उसका बेहतर उपयोग -हृदय की गहराइयों में झांकने के लिए कर सकें। वहीं हमारा प्रकाश छिपा रखा है ईश्वर ने। उससे ज़्यादा सुरक्षित कोई जगह नहीं।

आपको स्वयं के लिए ‘प्रकाश’ नहीं बनना है; यह मामला ऐसा है कि आप पहले से ही प्रकाशमय हो। 

लेकिन हम भीतर नहीं जाते, हमारी सारी यात्रा बाहर की है।

हमें इस तरह से पाला जा रहा है कि हम सभी बाहर की यात्रा करने के आदि हो जाते हैं।

हमारी आंखें बाहर की ओर केंद्रित हो जाती हैं; हम हमेशा “वहाँ,” बहुत दूर किसी लक्ष्य की तलाश और खोज कर रहे हैं। लक्ष्य जितनादूर होता है, अहंकार को उतना ही चुनौतीपूर्ण लगता है।

यह जितना कठिन होता है, उतना ही आकर्षक भी लगता है। चुनौतियों के माध्यम से अहंकार मौजूद है; यह खुद को साबित करनाचाहता है।

उसे सरल में अहंकार को दिलचस्पी नहीं है, उसे साधारण में कोई दिलचस्पी नहीं है, उसे प्राकृतिक में कोई दिलचस्पी नहीं है, उसे किसीऐसी चीज में दिलचस्पी है जो न तो प्राकृतिक है, न सरल है, न ही साधारण है। अहंकार की सदा इच्छा कुछ असाधारण के लिए है।

और हमारी वास्तविकता या आंतरिक प्रकाश की यात्रा बहुत साधारण है, यह बहुत सरल है।

अहंकार हमें भविष्य में (जब समय आएगा या तब) और संसार में (वहाँ) भटकाता है जबकि वास्तविकता या ‘प्रकाश’ या आत्मज्ञान वहाँ नहीं बल्कि ‘यहाँ’ (भीतर) है, तब नहीं बल्कि ‘अभी’ (जब हम कोई भी काम कर रहे हैं तब) है, बाहर नहीं बल्कि’आपके अस्तित्व के अंतरतम गर्भगृह’ में है।

आपको बस अपनी आंखें बंद करनी हैं और अंदर देखना है। शुरुआत में यह मुश्किल होता है, क्योंकि आंखें केवल बाहर देखना जानतीहैं।

वे बाहर देखने के इतने अभ्यस्त हो गए हैं कि जब आप उन्हें बंद करते हैं, तब भी वे बाहर देखते रहते हैं – वे सपने देखने लगते हैं, वेकल्पना करने लगते हैं।

वे सपने और कुछ नहीं बल्कि बाहर के प्रतिबिंब हैं।

तो यह केवल दिखने में है कि आप बंद आँखों से प्रतीत होते हैं, आपकी आँखें अभी भी बाहरी दुनिया के लिए खुली हैं, आप अंदर नहीं हैं।

वस्तुत: प्रत्येक साधक के सामने यह विचित्र घटना आती है कि जब भी तुम अपनी आंखें बंद करते हो तो तुम्हारा मन और अधिक बेचैनहो जाता है, तुम्हारा मन और विक्षिप्त हो जाता है। यह पागल तरीके से बकबक करना शुरू कर देता है: प्रासंगिक, अप्रासंगिक विचारआपके दिमाग़ को ढाँक देते हैं।

ऐसा कभी नहीं होता जब आप बाहर देख रहे हों। 

और स्वाभाविक रूप से आप थक जाते हैं, स्वभाविक रूप से आपको लगता है कि आंखें बंद करके चुपचाप बैठने के बजाय किसी काम में अपने को व्यस्त करना, या किसी भी काम में दिन भर लगे रहना बेहतर है, क्योंकि विचारों, इच्छाओं, यादों की लंबी-लंबी बारात के अलावा कुछ होता नहीं दिखता। और वेआते चले जाते हैं, अंतहीन। लेकिन अपने को व्यस्त करना मनुष्य जीवन के अवसर को खो देने के अलावा कुछ भी नहीं है। अपने माता-पिता या किसी भी वृद्ध व्यक्ति जिन्होंने पूरे जीवन व्यस्त रहकर जीवन बिताया, उनके जीवन को गौर से देखें। क्या तुमको उसमें कोई ख़ुशी या उल्लास नज़र आता है? यदि नहीं तो तुम्हारा हाल क्या कुछ अलग होने वाला है?

यदि कुछ अलग जीवन चाहते ही तो कुछ बदलाव तो करने ही होंगे, वही वही करते रहेंगे तो जीवन कुछ अलग कैसे हो जाएगा?

लेकिन यह केवल शुरुआत में है। बस थोड़ा सा सब्र, बस थोड़ा सा इंतज़ार… अगर आप इन विचारों को बिना किसी निर्णय के, बिनाकिसी विरोध के, बिना किसी प्रतिरोध के, यहां तक ​​कि उन्हें रोकने की इच्छा भी नहीं करनी हैं। उनके साथ ऐसे बरताव करना है -जैसेकि आपको उनसे कोई सरोकार नहीं है-बेपरवाह… कोई सड़क पर यातायात देखता है, या कोई आकाश में बादलों को देखता है, याकोई नदी को बहते हुए देखता है, ऐसे आप केवल अपने विचारों को देखते हैं।

आप वे विचार नहीं हैं, आप द्रष्टा हैं, यह याद रखना कि “मैं बस विचारों का द्रष्टा हूं, भीतर की आँख हूँ, (वही साक्षी भी है और वहीचेतना/चेतनता भी है) – (जैसे किसी का नाम ध्यान नहीं आता तो हम दिमाग़ पर ज़ोर देते हैं और ढूँढते हैं याददाश्त में, तो हम वो भीतरकी आँख हैं जो याददाश्त में ढूँढती है, जिसको याद है कि वह छोटा था, फिर जवान हुआ और आज वह क्या है? ना कि वह जो शरीर हैया जो बाहर की आँखों से देखने वाला है। यह बाहर की आँख तुरंत दिमाग़ का उपयोग करके किसी को भी सही-ग़लत, अच्छा-बुरा ऐसेदो में बाँट देती है।)

गुलज़ार का क्वोट बस इतने क़रीब रहो कि बात भी ना हो तो दूरी ना लगे।
संसार से भी इतनी ही दूरी रखना होती है तभी भीतर का दिया जलता है।

फोटो इंस्टाग्राम अकाउंट @ishq.of.gulzar से लिया गया है। संसार में रहकर संसार से अलग या तटस्थ रहने की कला यही है। मैंने इसे जीवन में प्रयोग किया और सही पाया।

तुम अपनी आत्मनिष्ठता हो, तुम साक्षी हो, तुम चेतना हो।इसे याद कर रहा हूँ। इसमें थोड़ा समय लगता है। 

धीरे-धीरे पुरानी आदत छूट जाती है। यह मुश्किल से मरता है लेकिन मरता है, निश्चित रूप से।

और जिस दिन यातायात रुक जाता है, अचानक तुम प्रकाश से भर जाते हो।

आप हमेशा प्रकाश से भरे रहे हैं, बस वे विचार आपको वह देखने नहीं दे रहे थे जो आप हैं।

जब सभी वस्तुएं गायब हो जाती हैं, तो देखने के लिए और कुछ नहीं होता है, आप पहली बार खुद को पहचानते हैं।

आप पहली बार खुद को महसूस करते हैं।

यह प्रकाश बनना नहीं है, यह होने की खोज है।(जब विचार नहीं होता हैं, तो विचारों के कारण जो ढँका हुआ था वह प्रकाश दिख जाताहै। यही माया के पर्दे का गिरना भी है। 

मन के विचारों का बाहरी आवरण गिर गया है, और तुमने अपने फूलों को खोज लिया है, तुमने अपनी सुगंध को खोज लिया है।

यह सुगंध ही असली स्वतंत्रता है।

इसलिए, यह मत पूछो, “मैं अपने लिए प्रकाश कैसे बन सकता हूँ?”

आप पहले से ही अपने आप में एक प्रकाश हैं, आपको इसके बारे में पता नहीं है। आप इसके बारे में भूल गए हैं – आपको इसे खोजनाहोगा।

और खोज कैसे सरल है, बहुत सरल है: ‘अपने विचारों को देखने की एक सरल प्रक्रिया।’

इस प्रक्रिया में मदद के लिए आप दूसरी चीजें भी देखना शुरू कर सकते हैं, क्योंकि देखने की प्रक्रिया वही है।

आप जो देख रहे हैं वह महत्वपूर्ण नहीं है।

कुछ भी देखें और आप सतर्कता या जागरूकता या होंशपूर्वक जीना सीख रहे हैं। 

पक्षियों को सुनो, वही है।

एक दिन आप अपने विचारों को सुन सकेंगे।

पंछी थोड़े दूर हैं, तुम्हारे विचार थोड़े निकट हैं। 

पतझड़ में पेड़ों से गिरते सूखे पत्तों को भीतर की आँख से देखें।

कुछ भी ऐसा करते रहोगे दिन भर में कई बार जो आपको सतर्क रहने में मदद करेगा। चलते-चलते, अपने चलते हुए पाँवों को भीतर कीआँख से देखो।

बुद्ध अपने शिष्यों से कहा करते थे: हर कदम सोच-समझकर उठाओ।

वह कहा करते थे: अपनी सांस भीतर की आँख से देखो।

और यह देखने के लिए सबसे महत्वपूर्ण अभ्यासों में से एक है, क्योंकि सांस वहां है, चौबीस घंटे निरंतर उपलब्ध है, चाहे आप कहीं भीहों।

पक्षी एक दिन गा रहे होंगे, किसी और दिन नहीं गा रहे होंगे, लेकिन सांस तो चल रही है। बैठना, चलना, लेटना, वह सदा रहता है।

भीतर आती श्वास को, बाहर जाती श्वास को भीतर की आँख से देखते रहो। ऐसा नहीं है कि श्वास को देखना बिंदु है, बिंदु यह सीखनाहै कि कैसे भीतर की आँख से देखना है।

नदी पर जाओ और नदी को जागकर देखो, भीतर की आँख से देखो। 

बाजार में बैठो और लोगों को गुजरते देखो।

कुछ भी देखो, बस स्मरण रहे कि तुम दृष्टा हो, साक्षी हो, चेतना हो।

जजमेंटल मत बनो, जज मत बनो। जज करना बाहर की आँख का काम है। 

एक बार जब आप विचारों के ऊपर न्याय करना शुरू कर देते हैं तो आप भूल जाते हैं कि आप एक द्रष्टा हैं, आप शामिल हो गए हैं, आपने पक्ष लिया है, आपने चुना है: “मैं इस विचार के पक्ष में हूं और मैं उस विचार के खिलाफ हूं।”

एक बार जब आप चुनते हैं, तो आप शरीर के रूप में अपने को जान/पहचान रहे हैं।

सजगता सभी पहचानों को नष्ट करने की विधि है।

इसलिए फ़्रांस के संत गुरजिएफ ने अपनी प्रक्रिया को गैर-पहचान की प्रक्रिया कहा। वही है, उसकी बात अलग है। अपने आप कोकिसी भी चीज़ के साथ मत जोड़िए, और धीरे-धीरे व्यक्ति भीतर देखने की परम कला सीख जाता है।

यही ध्यान है।

ध्यान के माध्यम से व्यक्ति स्वयं के प्रकाश की खोज करता है।

उस प्रकाश को आप अपनी आत्मा, अपना स्वयं, अपना ईश्वर कह सकते हैं, जो भी शब्द आप चुनते हैं- या आप बस चुप रह सकते हैं, क्योंकि इसका कोई नाम नहीं है।

यह एक अनाम अनुभव है, बेहद खूबसूरत, आनंदमय, पूरी तरह से मौन, लेकिन यह आपको अनंत काल का, कालातीतता का, मृत्यु सेपरे कुछ का स्वाद देता है।

– ओशो द्वारा “अपनी शर्तों पर जीना: वास्तविक विद्रोह क्या है? What is True Rebellion? (ओशो लाइफ एसेंशियल्स)” कीअंग्रेज़ी में किताब इस लिंक पर https://amzn.in/4EqcVe5 से गूगल ट्रांसलेट की मदद से हिन्दी में अनुवाद करके इसको कोष्ठक में मेरे अनुभव से संशोधित और  सरलबनाकर प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।

समय के साथ, 20 वर्षों के भीतर, मैं अन्य कृत्यों के दौरान होंश या जागरूकता को लागू करने में सक्षम हो गया, जबकि मुझे बाद में एहसास हुआ कि कई कृत्यों में यह स्वतः ही होने लगा था।

संपूर्णता के साथ जीना, जीवन को बाहर भीतर एक के रूप में और ईमानदारी से जीना, लोगों की बिना भेदभाव के मन लगाकर निःस्वार्थ सेवा करना और सभी बंधनों (धार्मिक, शैक्षिक, जाति, रंग आदि) से मुक्त होना तीन महत्वपूर्ण उत्प्रेरक हैं जो किसी को गहराई तक गोता लगाने में मदद करते हैं।

होंश का प्रयोग मेरे लिए काम करने का तरीका है, (instagram पर होंश) हो सकता है कि आपको भी यह उपयुक्तलगे अन्यथा अधिकांश लोगों के लिए गतिशील ध्यान है। लगभग 500 साल पहले भारतीय रहस्यवादी गोरखनाथद्वारा खोजी गई और ओशो द्वारा आगे संशोधित की गई 110 अन्य ध्यान तकनीकें हैं जिनका प्रयोग किया जा सकताहै और नियमित जीवन में उपयुक्त अभ्यास किया जा सकता है।

नमस्कार ….. मैं अपनी आंतरिक यात्रा के व्यक्तिगत अनुभवों से अपनी टिप्पणियाँ लिखता हूँ। इस पोस्ट में दुनिया भरके रहस्यवादियों की शिक्षाएँ शामिल हो सकती हैं जिन्हें मैं आज भी मानने लायक समझता हूँ। मेरे बारे में अधिकजानकारी के लिए और मेरे साथ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जुड़ने के लिए, मेरे सोशल मीडिया लिंक से जुड़ने केलिए वेबसाइट https://linktr.ee/Joshuto पर एक नज़र डालें, या मेरे यूट्यूब चैनल की सदस्यता लें और/यापॉडकास्ट आदि सुनें।

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