हरिजन लोग आज़ादी के दंगों की आड़ में कैसे ठगा गये?

हरिजन लोगों के मसीहा बाबा साहेब अंबेडकर जॉब करने जब बड़ौदा पहुँचे तो उनके ब्लैक एंड व्हाइट चित्र सहित अंग्रेज़ी में उस घटना का विवरण।
हरिजन लोगों के मसीहा बाबा साहेब अंबेडकर जॉब करने जब बड़ौदा पहुँचे तो उनको पता था कि यहाँ घर मिलना मुश्किल होगा। लेकिन फिर जो हुआ उसने उनको हरिजन लोगों का उत्थान पढ़ाई के द्वारा करने की आधारशिला रखी।


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ओशो ने नेताओं द्वारा भारत को इक्कीसवीं सदी में लेकर जाने को लेकर एक प्रश्न के उत्तर में हरिजन लोगों के साथ हुई, और सदियों से हो रही राजनीति के बारे में इस प्रकार बताया। ब्रैकेट में मेरे अनुभव से स्थिति को और स्पष्ट करने का प्रयास किया है :-

“इक्कीसवीं सदी को लाने का अर्थ होगा, जीवन के सारे मूल्य बदले जाएं।

अभी भी हरिजन लोगों के साथ वही व्यवहार हो रहा है जो पांच हज़ार साल पहले होता था। 

और झूठ ऐसा हमारी आत्माओं में घुसा है कि साधारण आदमी को हम छोड़ दें, साधारण आदमी की मैं बात ही  नहीं करता–महात्मा गांधी का यह निरंतर कहना था कि भारत का पहला राष्ट्रपति एक औरत होगी और हरिजन औरत होगी।

 न तो डाक्टर राजेंद्र प्रसाद औरत थे, जहां तक मैं समझता हूं, और न ही हरिजन थे–और गांधी ने ही उनको चुना! क्या हुआ उन पुराने वायदों का? कहां गई वे ऊंची-ऊंची बातें?

 जो जहर तुमने हरिजन लोगों  को पिलाया, वह कहां गया? 

वह भी सब राजनीति थी।

क्योंकि घबड़ाहट वही की वही थी, अंबेदकर के नेतृत्व में हरिजन भी अलग हो जाना चाहते थे। अगर मुसलमान अपना देश अलग मांग रहे हैं और उनकी मांग जायज़ समझी जा रही है।

और हिंदू अपना देश अलग मांग रहे हैं तो हरिजन जो कि हिंदुओं का चौथा हिस्सा हैं। और हजारों साल से सता गए लोग हैं। इस दुनिया में उनसे ज्यादा सताया गया और कोई भी नहीं है।

अगर वे भी चाहें कि हमें अपना अलग देश दे दो, तो गांधी उपवास पर बैठ गए! आमरण उपवास!

आमरण उपवास एक का भी नहीं हुआ, क्योंकि मरने के पहले ही संतरे का रस–उस सबका आयोजन पहले से होता है। डाक्टर जांच कर रहे हैं। और सारे देश में उथल-पुथल…कि महात्मा गांधी कहीं मर न जाएं–बात का रुख ही बदल दिया।

हरिजन लोगों की तो बात ही समाप्त हो गई। 

अंबेदकर की जान पर बन आई। लोग उसकी गर्दन दबाने लगे कि तुम माफी मांगो महात्मा गांधी से और कहो कि हम अलग देश या अलग होने की मांग नहीं करेंगे। उसकी मांग जायज थी। लेकिन यहां जायज और नाजायज़ की कौन फिकर करता है?

और उसको भी लगा कि अगर महात्मा गांधी मर गए…तो मैं मर जाऊं यह तो कोई बड़ी बात नहीं है, इस देश में हरिजनों को जला कर खाक कर दिया जाएगा–एक कोने से दूसरे कोने तक। उनके झोपड़ों में आग लग जाएगी, उनकी स्त्रियों पर बलात्कार होंगे, गांधी के मरने का बदला लिया जाएगा। (यही सिखों के साथ किया जब इंदिरा की हत्या की गई, यानी यह सब इनकी चालें हैं जिनसे ये राज करते आये हैं)

यह बात ही खत्म हो गई कि वह ( भीमराव अंबेडकर) जो कह रहा था, वह ठीक कह रहा था या गलत कह रहा था–यह बात का रुख ही बदल गया। मामला यह हो गया कि इतने हरिजनों को इतने उपद्रव में डालना उचित है या नहीं? यूं ही बेचारे बहुत परेशान रहे हैं। अब और यह आखिरी परेशानी है।

 तो अंबेडकर खुद ही संतरे का रस लेकर हाजिर हो गए, माफी भी मांग ली–जानते हुए कि यह आदमी धोखा दे रहा है हरिजनों को, यह आदमी इस देश को धोखा दे रहा है। 

लेकिन हरिजन लोगों को न तो अलग होने का हक है, न अलग मताधिकार का हक है। उतनी छोटी सी मांग थी कि या तो अलग देश दे दो या कम से कम अलग मताधिकार दे दो, ताकि इनकी आवाज भी तुम्हारी संसद में पहुंच सके कि इन पर क्या गुजरती है–इसकी खबर भी नहीं छपती, इसकी खबर भी तुम तक नहीं पहुंचती।

और आश्र्वासन दिया गांधी ने कि चिंता न करो, पहला राष्ट्रपति हरिजन होगा। और न केवल हरिजन, बल्कि, स्त्री। क्योंकि स्त्री को भी बहुत सताया गया हैहरिजन को भी बहुत सताया गया है। स्वतंत्रता में यह सब न चलेगा। स्वतंत्रता आ भी गई–न कोई हरिजन, न कोई स्त्री!

स्वतंत्रता आई और करोड़ों लोग मरे, लुटे, न मालूम कितने बच्चों की जानें गईं, कितनी स्त्रियों की इज्जत गई, कितने लोगों को जबरदस्ती जिंदा जलाया गया। गजब की आजादी आई!

यह प्रेम से हो सकता था। लेकिन महात्मा गांधीऔर उनके (हिंदू) शिष्यों ने यह नहीं होने दिया।

 इसे उस स्थिति तक पहुंचा दिया, जहां दुश्मनी आखिरी जगह पहुंच गई। कि जब यह हुआ तो इसका परिणाम हिंसा के सिवाय और कुछ न था। यही पंजाब में हो रहा है। यही आसाम में हो रहा है। यही कश्मीर में हो रहा है। यही देश के कोने-कोने में होगा।

मेरे विचार  (और आश्चर्य की बात है कि बड़ी बेशर्मी से आजकल फिर से दिन रात टीवी और ह्वाट्सऐप के जरिये हिंदू-मुस्लिम करके वही सब दोहराया जा रहा है। और पूरा देश बस देख रहा है मुकदर्शक बनकर, अंबेडकर का मूकनायक जाने कहाँ चला गया। बस एक ही उम्मीद है कि शाहरुख़ ख़ान की जवान फ़िल्म देखकर वह जागे। लेकिन यह जागना भी उस भीतरी जागने की शुरुआत होगी, जिसकी चर्चा मैं यहाँ अपने ब्लॉग पर कर रहा हूँ। क्योंकि शिक्षा पाने के बाद हरिजन लोगों को रुकना नहीं चाहिए। अंबेडकर ने समाज में सम्मानपूर्वक जीने के लिए एक मज़बूत आधार बना दिया है तो मेरा प्रयत्न इस ब्लॉग के ज़रिए यही है कि हरिजन आध्यात्मिक यात्रा पर भी निकलें। ओशो का मानना है कि भूखे व्यक्ति से अध्यात्म की बात ही करना बेकार है।)

 

और ये छुटभैये देश को इक्कीसवीं सदी में ले चले! 

फिर अमरित की बूंद पड़ी – Phir Amrit Ki Bund Pari by Osho, #४ मैं तुम्हें इक्कीसवीं सदी में ले जा सकता हूँ
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मेरे जीवन में होंश के प्रयोग के अनुभव बाँटने के लिए यह वेबसाइट है इसलिए जो आध्यात्मिक ज्ञान के प्यासे यहाँ तक आ गये हैं उनके लिए कुछ सुझाव नीचे दिये जा रहे हैं। :-

मैंने सुबह ब्रश करते समय अवेयरनेस का प्रयोग करना शुरू किया और  समय के साथ, 20 वर्षों के भीतर, मैं अन्य कृत्यों के दौरान होंश या जागरूकता को लागू करने में सक्षम हो गया, जबकि मुझे बाद में एहसास हुआ कि कई कृत्यों में यह पहले ही स्वतः होने लगा था।

संपूर्णता के साथ जीना, जीवन को एक प्रामाणिक रूप में जीना यानी भीतर बाहर एक और ईमानदारी से जीना, लोगोंकी बिना भेदभाव के निःस्वार्थ भाव से सेवा करना और सभी बंधनों (धार्मिक, शैक्षिक, जाति, रंग आदि) से मुक्त होनातीन महत्वपूर्ण उत्प्रेरक हैं जो किसी को गहराई तक गोता लगाने में मदद करते हैं।

होंश का प्रयोग मेरे लिए काम करने का तरीका है,  हो सकता है कि आपको भी यह उपयुक्तलगे अन्यथा अधिकांश लोगों के लिए गतिशील ध्यान है। लगभग 500 साल पहले भारतीय रहस्यवादी गोरखनाथद्वारा खोजी गई और ओशो द्वारा आगे संशोधित की गई 110 अन्य ध्यान तकनीकें हैं जिनका प्रयोग किया जा सकताहै और नियमित जीवन में उपयुक्त अभ्यास किया जा सकता है।

नमस्कार ….. मैं अपनी आंतरिक यात्रा के व्यक्तिगत अनुभवों से अपनी टिप्पणियाँ लिखता हूँ। इस पोस्ट में दुनिया भरके रहस्यवादियों की शिक्षाएँ शामिल हो सकती हैं जिन्हें मैं आज भी मानने लायक समझता हूँ। मेरे बारे में अधिकजानकारी के लिए और मेरे साथ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जुड़ने के लिए, मेरे सोशल मीडिया लिंक से जुड़ने केलिए वेबसाइट https://linktr.ee/Joshuto पर एक नज़र डालें, या मेरे यूट्यूब चैनल की सदस्यता लें और/यापॉडकास्ट आदि सुनें।

कॉपीराइट © ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन, अधिकतर प्रवचन की एक एमपी 3 ऑडियो फ़ाइल को osho डॉट कॉम से डाउनलोड किया जा सकता है या आप उपलब्ध पुस्तक को OSHO लाइब्रेरी में ऑनलाइन पढ़ सकते हैं।यू ट्यूब चैनल ‘ओशो इंटरनेशनल’ पर ऑडियो और वीडियो सभी भाषाओं में उपलब्ध है। OSHO की कई पुस्तकें Amazon पर भी उपलब्ध हैं।

मेरे सुझाव ;- 

ओशो के डायनामिक मेडिटेशन को ओशो इंटरनेशनल ऑनलाइन (ओआईओ) ऑनलाइन आपके घर से सीखने की सुविधा प्रदान करता है। ओशो ध्यान दिवस अंग्रेज़ी में @यूरो 20.00 प्रति व्यक्ति के हिसाब से। OIO तीन टाइमज़ोन NY, बर्लिन औरमुंबई के माध्यम से घूमता है। आप अपने लिए सुविधाजनक समय के अनुसार प्रीबुक कर सकते हैं।

 

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