मनुष्य संसार में रहते हुए ही प्रकाश को इस तरह प्राप्त करे

ओशो से इनके संन्यासी का प्रश्न : मैं स्वयं के लिए प्रकाश कैसे बन सकता हूँ? ओशो : ‘अप्प दीपो भव’ ये गौतम बुद्ध के अंतिम शब्द थे, उनके शिष्यों के लिए उनका बिदाई संदेश: “स्वयं प्रकाशवान हो जाओ”. लेकिन जब वे कह रहे हैं, “स्वयं प्रकाशवान हो जाओ” उसका मतलब यह नहीं है कि “अपने लिए एक प्रकाश बनो”. होने और बनने में बहुत फर्क है। बनना एक प्रक्रिया है; ( जैसे डॉक्टर बनना, इंजीनियर बनना) होना एक खोज है। बीज ही वृक्ष में परिवर्तित होता है; वह एक रूप है। बीज में पहले से ही वृक्ष था, वह उसका अस्तित्व या श्रेष्ठतम रूप था। बीज फूल नहीं बनता। बीज में फूल पहले से थे अप्रकट, अब प्रकट हैं। बनने का सवाल ही नहीं है। वरना एक कंकड़ फूल बन सकता था। लेकिन ऐसा नहीं होता है। चट्टान गुलाब नहीं बन सकती; ऐसा नहीं होता है क्योंकि चट्टान में गुलाब होने की कोई क्षमता नहीं है। बीज केवल मिट्टी में मरकर स्वयं को खोज लेता है – अपने बाहरी आवरण को गिराकर, वह अपनी आंतरिक वास्तविकता में प्रकट हो जाता है। हर मनुष्य बीजरूप में प्रकाश है। आप पहले से ही बुद्ध हैं। ऐसा नहीं है कि तुम्हें बुद्ध बनना है, यह सीखने का सवाल नहीं है, हासिल करने का सवाल है, यह सिर्फ पहचानने का सवाल है- यहअपने भीतर जाकर देखने का सवाल है कि वहां क्या है। यह आत्म-खोज है।यह भीतर की आँख जिसको हम कभी कभी प्रयोग में लेते हैं -जब कोई […]

Read More मनुष्य संसार में रहते हुए ही प्रकाश को इस तरह प्राप्त करे