भक्ति साकार से शुरू होकर निराकार तक पहुँचे तभी पूर्णता को प्राप्त होती है।

भक्ति तो साकार होगी; भगवान साकार नहीं है। थोड़ी कठिनाई होगी तुम्हें समझने में। क्योंकि शास्त्रों से बंधी हुई बुद्धि को अड़चने हैं।भक्ति तो साकार है; लेकिन भगवान साकार नहीं है। क्योंकि भक्ति का संबंध भक्त से है, भगवान से नहीं है। भक्त साकार है, तो भक्ति साकार है। 

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मेरी उठावना पत्रिका – ज्यों की त्यों धर दिनी चादरिया

इस पोस्ट को लिखने में मुझे क़रीब एक महीना से ज़्यादा की साधना करनी पड़ी। क्योंकि मेरा अनुभव नहीं बने तो मैं नहीं लिखूँगा यह पहली condition है। बहुत महत्वपूर्ण पड़ाव होता है यह आध्यात्मिक यात्रा का। अपने हाथों अपनी मौत की घोषणा करने जैसा है। मैं कहा करता था दोस्तों की कि मैं अपने उठवाने की पत्रिका खुद छपवाकर सबको पहले ही दे जाऊँगा। और और दोस्तों से मिलते ही मैं उनको भी पूछता था ‘क्यों ज़िंदा हो अभी तक, मरे नहीं? तुम्हारी भी पत्रिका छपवा ली है मैंने तो। मेरे साथ कौन जाएगा फिर?’

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मैं तुम्हें रोज़ रोज़ समझाऊँगा

मैं तुम्हें रोज़ रोज़ समझाऊँगा ओशो का यह यूटूब पर ऑडीओ सुनने लायक़ है। जब तक आप स्वयं के प्रयत्न और अनुभव से आत्मज्ञान को प्राप्त नहीं हो जाते तब तक आप आध्यात्मिक ज्ञान की किताबों वेदों, उपनिषदों, बुद्ध, Jesus और वेदांत पर कोई टिप्पणी या टीका नहीं लिख सकते। लेकिन आजकल कोई भी व्यक्ति […]

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आज का विचार

संतो की कठिनाई है कि जो पाया है वह इतना अनोखा है कि सबको इसे पाना ही चाहिए और वे सब कहीं और ही व्यस्त हैं। और मनुष्य का भ्रम दोनों के बीच भी मायाजाल को काटने उपाय हो जाता है।

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ऐसी भक्ति करे रैदासा।

रैदास की शिष्या, मीरा, के कृष्ण से मिलन की यात्रा को आज के परिदृश्य में बताने का प्रयत्न किया है। वह परमात्मा हमारा स्वरूप ही है, लेकिन यात्रा की भारी भरकम क़ीमत जो चुकाने को तैयार है उसे ही मिलता है। नाथद्वारा मैं आज भी मीरा का मंदिर है जो इस घटना का प्रमाण है। इसलिए उसे तोड़ा नहीं गया, पूरे मंदिर का पुनर्निर्माण कर दिया गया। वही उस मंदिर का केंद्र है।

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