इक्कीसवीं सदी में जीवन के सारे मूल्य बदले जाएं।-ओशो

To translate this post in your language use Google translate at bottom left of this page. ओशो से उनके शिष्य ने प्रश्न किया :- ओशो, आजकल हमारे देश में नीति-निर्माण बार-बार देश को इक्कीसवीं शताब्दी में ले जाने की बात कर रहा है। खासकर के पिछले डेढ़-दोवर्षों में यह बहस काफी बढ़ गई है कि देश को इक्कीसवीं शताब्दी में ले जाना है। क्या आप समझते हैं कि मौजूदा हालातों में यह संभवहोगा? पहली तो बात यह है कि देश बीसवीं सदी में भी है या नहीं! इक्कीस में ले जाना है, वह तो समझ में आ गया, मगर किसको लेजाओगे? यहां लोग हजारों वर्ष पीछे जी रहे हैं। इस देश के नेता-महात्मा गांधी जैसे लोग भी सोचते हैं कि चरखे के बाद जो भी वैज्ञानिकअनुसंधान आविष्कार हुए हैं, वे सब नष्ट कर दिए जाने चाहिए। चरखा आखिरी विज्ञान है। महात्मा गांधी रेलगाड़ी के खिलाफ थे, टेलीफोन के खिलाफ थे, टेलीग्राम के खिलाफ थे! अगर उनकी बात मान ली जाए…और उनकी बात मान कर इस देश के नेता चलते रहेहैं। कम से कम दिखाते तो रहे हैं, कम से कम गांधी की टोपी तो लगाए रहते हैं, कम से कम गांधी की खादी तो पहन रखी है। अगरउनकी बात मान ली जाए तो यह देश कम से कम दो हजार साल पीछे पहुंच जाएगा। इक्कीसवीं सदी की तो छोड़ दो, अगर यह पहलीसदी में भी पहुंच जाए तो धन्यभाग! जो लोग इसे इक्कीसवीं सदी में पहुंचाने की बातें कर रहे हैं, उनकी खुद की बुद्धि इतने सड़े-गलेविचारों से भरी है कि वे विचार सारी दुनिया में कभी के रद्द […]

Read More इक्कीसवीं सदी में जीवन के सारे मूल्य बदले जाएं।-ओशो