अंतिम पायदान से शून्य में छलाँग
क़रीब पिछले पंद्रह दिनों में मेरे अनुभवों को में कबीर के इस दोहे के समान अनुभव करता हूँ।
कबीर मन निश्चल भया, और दुर्बल भया शरीर।
तब पीछे लागा हरी फिरे, क़हत कबीर कबीर।।
क़रीब पिछले पंद्रह दिनों में मेरे अनुभवों को में कबीर के इस दोहे के समान अनुभव करता हूँ।
कबीर मन निश्चल भया, और दुर्बल भया शरीर।
तब पीछे लागा हरी फिरे, क़हत कबीर कबीर।।