निरोध को उपलब्ध व्यक्ति पका हुआ व्यक्ति है – ओशो

नारद कहते हैं :- ‘वह भक्ति कामनायुक्त नहीं है, क्योंकि वह निरोधस्वरूपा है।’ ‘निरोधस्वरूपा!’ साधारणतः भक्ति-सूत्र पर व्याख्या करने वालों ने निरोधस्वरूपा का अर्थ किया है कि जिन्होंने सब त्याग दिया, छोड़ दिया। नहीं, मेरा वैसा अर्थ नहीं है। जरा सा फर्क करता हूं, लेकिन फर्क बहुत बड़ा है। समझोगे तो उससे बड़ा फर्क नहीं हो सकता। निरोधस्वरूपा का अर्थ यह नहीं है कि जिन्होंने छोड़ दिया, निरोधस्वरूपा का अर्थ है कि जिनसे छूट गया। (जैसे कोई बच्चा रंगीन पत्थर इकट्ठे करके मुट्ठी में बांधकर रखता है क्योंकि उनको वह बहुमूल्य समझता है, उनको ही वह हीरा समझता है और जब उसको कोई असली हीरा दिखाता है कि इसको हीरा कहते हैं तब उसके हाथ से पत्थर छूट ही जाते हैं। उनको छोड़ने का […]

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संसार में निरोध स्वरुपा है भक्ति – नारद

The spiritual side of knowing that the world is not real is discussed with reference to new scientific discovery leading to Nobel Prize that the world is not real.

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संन्यास का अर्थ निर्वाण की उद्घोषणा पर: इस चक्की पर खाते चक्कर

  इसी से सम्बंधित मेरा पोस्ट Medium पर. इस चक्की पर खाते चक्कर. मेरा तन-मन, जीवन जर्जर हे कुंभकार, मेरी मिट्टी को और न अब हैरान करो, अब मत मेरा निर्माण करो। ये लाइनें वही मिट्टी बोल सकतीं है जो चक्की पर से छिटक कर बाहर गिर पड़ी हैं, या वे व्यक्ति जो आत्मज्ञान को […]

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भज गोविंदम मूढ़मते और संसार पर ओशो के बोल

I have tried to describe the point Osho was talking about in this book. The mindfulness or awareness meditation that I practiced helped me to fall into consciousness and know it. In result that experience gave this insight.

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