इश्क़ में क्या बतायें कि दोनों किस क़दर चोट खाये हुए हैं-जानीबाबू क़व्वाल

किसी सूफ़ी फ़क़ीर की लिखी ग़ज़ल लगती है मुझे। आत्मा की प्यास है की वह अपने घर वापस लौटना चाहती है ताकि फिरसे शरीर धारण नहीं करना पड़े। और शरीर को संसार से सुख इतना मिल रहा है कि मौत से बचने के उपाय भी निकाल लिए हैं और एकदम निश्चिंत होकर संसार को भोगने […]

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Aziz Naza ko meri taraf se shraddhanjali swaroop. Fikr se Jikr tak.

  हुए नामवर … बेनिशां कैसे कैसे … ये ज़मीं खा गयी … नौजवान कैसे कैसे … अज़ीज़ नाज़ा की मशहूर क़व्वाली चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जाएगा ओरिजिनल Mumtaz Aziz Naza के YouTube पर इस लिंक से देखने, सुनने को मिलेगी, और उनके बेटे Mujtaba Aziz Naza मुज़्तबा अज़ीज़ नाजा को भी […]

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