भक्त को तो पता ही नहीं होता कि वह भक्ति कर रहा है।
मेरे अनुभव से यह बताने कि
का प्रयत्न है कि असंभव मनुष्य के लिए कुछ है ही नहीं। हमारा होना ही संभव को असंभव बनाता है। और आज के संसार में जहां कई प्लेटफार्म पर अलग अलग आइडेंटिटी बनाकर चलना पड़ता है तब हमारा मिटना कैसे संभव है? तो यह कैसे संभव हो सकता है इसका एक प्रयत्न किया है उसकी तरफ़ इशारा किया है।