मनुस्मृति के बजाय भीतर की आँख हमारे जीवन को दिशा दे

मनुस्मृति में प्रिय असत्य कहने और अप्रिय सत्य नहीं कहने को लेकर ओशो ने विरोध जताते हुए ध्यान को साधने की बात कही, सत्य और प्रेम उससे अपनेआप फलित होंगे क्योंकि वह मनुष्य का नैसर्गिक गुण है। ध्यान जो नैसर्गिक नहीं है उसे इस तरह गिरा देता है जैसे हीरे को देखने के बाद जो […]

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